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केमिकल से पके फल-सब्ज़ियों से हो सकती हैं गंभीर बीमारियां

 

पोषण और स्वास्थ्य की बात आते ही हमारा ध्यान जाता है ताज़ा, रंग-बिरंगे, स्वादिष्ट फलों और सब्ज़ियों पर, क्योंकि हर कोई जानता है कि इनमें पोषण और सेहत का ख़ज़ाना छिपा है. लेकिन पोषण का यह ख़ज़ाना आपको कुपोषित और गंभीर बीमारियों की चपेट में भी ले सकता है, क्योंकि आजकल अधिकतर फल व सब्ज़ियों को कृत्रिम तरी़के यानी केमिकल्स से पकाकर आकर्षक बनाकर बेचा जा रहा है. इसमें कोई दो राय नहीं कि शुद्ध रूप में फल व सब्ज़ियां हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फ़ायदेमंद हैं, लेकिन मात्र मुना़फे के लिए इन्हें पकाने के लिए जिन हानिकारक केमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है, वे बेहद ख़तरनाक होते हैं.

– मुख्यतौर पर कैल्शियम कार्बाइड, एसिटिलीन, एथिलीन, प्रॉपलीन, इथरिल, ग्लाइकॉल और एथनॉल आदि को लोकल फ्रूट इंडस्ट्री द्वारा कृत्रिम रूप से फलों को पकाने के काम में लाया जाता है. इनमें से कैल्शियम कार्बाइड के हानिकारक असर को देखते हुए कई जगह उसे प्रतिबंधित कर दिया गया है, लेकिन आज भी भारत में अधिकतर फल विक्रेता फलों को कृत्रिम तरी़के से पकाने के लिए कैल्शियम कार्बाइड का इस्तेमाल करते हैं.

– कैल्शियम कार्बाइड हमारे शरीर के लिए बेहद ख़तरनाक होता है, क्योंकि इसमें आर्सेनिक और फॉस्फोरस होते हैं, जो सेहत के लिए बहुत ही हानिकारक होते हैं. बहुत-से देशों में तो इस पर रोक है, लेकिन भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश व नेपाल जैसे देशों में यह खुलेआम बिकता है.

– केमिकली पके हुए फल बहुत ज़्यादा सॉफ्ट और कम स्वादिष्ट होते हैं. इनकी शेल्फ लाइफ भी बहुत कम होती है. ऐसे फलों के सेवन से बहुत-सी बीमारियां जन्म लेती हैं.

– भारत में कैल्शियम कार्बाइड से फलों को पकाने पर प्रिवेंशन ऑफ फूड एडल्ट्रेशन (पीएफए) एक्ट के तहत प्रतिबंध है. जो भी इसमें दोषी पाया जाएगा, उसे तीन वर्ष की ़कैद और 1000 जुर्माना होगा. लेकिन हैरानी की बात यह है कि अब तक शायद ही इस क़ानून के तहत किसी को सज़ा हुई हो.

– केमिकली पके फलों के सेवन से चक्कर आना, उल्टियां, दस्त, खूनी दस्त, पेट और सीने में जलन, प्यास, कमज़ोरी, निगलने में तकलीफ़, आंखों और त्वचा में जलन, आंखों में हमेशा के लिए गंभीर क्षति, गले में सूजन, मुंह, नाक व गले में छाले और सांस लेने में तकलीफ़ जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

– केमिकल यदि अधिक मात्रा में शरीर में चला जाए, तो फेफड़ों में पानी भी भर सकता है.

– कृत्रिम तरी़के से पके आमों को खाने से पेट ख़राब हो सकता है. आंतों में गंभीर समस्या, यहां तक कि पेप्टिक अल्सर भी हो सकता है.

– इनसे न्यूरोलॉजिकल सिस्टम भी डैमेज हो सकता है, जिससे सिर में दर्द, चक्कर, याददाश्त व मूड पर असर, नींद में द़िक्क़त, कंफ्यूज़न और हाइपोक्सिया (इसमें शरीर में या शरीर के एक या कुछ हिस्सों में ऑक्सीजन की मात्रा पर्याप्त रूप में नहीं पहुंचती) तक हो सकता है.

