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हिंदी सिनेमा में महिला निर्देशकों ने बनाई अपनी अलग पहचान… (7 Daring Female Directors Redefining Indian Hindi Cinema To The World- From Meghna Gulzar To Farah Khan)

यह लम्हा फ़िलहाल जी लेने दे… यह गाना बहुत कुछ कह जाता है. आज भारतीय सिनेमा में ख़ासकर हिंदी सिनेमा में महिला निर्देशकों ने हर उस लम्हे को जिया है, जो एक नई कहानी, नई सोच के साथ बढ़ता है… शुरुआत के दिनों ब्लैक एंड वाइट मूवी से लेकर आज कलर फिल्मों की भव्य दुनिया तक महिला निर्देशकों ने अपनी अलग और विशेष पहचान बनाई है. आइए, उन उम्दा और प्रतिभाशाली महिला निर्देशकों की कुछ कही-अनकही बातें और उपलब्धियों को जानते हैं.

ऑलराउंडर फराह
बहुमुखी प्रतिभा की धनी फराह खान ने कोरियोग्राफर के रूप में करियर शुरू किया था. फिर वे निर्देशक, निर्माता और एक्ट्रेस भी बनीं. मैं हूं ना, ओम शांति ओम, हैप्‍पी न्‍यू ईयर, तीस मार खान में उनका निर्देशन क़ाबिल-ए-तारीफ़ रहा. आज के दौर में फराह ऐसी निर्देशिका हैं, जिन्होंने लोगों की पसंद और मनोरंजन को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग जॉनर की फिल्में बनाई. उन्होंने युवा, परिवार और सोशल ड्रामा पर काफ़ी ध्यान दिया और दर्शकों की पसंद समझने में भी कामयाब रहीं.

  • मुंबई में जन्मी फराह की मां मेनका मशहूर फिल्म पटकथा लेखिका हनी ईरानी की बहन हैं. इस तरह हनी के दोनों बच्चे फरहान और जोया अख्‍तर उनके कजिन्‍स हैं.
  • भाई साजिद खान भी निर्देशक, कॉमेडियन और अभिनेता हैं.
  • उन्होंने मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से सोशियोलॉजी किया.
  • पॉप सिंगर माइकल जैक्‍सन से प्रभावित होकर उन्होंने डांस में करियर बनाने की ठानी और ख़ुद से ही डांस सीख डांस ग्रुप बनाया.
  • फराह ने हिंदी फिल्‍मों की सौ से अधिक गानों की कोरियोग्राफी की और अधिकतर सुपर-डुपर हिट रही.
  • साल 2004 में निर्देशक शिरीष कुंदर से शादी की और उनके एक बेटा और दो बेटी यानी ज़ार, आन्या और दीवा तीन प्यारे बच्चे हैं.
  • फराह के निर्देशन की पहली फिल्म मैं हूं ना कि एडिटिंग शिरीष ने ही की थी. उन्होंने जोकर फिल्‍म का निर्देशन भी किया है.
  • फिल्मों में डांस डायरेक्टर के रूप में फराह की एंट्री कुछ कम दिलचस्प नहीं रही. जब मशहूर कोरियोग्राफर सरोज खान ने जो जीता वही सिकंदर फिल्म छोड़ दी थी, तब फराह को यह फिल्म मिली.
  • शाहरुख खान से उनका गहरा याराना जगजाहिर है. दोनों की मुलाक़ात कभी हां कभी ना फिल्म की शूटिंग के दरमियान हुई थी. उनकी गहरी दोस्ती का ही जलवा रहा कि फराह ने शाहरुख के साथ हैट्रिक मारी यानी तीन बेहतरीन फ़िल्में कीं. मैं हूं ना, ओम शांति ओम, हैप्पी न्यू ईयर… ये सभी बेहद कामयाब रहीं.
  • वे पांच बार फिल्‍मफेयर का बेस्ट कोरियोग्राफी का अवॉर्ड जीत चुकी हैं.
  • बोमन ईरानी के साथ एक्ट्रेस के रूप में शिरीन फरहाद की तो निकल पड़ी फिल्म के यूनीक काॅन्सेप्ट लोगों ने ख़ूब पसंद किया.
  • एमटीवी वीडियो म्यूज़िक अवाॅर्ड्स के लिए फराह ने कोलम्बियन पॉप स्‍टार शकीरा के गाने हिप्‍स डोंट लाई… के हिंदी वर्जन के लिए उन्‍हें ट्रेंनड किया.
  • ब्‍लू फिल्म के चिगी विगी साॅन्ग के लिए काइली मिनोग को कोरियोग्राफ किया.
  • पति के साथ मनोज बाजपेयी, जैकलीन फर्नांडिस और मोहित रैना अभिनीत मिसेज सीरियल किलर भी बनाई.
  • मल्टी टैलेंटेड फराह कई टीवी शो की होस्ट भी रही हैं. उनके मज़ेदार कमेंट्स और लाजवाब सेंस ऑफ ह्यूमर लोगों का ख़ूब मनोरंजन करते रहे हैं.
  • सेलिब्रिटी चैट शो तेरे मेरे बीच मे, बिग बॉस के होस्ट के अलावा वे इंडियन आइडल, जो जीता वही सुपरस्‍टार, एंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी करेगा, डांस इंडिया डांस, लिटिल मास्टर्स, जस्‍ट डांस जैसे शोज़ की जज रहीं.

