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बच्चों को ज़रूर सिखाएं ये बातें (8 Things Parents Must Teach Their Children)

बच्चों की अच्छी परवरिश में पैरेंट्स की भूमिका अहम् होती है. कहते हैं बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, उन्हें जिस तरह से ढाला जाए, वे उसी तरह से ढल जाते हैं. इसलिए उन्हें बचपन से ही ऐसी छोटी, लेकिन महत्वपूर्ण बातों के बारे में बताना बेहद ज़रूरी है, जो उनके स्वस्थ व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक हो.

 

हाइजीन की बातें: बच्चों को बचपन से ही बेसिक हाइजीन की बातें बताना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि अच्छी पर्सनल हाइजीन की आदतें न केवल बच्चों को स्वस्थ रखती हैं, बल्कि उन्हें संक्रामक बीमारियों (जैसे- हैजा, डायरिया, टायफॉइड आदि) से भी बचाती हैं और बच्चों में स्वस्थ शरीर और स्वस्थ व्यक्तित्व का निर्माण करने में मदद करती हैं. बच्चों को यह समझाना बहुत ज़रूरी है कि गंदगी से होनेवाली बीमारियों से उनकी ज़िंदगी को ख़तरा हो सकता है, इसलिए उन्हें ओरल हाइजीन, फुट एंड हैंड हाइजीन, स्किन एंड हेयर केयर, टॉयलेट हाइजीन और होम हाइजीन के बारे में बताएं.

टाइम मैनेजमेंट: इस टेकनीक को सिखाकर पैरेंट्स अपने बच्चे को स्मार्ट बना सकते हैं. पढ़ाई के बढ़ते प्रेशर को देखते हुए अब तो अनेक स्कूलों में भी बच्चों को टाइम मैनेजमेंट टेकनीक सिखाई जाने लगी है. टाइम मैनेजमेंट को सीखने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह टेकनीक उनके स्कूल लाइफ में ही नहीं, बल्कि भविष्य के लिए भी बहुत फ़ायदेमंद है. इसलिए पैरेंट्स को चाहिए कि उन्हें बचपन से ही टाइम मैनेज करना सिखाएं, जैसे-
* सबसे पहले महत्वपूर्ण काम/होमवर्क की लिस्ट बनाएं.
* किस तरह से काम/होमवर्क को कम समय में निपटाएं?
* अन्य क्लासेस/गतिविधियों के लिए समय निकालें.
* किस तरह से सेल्फ डिसिप्लिन में रहें?
* सोने, खाने-पीने और खेलने का समय तय करें.

मनी मैनेजमेंट: बच्चों को मनी मैनेजमेंट के बारे में समझाना बेहद ज़रूरी है, जिससे उन्हें बचपन से ही सेविंग व फ़िज़ूलख़र्ची का अंतर समझ में आ सके और वे भविष्य में फ़िज़ूलख़र्च करने से बचें. बचपन से ही उन्हें सिखाएं कि कहां और कैसे बचत और ख़र्च करना है?, उन्हें शॉर्ट टर्म इंवेस्टमेंट करना सिखाएं. इसी तरह से उनमें धीरे-धीरे कंप्यूटर, लैपटॉप आदि ख़रीदने के लिए लॉन्ग टर्म इंवेस्टमेंट करने की आदत भी डालें.

पीयर प्रेशर हैंडल करना: मनोचिकित्सकों का मानना है कि बच्चों में बचपन से ही पीयर प्रेशर का असर दिखना शुरू हो जाता है. आमतौर पर 11-15 साल तक के बच्चों पर दोस्तों का दबाव अधिक होता है, पर पैरेंट्स इस प्रेशर को समझ नहीं पाते. आज के बदलते माहौल में पीयर प्रेशर का बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, इसलिए पैरेंट्स की ज़िम्मेदारी है कि इस स्थिति में-
* बच्चों का मार्गदर्शन करें, जिससे उन्हें मानसिक सपोर्ट मिलेगा.
* उनमें सकारात्मक सोच विकसित करें.
* बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार करें, ताकि अपनी हर बात वे आपके साथ शेयर करें.
* ग़लती होने पर प्यार से समझाएं.
* यदि बच्चा प्रेशर हैंडल नहीं कर पा रहा है या बच्चे के व्यवहार में किसी तरह का बदलाव महसूस हो, तो पैरेंट्स तुरंत उसके टीचर्स व दोस्तों से मिलें और विस्तार से जानकारी हासिल करें.

