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आज़ादी का ग़लत फ़ायदा तो नहीं उठा रहे आपके बच्चे?


आज़ादी एक ऐसा शब्द है, जिसे हर कोई महसूस करना चाहता है. आज़ादी के इस माह में इसका मतलब समझना बहुत ज़रूरी है. बच्चों के मामले में ये बात और भी ज़रूरी हो जाती है. आपके बच्चे आप द्वारा दी गई आज़ादी का कहीं ग़लत फ़ायदा तो नहीं उठा रहे? 

 

मॉडर्न ज़माने के पैरेंट्स अपने बच्चों को हर तरह की आज़ादी देना पसंद करते हैं. बच्चा थोड़ा बड़ा हुआ नहीं कि उसे घर में एक स्थान मिल जाता है. उसकी बातों को अहमियत मिलने लगती है, लेकिन इसी अहमियत का बच्चे कई बार ग़लत फ़ायदा उठाते हैं. ऐसे में जब तक पैरेंट्स को इसकी जानकारी होती है, बच्चे बहुत आगे निकल जाते हैं. आपके लाड़ले/लाड़ली के साथ भी कुछ ऐसा न हो जाए, इसके पहले सतर्क हो जाएं और उन पर नज़र रखें कि कहीं वो आप द्वारा दी गई आज़ादी का ग़लत फ़ायदा तो नहीं उठा रहे.

घूमने की आज़ादी

मॉडर्न बनने के चक्कर में पैरेंट्स का सख़्त रवैया अब बच्चों पर नहीं रह गया है. उन्हें लगता है कि ऐसा करके वो समाज के साथ तालमेल नहीं बिठा पाएंगे. 13 साल की पूजा की मां नित्या अपनी सहेलियों से बड़े ताव से कहती हैं कि आजकल के बच्चे बहुत समझदार हैं. उन्हें हर बात पर रोकना-टोकना अच्छी बात नहीं. वो जहां जाएं जाने देना चाहिए. इससे बच्चे और पैरेंट्स के बीच बॉन्डिंग बढ़ती है. नित्या की बातें सुनने में अच्छी लग सकती हैं, लेकिन क्या आपको लगता है कि टीनएज में बच्चे इतने समझदार हो जाते हैं कि उन्हें अपने हिसाब से ज़िंदगी जीने के लिए छोड़ दिया जाए! नहीं, बिल्कुल नहीं. ऐसा करने से बच्चों के दिमाग़ में ये बैठ जाता है कि वो जो भी करेंगे अच्छा करेंगे. भले ही आज वो क्लासेस से लेट आएं, लेकिन संभव है कि कल वो क्लासेस छोड़ दोस्तों के साथ कहीं बाहर घूमने निकल जाएं. उनके दिमाग़ में तो आपने डाल ही दिया है कि वो समझदार हैं. ऐसे में उन्हें अपना हर क़दम सही ही लगेगा.

क्या करें?

बच्चों को हर बात पर टोकना सही नहीं है, लेकिन उन पर नज़र रखना और उनकी दिनचर्या के बारे में जानकारी रखना आपका फर्ज़ है.

बोलने की आज़ादी

पहले पैरेंट्स के सामने बच्चों को अपनी बात रखने की आज़ादी नहीं थी. माता-पिता ने जो कह दिया बच्चे उसे फॉलो करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है. बचपन से ही पैरेंट्स अपने बच्चे को उसका मत व्यक्त करने की आज़ादी दे देते हैं. इसका बच्चे पर कई बार बुरा असर भी पड़ता है. जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, वो आपकी बात को काटना शुरू कर देता है. उसे लगता है कि वह सही है और आप ग़लत. इतना ही नहीं, जब किसी ग़लत बात पर आप उसे डांटते हैं, तो वो आपको अनसुना कर देता है. कई बार बच्चे ये भी कहते हैं कि पहले तो आप नहीं बोलते थे, फिर अब मैं इस बात पर ग़लत कैसे हो सकता हूं. इस तरह के सवाल आपको उलझा सकते हैं और आप दोनों के रिश्ते में दरार पड़ सकती है.

क्या करें?

बच्चों को अपना पक्ष रखने का पूरा मौक़ा दें, लेकिन इतना तय कर लें कि वो आपसे बड़े न हो जाएं. आपका निर्णय ही आख़िरी निर्णय हो.