सुलझी निर्देशिका मेघना…
यह लम्हा फ़िलहाल जी लेने दे… मेघना गुलज़ार के निर्देशन की पहली फिल्म फ़िलहाल का यह गाना उनके जीवन को भी सार्थक करता है. सुलझी हुई लेखिका और निर्देशक मेघना ने अपनी ज़िंदगी को भी कुछ इसी अंदाज़ में जिया. फ़िलहाल, जस्ट मैरिड, दस कहानियां, तलवार , राज़ी, छपाक जैसी बेहतरीन फ़िल्मों में उनके उम्दा निर्देशन की बानगी देखने मिली.

  • गीतकार-निर्देशक गुलज़ार और अदाकारा राखी की बेटी मेघना को लेखनी-निदर्शन का हुनर पिता से विरासत में मिला. पापा की लाड़ली मेघना ने गुलज़ार पर बिकॉज़ ही इज़ बुक लिखी है.
  • मुंबई में सोशोलाॅजी की डिग्री हासिल करने के बाद वे निर्देशक सईद मिर्ज़ा के साथ असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में जुड़ी.
  • न्यूयॉर्क युनिवर्सिटी में फिल्मों से जुड़ी तमाम बारीकियां जानी और इसमें डिग्री हासिल की.
  • गुलज़ार-राखी की एकलौती पुत्री मेघना ने गोविन्द संधू से शादी की थी और उनका एक बेटा समे भी है.
  • पिता की फिल्म माचिस और हु तू तू में सहायक निर्देशक रहीं. हु तु तू फिल्म की पटकथा भी लिखी.
  • उन्होंने कई शाॅर्ट फिल्म्स व डॉक्यूमेंटरी का निर्देशन किया.
  • साल 2002 सुष्मिता सेन व तब्बू को लेकर फ़िलहाल फिल्म बनाई, जिसे दर्शकों-आलोचकों का अच्छा रिस्पाॅन्स मिला.

ब्लैक एंड व्हाइट का दौर…
फिल्म इंडस्ट्री में फातिमा बेगम पहली महिला निर्देशक रहीं. इसके लिए उन्हें बेहद संघर्ष करना पड़ा, क्योंकि हिंदी सिनेमा में पुरुषों का वर्चस्व था. उसके बाद तो उन्होंने शोभना समर्थ, जद्दनबाई जैसी प्रतिभाशाली अभिनेत्री-निर्देशिका के लिए रास्ते आसान कर दिए.
दरअसल, उस दौर में सिनेमा को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता था, इसलिए वुमन डायरेक्टर को बहुत स्ट्रगल करना पड़ता था.

सत्तर-अस्सी का सुनहरा दशक…
पुरुषों के दबदबे के बावजूद सिमी ग्रेवाल, सई परांजपे, अरुणा राजे जैसी कमाल की महिला निर्देशकों ने अपनी छाप छोड़ी. आख़िरकार महिला निर्देशक अपनी क़ाबिलियत और अलग-अलग विषयों पर ख़ूबसूरत फिल्म करने के कारण अपनी पहचान बनाने में सफल रहीं. और बॉलीवुड को उनके उल्लेखनीय योगदान की सराहना करनी ही पड़ी. उन्होंने भारतीय हिंदी सिनेमा की दिशा ही बदल दी. कई शीर्ष की अभिनेत्रियों ने भी निर्देशन में हाथ आज़माया. फिल्मों के साथ-साथ टीवी और डाक्यूमेंट्री में भी उनका रुझान रहा. इनमें विशेष रहीं- शोभना समर्थ, साधना, हेमामालिनी, तब्बसुम, सोनी राजदान, नंदिता दास व पूजा भट्ट. इन्होंने अभिनय के साथ अपने निर्देशन के शौक को भी बनाए रखा. अछूते विषय और प्रभावपूर्ण निर्देशन की जादूगरी विजया मेहता, साईं परांजपे, अपर्णा सेन, अरूणा राजे, दीपा मेहता, कल्पना लाजमी, मीरा नायर, गुरविदंर चड्ढा, फराह खान, तनुजा चंद्रा, लीना यादव, जोया अख्तर, किरण राव, मेघना गुलजार, रीमा कागती, गौरी शिंदे आदि में देखने को मिली.

