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हिंदी कहानी- एमिली (Story- Emily)

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हम समझते हैं, अपने रिश्तों के प्रति जो आस्था और उन्हें निभाने की परंपरा भारतीय संस्कृति में है, वह अन्यत्र नहीं है. जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है. प्रेम किसी धर्म अथवा देश की सीमाओं में बंधा नहीं होता. मानवीय संवेदनाएं हर इंसान में होती हैं. हर इंसान अपने रिश्तों के प्रति संवेदनशील होता है.
सैन फ्रांसिस्को एयरपोर्ट से बाहर निकलकर टैक्सी द्वारा मैं वालनट क्रीक शहर के काईज़र हॉस्पिटल पहुंची, जहां कुछ देर पहले ही मेरी बेटी शुभी ने एक सुंदर बेटे को जन्म दिया था. मयूर मेरा दामाद मुझे हॉस्पिटल के गेट पर ही खड़ा मिल गया. वह मुझे अंदर लेकर गया. अपनी बेटी की गोद में ख़ूबसूरत से बेटे को देख मेरे आनंद की सीमा न रही. दोपहर में शुभी को लेबर रूम से उसके कमरे में पहुंचाया गया, तो डॉ. गोम्स ने उसका चेकअप करने के पश्‍चात् कहा, “शुभी, सिस्टर एमिली तुम्हारी देखरेख करेंगी.” “ओके डॉक्टर.” शुभी मुस्कुराई. सिस्टर एमिली ने अंदर आकर हम सभी को बधाई दी और फिर वह शुभी को दवा देने में जुट गई. एमिली फ्रेंच थी. सुबह आठ बजे से पांच बजे तक उसकी ड्यूटी थी. उसका स्वभाव बहुत हंसमुख था. शुभी का वह बहुत ख़्याल रखती थी. दो दिन में ही वह हमसे बहुत घुल-मिल गई थी. डिस्चार्ज होने से एक दिन पहले एमिली दोपहर में हमारे लिए केक लेकर आई और बोली, “आज मैं बहुत ख़ुश हूं. मेरे बेटे को कॉलेज में एडमिशन मिल गया है.” हम सबने उसे बधाई दी. उसी समय दूसरी सिस्टर क्लारा ने आकर कहा, “एमिली, तुम्हारे लिए गुड न्यूज़ है. तुम्हारी क्लाइंट लिंडा का अपने पति से पैचअप हो गया है. शाम को वे दोनों तुम्हारे घर तुमसे मिलने आएंगे.” “ओ ग्रेट.” एमिली बोली. “तुम्हारी पेशेंट या क्लाइंट?” शुभी ने पूछा. “क्लाइंट.” क्लारा ने बताया. “एमिली मैरिज काउंसलर भी है. शाम को हॉस्पिटल से लौटकर एक घंटा फ्री में काउंसलिंग करती है.” “फ्री में काउंसलिंग?” हम लोग अचंभित रह गए. “इसमें हैरानी की क्या बात है? दिन में लोगों के शरीर के ज़ख़्मों को ठीक करती हूं और शाम को मन के ज़ख़्मों का इलाज करने का प्रयास करती हूं.” एमिली ने कहा. “जॉब और काउंसलिंग के साथ-साथ बेटे की देखभाल, यह सब आसान तो नहीं होगा?” मैंने पूछा तो वह बेहिचक बोली, “आसान क्या, यह सब मेरे लिए बहुत चैलेंजिंग रहा. सच तो यह है, मेरी पूरी लाइफ ही चैलेंजिंग रही है.” उसके बाद एमिली बेहिचक अपनी ज़िंदगी के बारे में बताने लगी. “हर इंसान के जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं, किंतु मेरी लाइफ में कुछ ज़्यादा ही आए. जिस समय मेरी शादी हुई, मैं फ्रांस में