कहते हैं कि बच्चे कच्चे घड़े की तरह होते हैं, उन्हें जैसा ढालेंगे, वो वैसा ढल जाते हैं. बात चाहे व्यक्तित्व को निखारने की हो या व्यावहारिकता सिखाने की, बच्चे वही सीखते हैं, जो वो घर में देखते हैं. ऐसे में बच्चों के सामने पैरेंट्स की ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है. बच्चे में कमी ढूंढ़ने से पहले ख़ुद के व्यवहार को परखें, कहीं आपका व्यवहार ही तो उन्हें ऐसा नहीं बना रहा?
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि संवेदनशीलता या व्यवहार बच्चे कभी सिखाने से नहीं सीखते, बल्कि यह सब वह देखकर और ऑब्ज़र्व करके सीखते हैं. अगर पैरेंट्स बच्चों के सामने असंवेदनशील व्यवहार करेंगे, तो बच्चे कभी भी संवेदनशील नहीं होंगे.
बच्चों में संवेदनहीनता के लक्षण
* बच्चा ऐसे ही खेल खेलता है, जिसमें वह अकेला खिलाड़ी हो या जिसमें किसी टीम के साथ ना रहना पड़े.
* अक्सर ही वह चिड़चिड़ा या उखड़ा हुआ रहता हो.
* अगर घर का कोई सदस्य या मित्र परेशानी में हो तो बच्चा प्रभावित नहीं होता.
* घर या अपने आस-पास के वातावरण से अक्सर ही उसका कोई लेना-देना नहीं होता.
* घर या समाज के कामों, उत्सवों या पारिवारिक समारोहों में बहुत कम सहयोग देता है.
* लोगों से मिलना-जुलना पसंद नहीं करता.
* अपनी भावनाओं को प्रकट नहीं कर पाता.
क्यों होने लगते हैं बच्चे संवेदनहीन?
काउंसलर राधा रवीश भावे बताती हैं कि बच्चों के सामने हमेशा किसी की बुराई करना, उन्हें अपशब्द कहना, ख़ुद उनके सामने यह जताना कि आपको किसी की परवाह ही नहीं है आदि सभी कारणों से बच्चों में संवेदनाओं की कमी हो सकती है. उदाहरण के तौर पर अगर किसी मेहमान के घर आने की ख़बर आपको झुंझला देती है, तो आपका बच्चा भी उस मेहमान को लेकर असंवेदनशीलता दिखाएगा. अगर किसी घर में माता-पिता अपने ग़ुस्से को बड़ी सहजता से शांतिपूर्वक नियंत्रित करते हैं, तो निश्चित तौर पर बच्चा भी देखकर वैसा ही करेगा. इसके अलावा बच्चों के असंवेदनशील होने के कुछ और कारण हैं, जो इस प्रकार हैं-
* बच्चों को अपनी ही भावनाओं को समझने में तकलीफ़ होना.
* परिवारों का आकार छोटा होना.
* घरवालों या पैरेंट्स से अच्छा कम्यूनिकेशन ना होना.
* बाहरी दुनिया की असुरक्षा और बढ़ते अपराधों के कारण पैरेंट्स का अपने बच्चों को सोशल फंक्शन्स से दूर रखना है.
* बच्चों के सामने पैसे को सबसे महत्वपूर्ण बताना.क्या करें जब बच्चा बनने लगे संवेदनहीन?
डॉ. राधा बताती हैं, “आज बाहर की दुनिया बहुत प्रैक्टिकल है. ऐसे में यह बहुत ज़रूरी है कि बच्चे अपनी भावनाओं को समझें और सही तरी़के से प्रदर्शित करें. ऐसा करना बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास के लिए भी आवश्यक है. इससे उनकी पर्सनालिटी स्ट्रॉन्ग होगी. बच्चों के लिए ‘प्ले थेरेपी’ बहुत ही अच्छा तरीक़ा है, जिसमें बच्चों को अलग-अलग तरह के गेम्स के माध्यम से भावनाओं की अभिव्यक्ति सिखाई जाती है.”
