Finance

वित्तीय लक्ष्यों को तय करते समय बचें इन 4 ग़लतियों से (4 Mistakes You Should Avoid When Setting Financial Goals)

सुरक्षित भविष्य के लिए बचत न करना, समय रहते वसीयत न बनाना, निवेश करने के लिए फाइनेंशियल प्लानर की सलाह न लेना आदि ऐसी ग़लतियां हैं, जो हम अक्सर वित्तीय लक्ष्यों को निर्धारित करते समय करते हैं. हम अक्सर इन ग़लतियों को अनदेखा कर बैठते हैं, जिनका ख़ामियाजा हमें भविष्य में उठाना पड़ सकता है. अगर आप भी ऐसी ग़लती कर रहे हैं, तो सावधान हो जाएं.

ग़लती नं. 1: रिटायरमेंट के लिए अभी से बचत करने की क्या ज़रूरत है.


कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो रिटायरमेंट प्लानिंग को गंभीरता से नहीं लेते है. उनका मानना है कि वृद्धावस्था में बच्चे उनका ख़्याल रखेंगे. लेकिन समय के साथ इस ग़लतफहमी को दूर करना ज़रूरी है. ऐसे लोगों को इस बात को समझना होगा कि यदि आप समय रहते ही वित्तीय बचत की शुरुआत नहीं करेंगे, तो कंपाउंड या डबल जैसी वित्तीय योजनाओं का भरपूर लाभ नहीं उठा पाएंगे. जो लोग समय रहते रिटायरमेंट के लिए बचत करने में जितनी देरी लगाते हैं, उनके लिए रिटायरमेंट के समय फंडिंग इकट्ठा करना उतना ही मुश्किल होता है. उदाहरण के लिए- यदि आप 40 साल की उम्र में बचत करना आरंभ करते हैं, तो पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के चलते उतनी बचत नहीं कर पाएंगे, जितना पहले कर सकते थे. दूसरा कारण यह है कि ज़्यादा पैसा बचत करने पर भी रिटायरमेंट के समय उतना नहीं बचा पाएंगे, जितना 30-35 की उम्र में कर सकते थे. अगर आप आरंभ से ही समझदारी के साथ बचत करेंगे, तो रिटायरमेंट के समय तक काफी फंडिंग जमा कर सकते हैं.

ग़लती नं. 2: रिटायरमेंट के बाद भी मेरा लाइफस्टाइल पहले जैसा ही रहेगा.

अधिकतर लोग इस ग़लतफहमी में रहते हैं कि रिटायरमेंट के बाद उनकी पारिवारिक ज़िम्मेदारियां (बच्चों की पढ़ाई व शादी, घर का लोन आदि) कम हो जाएंगी. जबकि ऐसा होता नहीं है. रिटायरमेंट के बाद अन्य ख़र्चे (जैसे- बीमारी का ख़र्च) सामने आते हैं. रिटायरमेंट की उम्र तक आते-आते मेडिकल कॉस्ट 50% तक बढ़ जाता है. उदाहरण के लिए- 30 साल की उम्र में 3 लाख के हेल्थ इंश्योरेंस के लिए मात्र 2,500 रूपए का प्रीमियम देना होता है, जबकि 65 साल की उम्र तक आते-आते यह राशि 18,000 (अनुमानित राशि) तक हो जाती है, इसलिए रिटायरमेंट के लिए बचत करते समय अपने स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों को ध्यान में रखकर वित्तीय प्लािंनंग करनी चाहिए.

और भी पढ़ें: कैसे बचें 9 बेसिक फाइनेंशियल ग़लतियों से? (Avoid 9 Basic Financial Mistakes)

ग़लती नं. 3: वसीयत बनाने में अभी देर नहीं हुई है.


वित्तीय सलाहकारों का मानना है कि समय रहते ही वसीयत बना लेना सही रहता है. इसे रिटायरमेंट प्लानिंग की तरह भविष्य के लिए नहीं टालना चाहिए. अक्सर लोग रिटायरमेंट के बाद वसीयत बनाने के सोचते हैं, जो कि सही नहीं है. वसीयत न बनाने का नुक़सान यह होता है कि अगर किसी आकस्मिक मृत्यु हो जाती है, तो उसकी मौत के बाद संपत्ति का सही हक़दार साबित करने में परेशानी होती है. आपका यह सोचना ग़लत है कि मृत्यु के बाद आपकी सारी संपत्ति ख़ुद-ब-ख़ुद आपके परिवार को मिल जाएगी. कई बार ऐसा होता है कि रिश्तेदार (जिसकी मृत्यु हुई है, उसके भाई-बहन आदि) भी आपकी संपत्ति पर अपना हक़ मांग सकते हैं. इसी तरह से बैंक आदि में निवेश करने के दौरान नॉमिनी का नाम देना ही काफ़ी नहीं होता, बल्कि नॉमिनी से जुड़ी सारी जानकारी देना भी ज़रूरी होता है, इसलिए संपत्ति के बंटवारे का ब्यौरा वसीयत में ज़रूर करें. अच्छा तो यही होगा कि जैसे-जैसे आप संपत्ति (ज़मीन, घर, गाड़ी और पैसा) जोेड़ना शुरू करें, वसीयत बनानी शुरू कर दें. भविष्य में आप इसमें कभी-भी बदलाव कर सकते हैं.

ती नं. 4: मुझे फाइनेंशियल प्लानर की ज़रूरत नहीं है.


अगर आपको कुछ वित्तीय पहलुओं की जानकारी है, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि आप परफेक्ट फाइनेंशियल प्लानर है. उदाहरण के लिए- अगर बीमारी के शुरुआती चरण में डॉक्टर के पास इलाज के लिए जाते हैं, तो आरंभ में सही इलाज करके आपकी बीमारी की रोकथाम कर सकता है, फाइनेंशियल प्लानर भी ऐसा होता है, जो आपकी वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए आपके भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए वित्तीय मार्गदर्शन करता है. इसलिए समय-समय पर फाइनेंशियल प्लानर की सलाह लेते रहना चाहिए.

और भी पढ़ें: रिटायर्मेंट को बेहतर बनाने के लिए कहां करें निवेश? (Top 5 Investment That Will Make Your Retirement More Easy)

– पूनम शर्मा

Poonam Sharma

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