थी. मेरे पति गैरी सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे. शादी के तीन महीने बाद वे कुछ महीनों के लिए जर्मनी चले गए. उनके जाने के बाद मुझे पता चला कि मैं प्रेग्नेंट हूं. चूंकि मेरे पैरेंट्स वहां थे, इसलिए जॉब करने और अपनी देखभाल में मुझे परेशानी नहीं हुई. आठ महीने बाद गैरी जर्मनी से लौट आए. उन दिनों मेरी तबीयत बहुत ख़राब रहती थी. जॉब से वापिस आकर मुझमें इतनी हिम्मत नहीं होती थी कि गैरी का मनपसंद खाना बना सकूं या उनकी इच्छा पर उनके साथ घूमने जा सकूं. नौवें महीने में मैंने एक सुंदर-से बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म के साथ मेरी व्यस्तताएं और बढ़ गईं और इसी के साथ गैरी की नाराज़गी भी. उन्हें इस बात का एहसास ही नहीं था कि जॉब करने के साथ-साथ बच्चे को अकेले संभालना मेरे लिए कितना कठिन हो रहा था. गैरी की शुरू से अमेरिका में सैटल होने की इच्छा थी. तीन साल बाद उन्हें मौक़ा मिला. उन्होंने अमेरिका की कंपनी मेंं अप्लाई किया और उन्हें तुरंत जॉब मिल गई. गैरी के साथ-साथ मेरा भी अमेरिका का वीज़ा लग गया, किंतु किसी कारणवश मेरे बेटे जिम का वीज़ा नहीं लगा. आप लोग कल्पना नहीं कर सकते, उन दिनों मुझपर क्या गुज़र रही थी. रात-रातभर मुझे नींद नहीं आती थी. जिम को छोड़कर मैं अमेरिका नहीं जाना चाहती थी, किंतु गैरी मुझ पर दबाव डाल रहे थे. अंतत: तीन वर्षीय जिम को अपने पैरेंट्स के आसरे छोड़कर मैं गैरी के साथ अमेरिका आ गई. यहां मुझे भी जॉब तो मिल गई, किंतु मेरा मन काम में बिल्कुल नहीं लगता था. शरीर यहां और मन अपने बेटे के पास था. दो-तीन महीने बीतते-बीतते मैं अपने बेटे के पास फ्रांस चली जाती थी. इस तरह काफ़ी समय गुज़र गया, किंतु जिम का वीज़ा नहीं लगा. तब विवश होकर हमने उसका कनाडा का वीज़ा लगवाया, ताकि वह मेरे कुछ क़रीब आ जाए और मुझे उससे मिलने में इतनी मुश्किलें न हों. टोरंटो के एक स्कूल में मैंने जिम का एडमिशन करवा दिया और उसी स्कूल के होस्टल में वह रहने लगा.” हम लोग बहुत ध्यान से एमिली की आपबीती सुन रहे थे. “फिर क्या हुआ?” शुभी ने उत्सुकता से पूछा. एमिली ने बताया, “मैं हर दूसरे महीने बेटे को देखने टोरंटो जाती थी. कभी-कभी उसकी जानकारी के बिना भी मैं पहुंच जाती. उसके स्कूल के प्रिंसिपल और टीचर्स से मिलकर पता करती वह ख़ुश है या नहीं, उसकी प़ढ़ाई कैसी चल रही है? उसके साथी मित्र कैसे हैं? इस बीच गैरी के साथ मेरा रिश्ता तनावपूर्ण हो रहा था. वह हर समय मुझ पर व्यंग्य कसते कि मुझे स़िर्फ अपने बेटे की चिंता थी. उनका कोई ख़्याल नहीं था. यह सुनकर मेरा मन वेदना से भर उठता. वे दोनों ही तो मेरा जीवन थे. मेरी आत्मा थे और उस दिन तो मेरे सब्र का पैमाना छलक गया था. जिम के स्कूल में वार्षिक महोत्सव था. उसमें