बढ़ती महंगाई के साथ ही प्रॉपर्टी के रेट्स भी तेज़ी से बढ़ रहे हैं. ऐसे में घर ख़रीदते समय जल्दबाज़ी में लिया गया कोई भी ़फैसला या भूल आपको भारी पड़ सकती है. सुरक्षित घर ख़रीदने के लिए किन बातों का रखें ख़ास ख़्याल? आइए, जानते हैं.
नया मकान ख़रीदते समय ये न भूलें कि मकान के ज़रिए आप लाइफ टाइम सेविंग करने जा रहे हैं. इसलिए अपनी ओर से कोई भूल या चूक न होने दें. सजग रहें, सही चुनाव करें और कुछ बातों का ख़्याल रखें.
1. पहला घर देखकर उसके दीवाने न हो जाएं
‘फर्स्ट इंप्रेशन इज़ द लास्ट इंप्रेशन’ अगर आप मन में ऐसी सोच रखकर घर ख़रीदने जा रहे हैं, तो आप ग़लत साबित हो सकते हैं, क्योंकि ये ज़रूरी नहीं कि पहली नज़र में जो मकान आपके मन को भा जाए, वो वाक़ई में ड्रीम होम ही साबित हो. हो सकता है रात के समय रोशनी से जगमगाते ताजमहल-सा नज़र आने वाले मकान में सुबह सूरज की एक किरण भी न पहुंचती हो... या ये भी हो सकता है कि जो घर अंदर से बिल्कुल चकाचक, साफ़-सुथरा नज़र आ रहा है, वो बाहर से पपड़ीनुमा दीवारों से घिरा हो या उसमें लीकेज आदि की समस्या हो. अतः स़िर्फ एक बार ही देखकर घर को ख़रीदने की न ठान लें. दो-पांच बार अच्छी तरह देखने के बाद ही कोई निर्णय लें.
2. समझें प्रॉपर्टी की भाषा
फलां व्यक्ति ने कह दिया कि वो मकान 1000 स्क्वायर फीट है या बिल्डर द्वार मिली बुकलेट पर लिखा है कि प्रत्येक मकान 1200 स्क्वायर फीट है, तो इसका मतलब ये नहीं है कि आप उनकी बातों पर विश्वास कर लें. ख़ुद प्रॉपर्टी एरिया के बारे में जानने की कोशिश करें. अधिकांशतः प्रॉपर्टी एरिया को तीन नामों से जाना जाता है सुपर बिल्ट अप, जम्बो बिल्ट अप एवं कारपेट एरिया. ऐसे मकान जिसमें लिफ्ट, पैसेज आदि का समावेश किया जाता है उसे सुपर बिल्ट अप एरिया कहते हैं और जिसमें स्विमिंग पुल से लेकर क्लब, जिम एवं गार्डन तक की जगह शामिल की जाती है, उसे जम्बो बिल्ट अप एरिया कहा जाता है और कारपेट एरिया चाहरदीवारी के बीच की जगह को कहते हैं. सही प्रॉपर्टी का चुनाव करने के लिए इन तीनों में क्या फ़र्क है, ये जानना ज़रूरी है. क्योंकि सामान्यतः बिल्डर्स सुपर या बिल्ट अप एरिया का ज़िक्र करते हैं, जिसे हम कारपेट एरिया समझकर मकान ख़रीद लेते हैं.
3. बजट पहले ही तय कर लें
आप पहले घर देखेंगे, उसे पसंद करेंगे और उसके बाद पैसों का इंतज़ाम करेंगे. इस सोच के साथ घर ख़रीदना आपको भारी पड़ सकता है. मकान देखने या ख़रीदने से पहले अपना बजट तय कर लें. इसके लिए सबसे पहले ब्रोकर से नहीं बैंक मैनेजर से मिलें और इस बात की जानकारी लें कि आपकी सैलरी पर कितना होम लोन मुहैया हो सकता है और कितनी राशि आप अपनी जमा-पूंजी से लगा सकते हैं. होम लोन के साथ-साथ स्टैंप ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन एवं ब्रोकेज की रक़म भी अपने बजट में ज़रूर जोड़ें और हां, इंटीरियर डिज़ाइनिंग की राशि भी, क्योंकि नए घर में लोगों की तारीफें बंटोरने के लिए इंटीरियर डेकोरेशन तो करना ही होगा. अतः बजट निश्चित होने के पश्चात ही घर ख़रीदने जाएं.