रिलेशनशिप मैनेजमेंट: बच्चों के भावनात्मक व सामाजिक विकास में रिलेशनशिप मैनेजमेंट की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, इसलिए पैरेंट्स होने के नाते आपकी ज़िम्मेदारी बनती है कि बच्चे में पॉज़िटिव रिलेशनशिप (रिलेशनशिप मैनेजमेंट) का विकास करने की शुरुआत
करें, जैसे-
* उन्हें अपने फ्रेंड्स और फैमिली मेंबर्स से परिचित कराएं.
* समय-समय पर बच्चों को उनसे मिलवाएं या फोन पर बातचीत कराएं.
* उनके साथ ज़्यादा टाइम बिताने से बच्चों की उनके साथ बॉन्डिंग मज़बूत होगी और रिलेशनशिप भी स्ट्रॉन्ग होगी.
* बच्चों में कम्यूनिकेशन स्किल डेवलप करें, ताकि वे पूरे आत्मविश्‍वास के साथ लोगों से बातचीत कर सकें.
* बच्चों को सोशल एक्टिविटीज़ में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करें, जिससे वे अधिक से अधिक लोगों के संपर्क में आएं.
* बच्चों को चाइल्ड फ्रेंडली माहौल प्रदान करें, जिससे वे बेहिचक ‘हां’ या ‘ना’ बोल सकें.

सेल्फ कंट्रोल: यह ऐसा टास्क है, जिसकी ट्रेनिंग बचपन से ही ज़रूरी है. सेल्फ कंट्रोल के ज़रिए बच्चे वर्तमान में ही नहीं, भविष्य में भी अनेक पर्सनल व प्रोफेशनल समस्याओं को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं. सेल्फ कंट्रोल सिखाने के लिए-
* बच्चों को प्रोत्साहित करनेवाली गतिविधियों में डालें, जिससे उनमें सेल्फ कंट्रोल का निर्माण हो, जैसे- स्पोर्ट्स, म्यूज़िक सुनना आदि.
* उन्हें घर की छोटी-छोटी ज़िम्मेदारियां सौंपें, जैसे- अपने कमरे की सफ़ाई करना, किड्स पार्टी का होस्ट बनाना, पेट्स की देखभाल की ज़िम्मेदारी आदि.
* उनकी सीमाएं तय करें. यदि बच्चा पैरेंट्स या अपने भाई-बहन के साथ बदतमीज़ी से बात करता है, तो तुरंत टोकें.
* उन्हें अनुशासन में रहना सिखाएं.

सिविक सेंस: बच्चों को अच्छा नागरिक बनाने की ज़िम्मेदारी पैरेंट्स की होती है. अच्छा
नागरिक बनने के लिए उन्हें बचपन से ही सिविक सेंस सिखाना बेहद ज़रूरी है. सिविक सेंस यानी समाज के प्रति अपने दायित्वों व कर्तव्य के बारे में उन्हें बताएं,
जैसे- घर में नहीं, बाहर भी स्वच्छता का ध्यान रखें, रोड सेफ्टी नियमों का पालन करना, सार्वजनिक जगहों पर धैर्य रखना, लोगों को
आदर-सम्मान देना, महिलाओं की इज़्ज़त करना, देशभक्ति की भावना आदि. पैरेंट्स की ज़िम्मेदारी है कि वे बच्चों को अलग-अलग तरीक़ों से सिविक सेंस सिखाएं.

सोशल मीडिया अलर्ट: टेक्नोलॉजी के बढ़ते प्रभाव से बच्चे भी अछूते नहीं हैं, इसलिए पैरेंटस की ज़िम्मेदारी बनती है कि वे बच्चों की सोशल मीडिया से जुड़ी एक्टिविटीज़ पर पैनी नज़र रखें. वे क्या ‘पोस्ट’ कर रहे हैं और किससे बातें कर रहे हैं? सोशल साइट्स पर कोई उन्हें परेशान तो नहीं कर रहा? हाल ही में हुए एक अध्ययन से यह साबित हुआ है कि जो बच्चे सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताते हैं, वे न केवल अपने समय का नुक़सान करते हैं, बल्कि इसका उनके मूड पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इसके अलावा स्कूल के टीचर्स का मानना है कि सोशल मीडिया पर वर्तनी और व्याकरण के कोई नियम नहीं होते. सोशल मीडिया पर चैट करते हुए ग़लत वर्तनी और व्याकरण के ग़लत नियमों का असर उनके स्कूली लेखन पर भी पड़ रहा है. इसलिए पैरेंट्स को चाहिए कि-
* लैपटॉप, स्मार्टफोन और टैबलेट का इस्तेमाल निर्धारित समय सीमा तक ही करने दें.
* स्मार्टफोन, टैबलेट और लैपटॉप को पासवर्ड प्रोटेक्टेड रखें.
* थोड़े-थोड़े समय बाद पासवर्ड बदलते रहें.
* नया पासवर्ड़ बच्चों को न बताएं. आपकी अनुमति के बिना वे इन्हें नहीं खोल पाएंगे.
* फिज़िकल एक्टिविटी के लिए उन्हें प्रोत्साहित करें.

– पूनम नागेंद्र शर्मा

 

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Usha Gupta

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