– यदि गर्भवती महिलाएं इन केमिकल्स से पके फलों का सेवन करती हैं, तो बच्चे में भी कई असामान्यताएं हो सकती हैं.

 

कैसे चुनें फल-सब्ज़ियां?

– उन पर कोई दाग़-धब्बे न लगे हों. वो कहीं से कटे हुएन लगें.

– हमेशा फल व सब्ज़ियों को खाने से पहले अच्छी तरह से धो लें.

– छिलका निकालकर इस्तेमाल करने से केमिकल्स का असर कम होगा.

– केमिकल्स का प्रभाव कम करने के लिए कुछ सब्ज़ियों के ऊपरी पत्ते व परतों को निकालने के बाद उसका इस्तेमाल करें, जैसे- पत्तागोभी या सलाद के पत्ते.

– कृत्रिम तरी़के से पके आम में पीले और हरे रंग के पैचेस होंगे यानी पीले रंग के बीच -बीच में हरा रंग भी दिखेगा.

– जबकि प्राकृतिक रूप से पके आम में यूनीफॉर्म कलर होगा या तो पीला या हरा.

– इसके अलावा केमिकली पके आम का जो पीला रंग होगा, वो नेचुरली पके आम के मुक़ाबले बहुत ही ब्राइट होगा यानी अननेचुरल ब्राइट यलो कलर.

– केमिकली पके आम को खाने पर मुंह में हल्की-सी जलन महसूस होगी. कुछ लोगों को तो दस्त, पेट में दर्द और गले में जलन तक महसूस हो सकती है.

– प्राकृतिक रूप से पके आम को काटने पर पल्प का कलर ब्राइट रेडिश यलो होगा, जबकि केमिकली पके आम के पल्प का रंग लाइट और डार्क यलो होगा, जिसे देखकर समझ में आ जाता है कि यह पूरी तरह से पका नहीं है.

– प्राकृतिक रूप से पके आम बहुत ही रसीले होंगे, जबकि केमिकल से पके आम में मुश्किल से रस मिलेगा.

– जो फल बाहर से देखने में बहुत ही ब्राइट कलर के और आकर्षक लगें और सबका कलर एक जैसा यानी यूनीफॉर्म लगे, जैसे- केले के एक बंच में सभी केले एक ही तरह के लगें, तो बहुत हद तक संभव है कि वो केमिकल से पकाए गए हों.

– इसी तरह से सारे टमाटर या पपीते का रंग एक जैसा ब्राइट लगे, तो वो केमिकल से पके होंगे.

– मौसमी फलों को ही चुनें, यदि मौसम से पहले ही फल-सब्ज़ियां मिल रही हैं, तो उन्हें न ख़रीदना ही समझदारी होगी.

किन केमिकल्स के इस्तेमाल की इजाज़त है?

– कुछ केमिकल्स की सीमित मात्रा के इस्तेमाल की इजाज़त ज़रूर है. ये केमिकल्स एक तरह से कम हानिकारक होते हैं, जैसे- एथेफॉन (एथिलीन रिलीज़र). इस केमिकल से फलों को पकाने के लिए इसके घोल में फलों को डालना होता है या फिर इसके धुएं से फलों को पकाया जाता है.

– इस केमिकल से आमतौर पर आम, केले और पपीते को पकाया जाता है.

– इससे पके फलों का रंग प्राकृतिक रंगों से भी कहीं अधिक बेहतर होता है, जिससे फल प्राकृतिक लगते हैं और इनकी शेल्फ लाइफ भी कैल्शियम कार्बाइड से पके फलों से अधिक
होती है.

– एथिलीन भी काफ़ी सुरक्षित माना जाता है. यह फलों में मौजूद प्राकृतिक एजेंट होता है, जो फलों को पकाता है. इसीलिए पकाने की प्रक्रिया को थोड़ा तेज़ करने के लिए भी इसका बाहर से इस्तेमाल किया जाता है. एवोकैडो, केला, आम, पाइनेप्पल, अमरूद और पपीता पकाने के काम में लाया जाता है.

– गीता शर्मा

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