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कैसे बचें हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग से?

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क्या आप भी अपने लाड़ले/लाड़ली के आसपास हमेशा मंडराते रहते हैं, बच्चों का हर काम ख़ुद ही करते हैं..? अगर आप ये सोचते हैं कि आपको बच्चे से बहुत प्यार है, इसलिए आप उसकी इतनी परवाह करते हैं, तो संभल जाइए. जी हां, आपका ये एक्स्ट्रा प्यार और केयर बच्चे के भविष्य के लिए ठीक नहीं. ये व्यवहार आपको हेलिकॉप्टर पैरेंट्स की श्रेणी में खड़ा करता है. कैसे बचें हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग से? आइए, हम बताते हैं.
  दुनिया के हर माता-पिता अपने बच्चे को वो सारी सुख-सुविधाएं देना चाहते हैं, जो उन्हें चाहिए. बच्चों की सुरक्षा से लेकर उनके हर छोटे-बड़े काम में भी वे बच्चों से ज़्यादा ख़ुद सम्मिलित रहते हैं. कई बार तो स्थिति ऐसी हो जाती है कि बच्चे को अपने बारे में उतना नहीं पता होता, जितना पैरेंट्स को होता है. आपका प्यार-दुलार और हर काम में बच्चे की मदद करना बहुत अच्छी बात है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपका हर पल साये की तरह उसके आगे-पीछे घूमना और हर काम में उसकी मदद करना, उसके हर छोटे-बड़े फैसले लेना, उसकी पसंद-नापसंद निश्‍चित करना आदि आपके बच्चे को कमज़ोर कर देता है. आपको पता नहीं चलता, लेकिन आपकी यही आदत बच्चे को मानसिक रूप से कभी बड़ा नहीं होने देती. अतः इससे बचिए.
उन्हें रिमोट कंट्रोल न बनाएं
आप अगर अपने बच्चे का समुचित विकास चाहते हैं, तो बहुत ज़रूरी है कि उसे अपना रिमोट कंट्रोल मत बनाइए. उदाहरण के लिए, बच्चा आज अपने दोस्तों के साथ खेलने जाएगा या नहीं, उसे डिनर में आपकी फेवरेट डिश ही खानी पड़ेगी, कपड़े आपके अनुसार पहने, हेयरस्टाइल आदि. ये सब शुरुआती बातें हैं, जिनसे आपको बचना पड़ेगा.
क्या करें?
जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, उसे अपनी तरह से बढ़ने दें. हर बात पर रोक-टोक से वो बिल्कुल आप जैसा बन जाएगा/जाएगी, उसकी अपनी कोई पर्सनैलिटी डेवलप नहीं हो पाएगी.
सुरक्षागार्ड बनने से बचें
बच्चे के गिरने पर झट से उसे उठा लेना, दोस्तों से झगड़ा होने पर बच्चे की तरफदारी करना जैसी बातें बच्चे को कमज़ोर बना देती हैं और बच्चा आप पर पूरी तरह निर्भर हो जाता है. ये उसके विकास के लिए उचित नहीं है.
क्या करें?
बॉडीगार्ड की तरह बच्चे के आसपास रहना बंद करें. उसे इन छोटी-मोटी मुश्किलों से ख़ुद जूझने दें. इससे धीरे-धीरे उसका आत्मविश्‍वास बढ़ेगा.
ख़ुद निर्णय लेने से बचें
आमतौर पर देखा गया है कि विदेशों में बच्चे जल्दी आत्मनिर्भर हो जाते हैं, लेकिन भारतीय परिवेश में ऐसा नहीं है. उदाहरण के लिए, दसवीं के बाद बच्चे को साइंस लेना चाहिए, आर्ट्स या कॉमर्स ये उनके माता-पिता ही निश्‍चित करते हैं. इसी तरह बड़े होकर उसे इंजीनियर या डॉक्टर बनना है, ये भी पैरेंट्स ही निश्‍चित करते हैं.
क्या करें?
बड़े होने पर बच्चों की राय जानें और उसके अनुसार ही चलें. भूलकर भी अपनी राय उन पर न थोपें. इससे बच्चे के मन में आपके प्रति ग़लत धारणा बस जाती है. 1
बचपन में ही बड़ा बनाने से बचें
कई बार आपने भी ऐसे बच्चों को देखा होगा, जो कम उम्र में ही बड़ों की तरह पेश आते हैं, कहीं जाने पर माता-पिता के साथ बैठे रहते हैं, दूसरे बच्चों के साथ मिक्सअप नहीं होते. हो सकता है, ऐसे बच्चों को देखकर आपको एक पल के लिए ख़ुशी हो, लेकिन आप क्या ये जानते हैं कि ऐसे बच्चों के पैरेंट्स उनकी मासूमियत से खिलवाड़ कर रहे होते हैं. उन्हें अपनी तरह से ज़िंदगी जीने की आज़ादी न देकर वो अपने जिगर के टुकड़े का बचपन ख़त्म कर रहे होते हैं.
क्या करें?
बच्चों से उनका बचपन मत छीनिए. उन्हें बचपन की मासूमियत और शरारतों का आनंद लेने दीजिए.
ओवर हाइजीनिक न बनें
ये सच है कि गंदगी से बीमारियां फैलती हैं, लेकिन हर समय अपने बच्चे के लिए साफ़-सफ़ाई करना, उसे बाहर दूसरे बच्चों के साथ पार्क में खेलने से रोकना, बारिश में दूसरे बच्चों की तरह उसे कागज़ की नाव बनाने व पानी में चलाने से मना करना, शाम होते ही घर के अंदर आने के लिए प्रेशर डालना, घर से बाहर निकलने पर मास्क पहनाना आदि बातें बच्चे के लिए गले की फांस बन जाती हैं. वो आपकी बात मान तो लेता है, लेकिन मन ही मन परेशान रहता है. आपका ज़रूरत से ज़्यादा देखभाल करना उसे चिड़चिड़ा और भविष्य में कमज़ोर बना सकता है.
क्या करें?
अपनी इस आदत को बदलिए और बच्चे को खुलकर सांस लेने दीजिए.

स्मार्ट टिप्स

♦ बच्चों के लिए टाइम टेबल ज़रूर बनाएं, लेकिन बच्चों को ही टाइम टेबल न बना दें.
बार-बार की रोक-टोक से बचें.
बच्चे किसको दोस्त बनाएं और किससे बात न करें, ये भूलकर भी आप निर्धारित न करें.
बचपन से ही उन पर सबसे अच्छा होने का बोझ न डालें.
उनकी सेहत का ख़्याल रखें, लेकिन हर चीज़ खाने से मना न करें.
उनके मन में ऐसी बातें न भरें कि वो दूसरे बच्चों से अलग हैं.
♦ हद से ज़्यादा प्यार दिखाने की कोशिश भी बच्चों पर बुरा प्रभाव डालती है. 
टीनएजर्स के घर से बाहर जाते ही बार-बार फोन करके ये जानने की कोशिश न करें कि वो कहां और किसके साथ हैं.
घर से बाहर निकलने पर हर समय उनके साथ जाना भी बच्चों पर ग़लत प्रभाव डालता है.
बचपन से ही स़िर्फ और स़िर्फ पढ़ाई के लिए पीछे पड़े रहना भी ग़लत है. इससे बच्चे हर समय दबाव महसूस करते हैं.

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