अपना सर्कल बनाने की आज़ादी

आपने भी कई बार पैरेंट्स को कहते सुना होगा कि बच्चों का अपना सर्कल है. अब उन्हें उनकी दुनिया बसाने का पूरा हक़ है. वो अपने हिसाब से दोस्त बना सकते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस तरह के भाव आपके बच्चे के भविष्य के लिए उचित नहीं हैं. बनारस में रहनेवाले निखिल अरोरा (परिवर्तित नाम) के 8 साल के बेटे ने अपने से बड़े लड़कों के साथ दोस्ती कर ली. निखिल और उनकी पत्नी को इन दोस्तों के बारे में भनक भी नहीं थी. कुछ महीनों के बाद निखिल की पत्नी ने अपने बेटे को कुछ ऐसा करते देखा, जो उसकी उम्र के बच्चे नहीं करते. अपने बच्चे को ऐसा करते देख वो सकते में आ गईं. इस बात को उन्होंने अपने पति से शेयर किया. दोनों परेशान हुए, लेकिन बेटे से उस हरक़त के बारे में पूछ भी नहीं सकते थे. ऐसे में उन्होंने चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट की मदद ली. पति-पत्नी की बात सुनने के बाद साइकोलॉजिस्ट ने उन्हें बताया कि इस तरह की हरक़त तो स़िर्फ बड़े बच्चे ही कर सकते हैं. मुमक़िन है कि आपके बच्चे की दोस्ती उसकी उम्र से काफ़ी बड़े बच्चों के साथ हो गई है. निखिल ने जब पता किया, तो साइकोलॉजिस्ट की बात सही निकली. किसी तरह दोनों पति-पत्नी अपने बच्चे को उस सर्कल से छुड़ाने में सफल हुए.

क्या करें?

आपका बच्चा अभी माइनर है. ऐसे में उसे कोर्ट भी इजाज़त नहीं देता कि वो अपना फैसला ख़ुद कर सके, फिर आप तो माता-पिता हैं. बच्चा किससे मिलता है, कहां जाता है आदि बातों पर नज़र रखें.

पढ़ाई की आज़ादी

पहले की अपेक्षा आजकल के पैरेंट्स अपने बच्चों को खुलकर जीने देते हैं. वो बच्चे पर किसी तरह की रोक-टोक लगाना पसंद नहीं करते. 13 साल की निकिता के पापा अविनाश को तब आश्‍चर्य हुआ, जब उनकी बेटी ने किसी ख़ास कोचिंग क्लास में एडमिशन कराने की ज़िद्द पकड़ ली. अविनाश के लाख मना करने पर भी उसने उसी क्लास में दाख़िला लिया. अविनाश जानते थे कि वो क्लास बहुत अच्छा नहीं है, लेकिन वे बेटी को मना नहीं कर पाए. बेटी के एडमिशन के कुछ महीनों बाद अविनाश को पता चला कि उसकी कई सहेलियां उसी क्लास में पढ़ती हैं. तब अविनाश को पूरा मामला समझ आया. साथ ही निकिता की पढ़ाई पर भी इसका असर देखने को मिला. अतः बच्चों को आज़ादी दें, लेकिन एक लिमिट तक. इस उम्र में उनमें इतनी समझदारी नहीं होती कि वो अपना बुरा-भला समझ सकें.

क्या करें?
बच्चों की राय ज़रूर लें, लेकिन निर्णय ख़ुद लें. उन्हें सही तरह से समझाने की कोशिश करें.
पहनने की आज़ादी

वैसे तो हमारे समाज में सबको अपने धर्म और मन-मुताबिक़ पहनने की आज़ादी है, लेकिन छोटी उम्र से ही बच्चों को इसकी आज़ादी देकर आप उनका भविष्य बिगाड़ रही हैं. मनीषा ख़ुद को मॉडर्न मां बताती थीं. अपने बच्चों को मॉडर्न कपड़े पहनाने में कभी पीछे नहीं हटीं, लेकिन जब उनकी बेटी कॉलेज में गई, तो उसने वैसे ही कपड़े पहनना जारी रखा, जो वो बचपन से पहनती आयी है. बड़ी होती बेटी को शॉर्ट कप़ड़ों में देखकर अब मनीषा को थोड़ा अटपटा लगने लगा. कई बार उन्होंने बेटी को इसके लिए टोका, लेकिन बेटी ने सीधा जवाब दिया कि बचपन से तो आप मुझे ऐसे ही कपड़े पहनाती आयी हैं, अब क्या हुआ? आपके सामने इस तरह की स्थिति न आए, इसलिए समझदारी से बच्चों से डील करें.

क्या करें?
किसी भी तरह का आउटफिट ख़राब नहीं होता, लेकिन आसपास के माहौल को देखकर ही इसका निर्धारण करना चाहिए.

 

स्मार्ट टिप्स 
  • मॉडर्न बनने के चक्कर में अपनी सभ्यता और संस्कृति को दांव पर न लगाएं.
  • बच्चे को बच्चा ही रहने दें. कम उम्र में उसे बहुत होशियार/समझदार बनाने की कोशिश न करें.
  • घर में ऐसा माहौल तैयार करें कि बच्चा आपसे डरे नहीं, लेकिन कोई भी बात आपसे छिपाए नहीं.
  • दूसरों के बच्चे को देखकर अपने घर का माहौल बदलने की कोशिश न करें.
  • कोशिश करें कि बच्चे को सही परवरिश मिले.
    – श्‍वेता सिंह
Meri Saheli Team

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