4. प्रॉपर्टी क़ाग़जात को दोस्तों पर न छोड़ें
ब्रोकर आपका बहुत ही अच्छा दोस्त है या आपका जिगरी दोस्त कानूनी-गैरकानूनी प्रॉपर्टी की अच्छी समझ रखता है, इसलिए उनके भरोसे पर प्रॉपर्टी से जुड़े सारे पेपर वर्क छोड़ने की ग़लती न करें. क़ाग़जात की सही जांच-परख के लिए प्रोफेशनल लीगल एडवाइज़र की सहायता लें, जो प्रॉपर्टी के साथ ही प्रॉपर्टी लॉ की भी समझ रखता हो, ताकि उसकी मदद से आप लीगली स्ट्रॉन्ग एग्रीमेंट साइन कर सकें. यदि आप रिसेल प्रॉपर्टी ख़रीद रहे हैं तो शेयर सर्टिफिकेट, होम लोन ड्यूज सर्टिफिकेट, नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी), चैन एग्रीनमेंट रजिस्ट्रेशन, ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट (ओसी), सोसायटी एसेसमेंट टैक्स रिसिप्ट आदि क़ाग़जात मौजूदा मालिक के पास हैं या नहीं ,ज़रूर चेक करें वरना आप ठगे जा सकते हैं.
5. आंख मूंदकर किसी पर भी भरोसा न करें
चाहे ब्रोकर आपका दोस्त हो या बिल्डर आपका रिश्तेदार, घर ख़रीदते वक़्त किसी पर भी आंख मूंदकर विश्वास करने की ग़लती न करें. प्रॉपर्टी एरिया, डॉक्यूमेंट्स आदि से जुड़ी सभी छोटी-बड़ी जानकारी अपने पास रखें. किसी दूसरे पर भरोसा न करते हुए ख़ुद पर भरोसा रखें और अच्छी तरह सोचने-समझने के बाद ही घर ख़रीदें.
6. बिल्डर्स से जुड़े सवालात ज़रूर करें
घर ख़रीदते समय न स़िर्फ मकान के बारे में पूरी जानकारी रखें, बल्कि बिल्डर्स से जुड़े सवाल भी ज़रूर पूछें. फिर चाहे बिल्डर कितना भी मशहूर क्यों न हो. यदि आप सीधे बिल्डर से प्रॉपर्टी ख़रीद रहे हैं, तो पता कर लें कि बिल्डर के पास टाइटल सर्टिफिकेट है या नहीं, राइट टू डेवलेपमेंट के अंतर्गत वो बिल्डिंग बना सकता है या नहीं, उसके पास ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट (ओसी) है या नहीं आदि, और यदि प्रॉपर्टी अंडर कंस्ट्रक्शन है तो ये भी जानने की कोशिश करें कि यदि तय समय पर पजेशन नहीं मिला तो बिल्डर द्वारा कम्पन्सेशन कॉस्ट कितना होगा.
7. लोकैलिटी को ध्यान में रखें
फ्लैट ख़रीदते समय लोकैलिटी यानी मुहल्ले/इलाके (जहां फ्लैट मौजूद है) का भी ख़ास ध्यान रखें. ख़ासकर तब जब आपके साथ बच्चे भी हों, क्योंकि बच्चों की परवरिश पर लोकैलिटी का बहुत प्रभाव पड़ता है. साथ-साथ ये भी ध्यान रखें कि फ्लैट से स्टेशन, बस स्टॉप आदि कितनी दूरी पर है? बस, ऑटो, टैक्सी आदि की सुविधा है या नहीं? देर-सबेर आसपास की सड़कें आवाजाही के लिए सुरक्षित हैं या नहीं, दुकान-मार्केट आदि कितनी दूरी पर है?
8. सोसायटी मेंटेनेंस के बारे में भी जान लें
मकान ख़रीदते समय प्रॉपर्टी एरिया, स्टैम्प ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन एवं ब्रोकेज की रक़म तक ही सीमित न रहें, बल्कि मकान ख़रीदने के बाद पैसों से जुड़ा कौन-कौन-सा मसला सिर उठा सकता है, इसकी भी पूरी जानकारी रखें यानी मेंटेनेंस, एनओसी आदि. लीगल एक्सपर्ट्स के अनुसार, यदि आप रिसेल फ्लैट ख़रीदने जा रहे हैं, तो ड्यूज़ (बकाया राशि) से संबंधित पूरी जानकारी भी अवश्य रखें, जैसे- पूर्व मालिक ने मेंटेनेंस भरा है या नहीं, प्रॉपर्टी टैक्स चुकता किया है या नहीं या फिर पानी बिल, लाइट बिल बकाया तो नहीं है आदि.” ध्यान रहे यदि आप ड्यूज़ की जानकारी को नज़रअंदाज़ करेंगे, तो हो सकता है सारे ड्यूज़ आपको ही भरने पड़ें.
9. पार्किंग स्पेस न भूलें
मेट्रो सीटीज़ में पार्किंग को लेकर काफ़ी मुसीबतें झेलनी पड़ती हैं. कुछ जगहों पर पार्किंग के लिए मंथली पे करना पड़ता है या कुछ बिल्डर्स फ्लैट ख़रीदते वक़्त ही पार्किंग के पैसे भी ले लेते हैं. अतः अपनी गाड़ी की सुरक्षा के लिए पार्किंग से जुड़े मसले भी ज़रूर जान लें, जैसे- वहां पार्किंग की सुविधा है या नहीं? पार्किंग चार्जेज़ कितना है? आदि. ताकि बाद में सच पता चलने पर आप ख़ुद को ठगा महसूस न करें.