निजी स्कूल की शिक्षिका रुतुजा शर्मा कहती हैं, “ऐसा नहीं है कि सभी बच्चे भावनाओं की कद्र नहीं करते, पर हां, अब बच्चे पहले जैसे नहीं हैं, क्योंकि घर, परिवार, रिश्ते, एक्सपोज़र सब कुछ बदल गया है. आजकल स्कूलों में भी इस बात का ख़ास ख़्याल रखा जाता है. बच्चों में संवेदनाएं ज़िंदा रहें, इसके लिए पैरेंट्स और टीचर्स को मिलकर कोशिश करनी होगी.”
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बड़ों के मनमुटाव उन तक ही सीमित हों
यह ग़लती हम अक्सर करते हैं कि बच्चों के सामने दूसरों को कोसते या भला-बुरा कहते हैं. ख़ासकर स्त्रियों को ध्यान रखना चाहिए कि अगर उनकी अपने ससुराल या किसी रिश्तेदार से नहीं बनती, तो भी बच्चों के सामने किसी भी प्रकार का असंवेदनशील वार्तालाप ना करें. बच्चों को पैसा नहीं, अपना समय दें
अपने व्यवहार में यह कभी झलकने ना दें कि आज की दुनिया में पैसा ही सब कुछ है. उन्हें अपने व्यवहार से यह बताएं कि रिश्ते या लोग सबसे ज़रूरी हैं. बच्चों को कुछ अच्छा करने पर कोई गिफ्ट देने की जगह अपना समय दें. उनके साथ ऐसी जगह समय बिताएं, जो उनकी पसंदीदा हो, जैसे- परीक्षा में अच्छे नंबरों से पास होने पर उन्हें पिकनिक पर ले जाएं, उनके साथ ख़ूब खेलें आदि.
भावनाओं से रू-ब-रू करवाएं
कभी-कभी बच्चे बिना किसी वजह के या बहुत छोटी-सी बात पर ग़ुस्सा या नाराज़ हो जाते हैं. ऐसा अक्सर उस समय होता है, जब उनमें कुछ भावनाएं या एहसास नए-नए जन्म लेते हैं. ऐसे में उनके ग़ुस्से पर उन्हें डांटें नहीं, बल्कि शांति से बैठकर उन्हें उनकी भावनाओं के बारे में बताएं.
ज़रूरी है भावनाओं का प्रदर्शन
डॉ. राधा बताती हैं कि भावनाओं का प्रदर्शन कभी ग़लत नहीं होता. हम इंसान हैं और भावनाएं हमारा बेसिक फीचर हैं. बच्चों के सामने अपनी भावनाओं का प्रदर्शन करने से हिचकिचाएं नहीं, वे आपसे सीख रहे हैं.
रहस्यमयी ना हो घर का वातावरण
कई घरों में बच्चों से काफ़ी सारी चीज़ें छिपाकर रखी जाती हैं, पर अगर आप बच्चे को कुछ नहीं भी बताना चाहते हैं, तो उनके सामने ऐसा मत जताइए कि आप कुछ छिपा रहे हैं. रहस्यमयी वातावरण बच्चों के लिए अच्छा नहीं है. इससे बच्चों का बड़ों पर से विश्वास कम हो जाता है, फिर आप चाहे कुछ अच्छा सिखा भी रहे हों, फिर भी वे आपका अनुकरण नहीं करेंगे.
हमेशा यथाशक्ति लोगों की मदद करें
घर की ग़ैरज़रूरी चीज़ें दूसरों में बांट दें. अगर कोई ज़रूरतमंद है, तो उसकी मदद करें. अगर रास्ते पर कोई दुर्घटना हुई हो, तो ज़रूर रुककर मदद करें. स़िर्फ ‘शेयरिंग इज़ केयरिंग’ कहने से कुछ नहीं होगा. वह केयरिंग आपको अपने व्यवहार में दिखानी पड़ेगी.
बच्चों को बताएं कि इमोशनल होना कोई बुरी बात नहीं है, पर हां संवेदनहीन होना हमारी नस्ल के लिए ख़तरनाक हो सकता है. बच्चों को सकारात्मकता के साथ जीवन के लिए ये अमूल्य पाठ ज़रूर पढ़ाएं.
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