वह भी भाग ले रहा था. उसने फोन करके बार-बार मुझसे आने का अनुरोध किया था. मैंने सोचा, इतना छोटा बच्चा पैरेंट्स के बिना रह रहा है. मेरे न जाने पर वह कितना निराश होगा. मैं गैरी को भी साथ ले जाना चाहती थी, किंतु वह तैयार नहीं थे. यही नहीं, मेरे जाने पर भी उन्हें ऐतराज़ था. उस दिन ग़ुस्से में उन्होंने कहा था, “बच्चे के फंक्शन के लिए इतना क्या उतावलापन. कहीं ऐसा तो नहीं....” मैंने पूछा, “कैसा? बताओ गैरी, क्या कहना चाह रहे हो तुम?” किंतु उन्होंने कुछ नहीं कहा था. धीरे-धीरे मुझे एहसास हो रहा था कि वह मुझसे दूर जा रहे थे? कभी-कभी मैं सोचती मेरी लड़ाई किससे है? अपनी परिस्थितियों से, गैरी से या स्वयं अपने आप से? कितनी अकेली थी मैं उन दिनों. लगता जैसे दूर-दूर तक फैले रेगिस्तान में अकेली चल रही हूं, जहां पानी का स्रोत दिखाई तो देता है, किंतु पास जाने पर पता चलता है कि वह सब छलावा था, एक मरीचिका जिसको पाने का भ्रम मैं पाले हुए हूं. तो क्या मेरा सुख, मेरी ख़ुशियां भी एक छलावा हैं? मेरी पहुंच से दूर, बहुत दूर. इस रोज़-रोज़ की भागदौड़, लड़ाई-झगड़े और तनाव को झेलते-झेलते मैं थक चुकी थी और बीमार रहने लगी थी. हाई ब्लडप्रेशर की वजह से सिर में दर्द रहता और चक्कर आते रहते. फिर अचानक ही मरुभूमि में मानो सावन की हल्की फुहारों का एहसास हुआ. जिम को अमेरिका का वीज़ा मिल गया. “अरे वाह, फिर तो तुम्हारे संघर्षों का अंत हो गया होगा और जीवन में ख़ुशियां लौट आई होंगी.” मैंने उत्साह से पूछा. एमिली बोली, “उस समय मुझे भी ऐसा ही लगा था कि अब मेरे दुखों का अंत हो गया है, किंतु यह मेरा भ्रम था. मां की ममता का मोल चुकाते-चुकाते एक पत्नी अपना प्यार खो चुकी थी. जिम जब तक मेरे पास आया, मेरे और गैरी के बीच की खाई काफ़ी गहरी हो गई थी. गैरी मुझसे क्यों दूर चले गए, मैं समझ नहीं पाती थी. माना कि मैंने जिम की ज़्यादा चिंता की, तो क्या जिम स़िर्फ मेरा बेटा है, उनका नहीं? मैं समझ नहीं पा रही थी कि किस तरह उलझे हुए समीकरणों को सुलझाऊं? किस तरह गैरी का प्यार वापस पाऊं? उस अंधकार में रोशनी की हल्की-सी किरण भी मेरे लिए प्रकाशपुंज के समान थी, किंतु उस किरण का भी दूर-दूर तक पता नहीं था. रात-दिन मैं इस चिंता में घुल रही थी. गैरी का ख़्याल रखने का मैं भरसक प्रयास करती, किंतु वह मेरी ओर ध्यान ही नहीं देते थे. उन दिनों मैं रिक से फोन पर बहुत बातें करती थी. एक शाम जिम फुटबॉल खेलने बाहर गया हुआ था. मैं रिक से फोन पर बात कर रही थी. रिक मुझे समझा रहा था, “एमिली, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है. तुम्हारा ब्लडप्रेशर काफ़ी हाई है. तुम्हें ज़्यादा मेहनत करने और तनाव लेने की आवश्यकता नहीं है.” मैंने उससे कहा, “नहीं रिक, मैं इस अवसर को हाथ से