इंटरनेशनल धूम…
दीपा मेहता व मीरा नायर ऐसी लाजवाब निर्देशिका रहीं, जिन्होंने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में भी मशहूर किया. सिनेमा को एक अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने में अपना योगदान दिया. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इनकी फिल्मों को ढेर सारे पुरस्कार मिले. इन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया, तभी तो अनुषा रिज़वी जैसी बेहतरीन निर्देशिका की फिल्म पीपली लाइव ऑस्कर तक के लिए नामांकित हुई.

नारी-मन को बख़ूबी समझा कल्पना लाजमी ने…
स्त्री की सोच, उसकी दुविधा, उसके मन, चाहत, संघर्ष को गहराई से समझा, जिया और बड़े पर्दे पर दिखाया कल्पना लाजमी ने. वे ख़ुद भी एक विद्रोही डायरेक्टर रहीं. समाज से लड़कर उन्होंने अपनी नई दुनिया और नया रास्ता बनाया. व्यक्तिगत जीवन हो या फिल्म का निर्देशन कल्पना लाजमी हमेशा कुछ अलग करने और दिखाने में विश्‍वास करती थीं और उनकी फिल्मों में यह देखने भी मिला. फिर चाहे उनकी पहली फिल्म एक पल ही क्यों ना हो, जिसमें शादीशुदा स्त्री के पर-पुरुष से संबंध को तर्कसंगत ढंग से दर्शाया गया. उनका जीवन भी संगीतकार भूपेन हजारिका के साथ सदा सुर्ख़ियों में रहा. मिल्स एंड बून के रोमांटिक नॉवेल की शौकीन कल्पना ने अपनी फिल्मों में नारी के दर्द, अस्तित्व की लड़ाई, मुश्किल महिला पात्र को काफ़ी सहजता से दिखाती थीं.

  • कल्पना लाजमी ख़ुद को महिला फिल्ममेकर कहलाना पसंद नहीं करती थीं.
  • रुदाली और दरमियान में उन्होंने लीक से हटकर कुछ नया दिया. इन फिल्मों ने देश-विदेश में कई पुरस्कार जीते.
  • 17 साल की उम्र में सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज में सायकोलाॅजी की पढ़ाई के समय ही उनका झुकाव वामपंथी विचारोंवाले क्षेत्रीय कलाकार भूपेन हजारिका पर आ गया. कहा जाता है क़रीब चालीस साल तक बिन फेरे हम तेरे के तर्ज़ पर यह अटूट रिश्ता रहा.
  • चित्रकार पेंटर ललिता लाजमी की बेटी थीं कल्पना और अभिनेता-निर्देशक गुरुदत्त उनके सगे मामा थे.
  • अपनी ज़िंदगी में वे दो पुरुषों से सबसे अधिक प्रभावित रहीं, पिता गोपी लाजमी, जो नेवी में कैप्टन थे और गायक-संगीतकार भूपेन हजारिका.
  • वे श्याम बेनेगल की असिस्टेंट रही. भूमिका फिल्म में कॉस्ट्यूम असिस्टेंट थीं, तो मंडी में असिस्टेंट डायरेक्टर रहीं.
  • उनके मित्र देव आनंद का कहना था कि वो दोस्तों की दोस्त थीं. उनका सेंस ऑफ ह्यूमर ग़ज़ब का था. था. खाने-खिलाने से प्यार और फिल्मों का पैशन ज़बर्दस्त था.
  • देव आनंद ने कल्पना को अपनी फिल्म हीरा पन्ना में ज़ीनत अमान वाला रोल ऑफर किया था, पर उन्होंने मना कर दिया था.
  • साल 1978 में कल्पना ने भूपेन के साथ मिलकर अपनी कंपनी शुरू की. पहली डॉक्यूमेंट्री डी. जी. मूवी पायोनियर का निर्देशन किया. यह बंगाली फिल्ममेकर धीरेन गांगुली के जीवन पर आधारित थी.
  • साल 1986 में शबाना आज़मी, नसीरुद्दीन शाह, फारुख़ शेख़, दीना पाठक और श्रीराम लागू लीड रोल वाली उनकी पहली फिल्म एक पल को क्रिटिक्स ने काफ़ी सराहा. कल्पना व गुलज़ार ने इसकी पटकथा लिखी थी और भूपेन ने संगीत दिया था. यह अपने समय से आगे की मूवी थी. नायिका शादीशुदा होने के बावजूद दूसरे पुरुष से रिलेशन रखती है और उसे इसका कोई पछतावा भी नहीं होता. वह इसके लिए हर जोखिम तक उठाने को तैयार होती है. उस समय एक स्त्री द्वारा इस तरह के बोल्ड सब्जेक्ट पर फिल्म बनाने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था.
  • उन्होंने दूरदर्शन के लिए लोहित किनारे सीरियल डायरेक्ट किया था.
  • कल्पना लाजमी का कहना था कि एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण उनकी दूर की रिश्तेदार हैं.
  • बंगाली लेखिका महाश्वेता देवी की लिखी लघुकथा पर आधारित रुदाली फिल्म के लिए साल 1993 में डिम्पल कपाड़िया को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था. कहानी राजस्थान की ऐसी महिलाओं पर थी, जो किसी की मृत्यु पर पैसे लेकर रोने के लिए जाती थीं. उन्हें रुदालियां (रुदन करनेवाली) कहा जाता था.
  • किरण खेर, आरिफ ज़कारिया, तब्बू, सयाजी शिंदे जैसे मंझे हुए कलाकारों के साथ उनकी दरमियान फिल्म हटकर रही. इसमें 1940-50 के हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को दिखाया गया है. एक अभिनेत्री के करियर का उतार-चढ़ाव भी. जहां उसे ऐसा बेटा होता है, जिसे हर्माफ्रोडाइट की समस्या रहती है, जिसमें वो स्त्री-पुरुष दोनों के सम्मिलित पर अविकसित जननांगों के साथ जन्म लेता है. मां-बेटे के संघर्ष की अनोखी दास्तान है यह फिल्म. पहले इस भूमिका को शाहरुख खान करनेवाले थे, लेकिन उनके इंकार करने पर आरिफ ज़कारिया ने किया.
  • मैरिटल रेप पर केंद्रित उनकी फिल्म दमन भी काफ़ी चर्चा में रही थी. रवीना टंडन को इस फिल्म के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का नेशनल अवॉर्ड मिला था.
  • उनकी क्यों और सुष्मिता सेन अभिनीत चिंगारी भी उत्कृष्ट अलग तरीक़े की फिल्म रही.
  • उनकी राजनीति पर आधारित सिंहासन नामक एक स्क्रिप्ट तैयार थी, जिसमें वे ऐश्वर्या राय को लीड रोल में लेना चाहती थीं, पर ऐसा हो ना सका.
  • उन्होंने भूपेन हजारिका- द वे आई निव हिम बुक भी लिखी थी और इस पर द टेम्पेस्ट नाम से फिल्म बनाने वाली थीं, पर इससे पहले उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.

