यह नाम कमाने का कैसा शौक है ब्रो! भगवान ने कुदरत ने मेरी रचना क्या मनुष्यों की सेल्फी पॉइंट के लिए की है. किसी इंसान के घुसने से ना जंगल ख़ुश होता है ना पहाड़. किसी को भी अपने घर में घुसपैठिया नहीं पसंद आता है. अगर कुदरत इसका विरोध करें, तो तुरंत लोग कहने लगेंगे- "यह सैलाब क्यों आया… हाय, यह ओले क्यों गिरने लगे… हाय भूस्खलन क्यों हुआ?.. भगवान कितना भावहीन और हृदयविहीन है!..
मैं एमए हूं. एमए! नहीं पहचाने ब्रो? ब्रो, सिस, जीएम की तर्ज पर तुम्हारी भाषा में मैं ख़ुद को एमए कहता हूं.
लो, मैं अपना नाम बता देता हूं. मेरा नाम माउंट एवरेस्ट है. भाई, मुझे इंसानों से बड़ी नफ़रत हो गई है.
मुझे आराम से रहने ही नहीं देते!
जिसे कोई काम-धाम नहीं है, वो चल पड़ता है मुझ पर चढ़ाई करने. जिसको टीवी, अख़बारों में छपने की आग लगी हुई है, टेड टॉक पर मोटिवेशनल स्पीच देने के लिए मरा जा रहा है, वह चल पड़ता है मेरे मस्तक पर चढ़ कर कलेजा ठंडा करने.
भाई! तुम अपने शहर की आग लगी बिल्डिंगों पर लोगों को बचाने की ट्रैनिंग क्यों नहीं लेते. क्यों बीस-पचास लाख रुपए मेरे ठंडे और निर्जन वातावरण में चढ़ने पर बर्बाद करते हो.
मुझे क़ुदरत ने इंसानी प्रयोग के लिए नहीं बनाया है. मैं कोई स्कूल या कॉलेज का मेडल नहीं हूं.
मैं पर्वत हूं, अडिग धैर्य का अनुपम उदाहरण! मैं पृथ्वी के संतुलनकारी शक्ति का शिखर हूं. मगर देखो! हर शहर से पागल पर्वतारोही दौड़े आ रहे हैं, मानो हॉलीवुड का एवेन्जर मूवी का कोई फ्री शो चल रहा है.
आओ देखो और ज्ञान बांटो! शोहरत कमाओ, ब्लॉग लिखो, किताब लिखो, फिल्म बनाओ, गिनीज़, लिम्का, पेप्सी, लेमन सोडा बुक्स में नाम दर्ज करवाओ! मेरे दम पर, मेरे सीने पर अपने बूटों से ज़ख़्म देते जाओ…
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तुम इंसानों ने अपने लालच की सुरसा मुख से सब को प्रदूषित कर दिया. जल को गंदा किया, धरती को खदानों में पाट दिया, हवा में विष घोल दिया, आकाश में ओज़ोन की परत को भेद डाला. पिछले कुछ दशकों से उच्च शिखरों पर आरोहण करने की भेड़चाल ने मेरे और मेरे कुल के शिखर कुटुंब के धवल, स्वच्छ तन को प्रदूषित कर रहे हो.
भाई मुझ पर चढ़ाई करने में जो एनर्जी वेस्ट करते हो, वह ऊर्जा अपने इलाके के टंकी पर चढ़कर उसे साफ़ करने में क्यों नहीं लगाते. दुनिया में कई काम है, जिससे मानवों और प्रकृति का भला होगा. वो छोड़ कर जुनूनी लोग युवा तो युवा, बुड्ढे भी सारा काम छोड़ कर सैर करने को माउंट एवरेस्ट पर आने लगे है. पशुओं की बेहतरी के लिए काम करो, जल संरक्षण की दिशा में काम करो और शरीर में ज़्यादा ही गर्मी है, तो बॉर्डर पर जाकर दुश्मनों से सामना करो. आतंकियों से दो -दो हाथ करो.
लेकिन सेल्फी लेने का जुनून जैसे-जैसे बढ़ा रहा है, मेरे मस्तक पर बैठ कर सेल्फी लेना आज का नया शग़ल हो गया है.
दुनिया तो केवल तस्वीर का एक ही पहलू देखती है आज कुछ दूसरा पहलू भी दिखाता हूं.
बेशुमार पर्वतारोहियों की संख्या से मेरा कोना-कोना गंदा हो रहा है.
जगह-जगह नौसिखिए पर्वतारोहियों की लाशें टंगी रहती हैं. वर्षों से लावारिस लाशें यूं ही हिम ममी बन गयी हैं. इनकी मम्मियां मुझे कोसती होगी कि मैं हत्यारा हूं, उनका बेटा तो विजेता था.
हाल ही में देखो तो इतने लोग आ गये कि ट्रैफिक जाम की स्थिति हो गई.
एवरेस्ट पर चढ़ने वाले कई ठरकी लोग ऊपर तक पहुंचने के लिए अपने ही हमजोलियों के शवों को धक्का देने, उनके ऊपर चलने तक में परहेज़ नहीं करते हैं.
कितनों की पत्नियां इंतज़ार करती रह जाती है कि उसका पति हिमालय जीत कर आएगा और उसकी लाश इस ठंडे कब्रिस्तान में वर्षों तक पड़ी रहती है.
मेरी चढ़ाई के आख़ीरी हिस्से में पर्वतारोहियों को उस पांच मीटर की रस्सी को पकड़कर चढ़ना होता है, जो उनके शरीर से बंधी होती है. जो लोग अपनी जान गवां बैठे थे, उनके शरीर इसी रस्सी से लटके हुए हैं.
यह नाम कमाने का कैसा शौक है ब्रो! भगवान ने कुदरत ने मेरी रचना क्या मनुष्यों की सेल्फी पॉइंट के लिए की है. किसी इंसान के घुसने से ना जंगल ख़ुश होता है ना पहाड़. किसी को भी अपने घर में घुसपैठिया नहीं पसंद आता है. अगर कुदरत इसका विरोध करें, तो तुरंत लोग कहने लगेंगे- "यह सैलाब क्यों आया… हाय, यह ओले क्यों गिरने लगे… हाय भूस्खलन क्यों हुआ?.. भगवान कितना भावहीन और हृदयविहीन है!..
मगर दोस्त समझा करो ना! कुछ साल वसुधा पर आए हो, कुछ अच्छा करो, प्राणियों का भला करो,-प्रकृति को उसके हाल पर छोड़ दो. प्रकृति को कभी मनुष्य की हेल्प की ज़रूरत नहीं पड़ी है. कुदरत अपने ज़ख़्म ख़ुद भर लेना जानती है.
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मैं माउंट एवरेस्ट… सिर झुकाकर कहता हूं, ले लो जितनी सेल्फी लेनी है एक बार में!
बहुत हुआ!
अब बस करो…
मुझ 8884 मीटर यानी 29000 फीट वाले हिम विश्व नागरिक को अपने हाल पर ख़ुश रहने दो! (इस दर्द व पहलुओं पर ज़रूर ध्यान दीजिएगा)
- गौतम कुमार 'सागर'
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