गंवाना नहीं चाहती. सालभर में कुछ ही अवसर आते हैं, जब हम अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं. मैं गैरी को हृदय की गहराइयों से प्यार करती हूं और मन ही मन यह महसूस करती हूं कि अनजाने में ही सही, एक पत्नी के फ़र्ज़ को भलीभांति पूरा नहीं कर पाई हूं. उनका जन्मदिन धूमधाम से मनाकर मैं उन्हें अपने प्यार का एहसास कराना चाहती हूं.” अभी मैं रिक से अपनी बात पूरी कर भी न पाई थी कि अंदर से अचानक गैरी चले आए और मेरे सामने आकर बैठ गए. उनका चेहरा उतरा हुआ था और आंखों में आंसू भरे हुए थे. मैंने फोन रखा और उनसे बोली, “क्या हुआ गैरी, तुम्हारी आंखों में आंसू?” मेरी बात का जवाब न देकर उन्होंने पूछा, “अभी तुम किससे बात कर रही थी?” “रिक से, डॉ. रिक जेम्स, हमारे फैमिली डॉक्टर.” मैंने बताया. “वह कह रहे थे कि तुम्हारा ब्लडप्रेशर बहुत हाई है.” गैरी चिंतित स्वर में बोले. मैंने कुछ कहना चाहा, किंतु अचानक ही मैं ख़ामोश हो गई, मेरी आंखें आश्‍चर्य से फैल गई थीं. मैं बोली, “तुम्हें कैसे पता कि रिक ने ऐसा कहा?” शर्मिंदगी का भाव चेहरे पर लिए गैरी कुछ पल ख़ामोश रहे फिर पश्‍चाताप भरे स्वर में बोले, “दरअसल एमिली, मैंने तुम्हारे फोन पर माइक्रोफोन फिट कर दिया था, ताकि तुम्हारी सारी बातें सुन सकूं.” सकते की हालत में आ गई थी मैं उनकी बात सुनकर. पीड़ा और क्रोध की मिलीजुली प्रतिक्रिया ने मेरे सर्वांग को कंपा दिया था. जीवन में किए इतने संघर्षों और अपनों को क़रीब रखने के प्रयासों का यह प्रतिकार मिला मुझे? दोनों हथेलियों में चेहरा छिपा रो पड़ी थी मैं. गैरी मेरे क़रीब बैठ गए और मेरी गोद में अपना सिर रखकर बोले, “मुझे माफ़ कर दो एमिली. दरअसल, पिछले काफ़ी दिनों से तुम बराबर फोन पर बात करती थी, इसलिए मुझे तुम पर शक होने लगा था. तुम मेरे क़रीब आने का प्रयास करती, तो मैं छिटककर तुमसे दूर चला जाता. मुझे लगता था, तुम मुझे धोखा दे रही हो, लेकिन आज तुम्हारी फोन पर बातें सुनकर मुझे अपनी भूल का एहसास हुआ.” रोते-रोते मैं बोली, “अपनी तबीयत के कारण बार-बार मुझे रिक को फोन करना पड़ता है. मुझे क्या पता था, तुम मुझ पर शक करने लगोगे. गैरी, यह तुमने अच्छा नहीं किया. एक बार मुझसे पूछा तो होता. कितना समय गुज़ार दिया तुमने अपनी इस ग़लतफ़हमी में.” गैरी भर्राए स्वर में बोले, “तुम ठीक कह रही हो, लेकिन यकीन मानो, अपनी इस ग़लतफ़हमी के चलते मैंने भी कम पीड़ा नहीं झेली. रातों को छटपटाता था मैं यह सोचकर कि मेरी एमिली मुझसे कहीं दूर न चली जाए. मैं तुम्हारा गुनहगार हूं एमिली. मुझे माफ़ कर दो. आज मुझे एहसास हो रहा है कि तुम्हारे साथ-साथ मैंने अपने बेटे को भी कम इग्नोर नहीं किया. प्लीज़ एमिली, बस एक मौक़ा दे दो. आज से हम दोनों एक नई ज़िंदगी की शुरुआत करेंगे.” गैरी