ये निर्देशिका भी किसी से कम नहीं…

  • आज की संजीदा निर्देशक में तनुजा चंद्रा का नाम भी शुमार है. उन्होंने जहां यश चोपड़ा के साथ दिल तो पागल है फिल्म के लिए पटकथा लिखी, वहीं महेश भट्ट के साथ ज़ख़्म की. टीवी सीरियल ज़मीन आसमान से उन्होंने निर्देशन की शुरुआत की. साल 1998 आई उनकी पहली फिल्म दुश्मन से उन्हें अलग पहचान मिली. संघर्ष, सूर-द मेलोडी ऑफ लाइफ, फिल्म स्टार, होप एंड लिटिल सुगर, सिलवट, क़रीब क़रीब सिंगल जैसी फिल्मों में उनके निर्देशन की बेहद तारीफ़ हुई. बिजनेस वीमेन पर उन्होंने एक बुक भी लिखी है.
  • नंदिता दास, जिनकी मां वर्षा लेखिका और पिता जतिन कलाकार हैं. उन्होंने अभिनेत्री और निर्देशक के रूप में अपना लोहा मनवाया. फायर, अर्थ, बवंडर में उन्हें सराहा गया. फ़िराक़ फिल्म के निर्देशन ने तो उन्हें दुनियाभर में मशहूर कर दिया. उनकी इस पहली फिल्म ने ही बीस से भी अधिक पुरस्कार बटोरे.
  • अश्विनी अय्यर तिवारी की कॉमेडी ड्रामा फिल्म निल बटे सन्नाटा को आलोचनात्मक प्रशंसा मिली थी. उन्होंने इसके तमिल रीमेक अम्मा कनक्कू का भी निर्देशन किया. उनकी आयुष्मान खुराना, कृति सेनन, राजकुमार राव स्टार कास्ट बरेली की बर्फी लोगों ने ख़ूब पसंद की.
  • रेणुका शहाणे निर्देशित त्रिभंगा: टेढ़ी मेढ़ी क्रेज़ी अच्छी फिल्म रही. उन्होंने पहली बार अपनी मां के उपन्यास रीता वेलिंगकर पर आधारित रीता फिल्म का निर्देशन किया था और जल्द ही वे एक डार्क कॉमेडी पर फिल्म बनानेवाली हैं.
  • हेमा मालिनी ने टीवी सीरियल नुपूर और मोहिनी में निर्देशन कौशल का परिचय दिया. फिर दिल आशना है से फिल्म के निर्माण-निर्देशन में कदम रखा.

– ऊषा गुप्ता

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