ने मुझे अपने सीने से लगा लिया. हम दोनों की आंखों से बह रहे आंसुओं में हमारे सारे गिले-शिकवे बह गए. “अरे, उन्होंने आप पर शक किया, आपकी जासूसी की और आपने उन्हें यूं ही माफ़ कर दिया.” शुभी ने उत्तेजित होकर कहा. एमिली स्नेहसिक्त स्वर में बोली, “शुभी, गैरी को माफ़ करना मेरे लिए भी आसान नहीं था, लेकिन जब मैंने पॉज़ीटिव होकर सोचा तो मुझे लगा उनका पश्‍चाताप सच्चा था. वह मुझे प्यार करते थे, मुझे खो देने के डर से ही उन्होंने यह सब किया. शुभी, ज़िंदगी में जब प्रॉब्लम्स आती हैं, तो ऐसे अनुकूल अवसर भी आते हैं, जब हम उन प्रॉब्लम्स को सुलझा सकते हैं, लेकिन अपने अहं के चलते हम उन अवसरों को खो देते हैं.” “अच्छा, फिर क्या हुआ?” मैंने पूछा. “बस, फिर कुछ नहीं. पुरानी कड़वाहटों को भुलाकर मैंने और गैरी ने एक नई ज़िंदगी की शुरुआत की.” “और मैरिज काउंसलिंग कब शुरू की?” मयूर ने पूछा. एमिली बोली, “उन्हीं दिनों मैंने सोचा मेरा और गैरी का रिश्ता टूटने की कगार पर पहुंच गया था, लेकिन हम दोनों ने अपने-अपने अहं को दरकिनार कर अपने रिश्ते को टूटने से बचा लिया. क्या हर इंसान ऐसा कर पाता है? बहुत से पति-पत्नी अपनी ग़लतफ़हमियां दूर नहीं कर पाते और उनमें तलाक़ हो जाता है. यदि अपने थोड़े से प्रयास से मैं किसी के रिश्ते को बचा पाऊं, तो स्वयं को धन्य समझूंगी. तभी मैंने मैरिज काउंसलिंग शुरू की और मुझे ख़ुशी है कि मैं अपने इस काम में काफ़ी हद तक सफल हूं. जब भी कोई रिश्ता मेरे प्रयास से टूटने से बचता है, तो पति-पत्नी के चेहरे पर छाई ख़ुशी से मुझे आत्मिक सुकून मिलता है.” “कितना नेक काम कर रही हो तुम.” हम सबने उसे बधाई दी. एमिली चली गई. मैं सोच रही थी, ज़िंदगी में अनगिनत चेहरे हमारी आंखों के सामने से गुज़रते हैं. उनमें से अधिकतर स्मृति से विलुप्त हो जाते हैं, किंतु कुछ का अक्स मन के कैनवास पर सदैव अंकित रहता है. ऐसे ही चेहरों में से एक चेहरा है एमिली का. उससे मिलने के बाद हम लोगों की पश्‍चिमी संस्कृति के प्रति बनी धारणा बदल गई. वास्तव में हम लोग जाति, धर्म, रंग और देश के आधार पर अपनी सोच निर्धारित कर लेते हैं. हम समझते हैं, अपने रिश्तों के प्रति जो आस्था और उन्हें निभाने की परंपरा भारतीय संस्कृति में है, वह अन्यत्र नहीं है. जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है. प्रेम किसी धर्म अथवा देश की सीमाओं में बंधा नहीं होता. मानवीय संवेदनाएं हर इंसान में होती हैं. हर इंसान अपने रिश्तों के प्रति संवेदनशील होता है. उन्हें सहेजकर रखना चाहता है और एमिली ने अपनी ज़िंदगी के पन्ने खोलकर यही बात हमें समझाई.
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              रेनू मंडल  
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