Relationship & Romance

पहला अफ़ेयर… लव स्टोरी: उपहार (Pahla Affair… Love Story: Uphaar)

हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह.. यूट्यूब पर चलती ग़ज़ल और उसके शहर से गुज़रता हुआ मैं… दिल में यादों का सैलाब औरआंखों में नमी अनायास उतर आती है. ऐसा नहीं था कि उसके शहर से मेरा कोई राब्ता था या कोई जान-पहचान थी. मानचित्र में दर्ज वहशहर मेरे लिए नितांत अजनबी था. यह इत्तेफाक ही था कि उससे मुलाकात उसके शहर में उसके घर पर हुई. बात नब्बे के दशक की है. मैं आईएएस में सलेक्शन होने के बाद ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जा रहा था. मैं इतना बेफिक्र और लापरवाह थायह भी नहीं जानता था कि इस हफ्ते मेरी ज़िंदगी एक नया मोड़ लेने जा रही है. नई दुनिया के सतरंगी सपनों की नींद तब टूटी जब ट्रेन नेतेज़ी से हिचकोले खाकर अपनी रफ्तार रोक दी. गहन बीहड जंगल, जहां इंसान दूर-दूर तक नहीं थे, में ट्रेन का रुक जाना दहशत पैदाकर रहा था. भय के इस माहौल में पता चला कि ट्रेन के कुछ पहिये पटरी से उतर गए. कब तक ट्रेन दुरूस्त होगी इसकी जानकारी किसीके पास नहीं थी. एक या दो दिन लग सकते हैं. वक्त काटने के लिए मैं यूं ही टहलता हुआ दूर निकल आया. ढाणियों से आच्छादित यह गांव अपने रंग में रंगा हुआ था. शहर कीआबोहवा से दूर एक ढाणी में ढोल नगाड़े बज रहे थे. मै कौतूहलवश देखने लगा तभी पीछे से पीठ पर थपथपाहट हुई. मुड़कर देखा तो देखता ही रह गया. गुलाबी लहंगा-चुनर ओढ़े, गुलाबी आंखों में गुलाबी चमक लिए और गौर वर्ण हथेलियों में गुलाबीचूड़ियां खनक रही थी. सादगी में सौन्दर्य निखर रहा था. कौन हो बाबू? क्या चाहिए? ऐसे एकटक क्या देख रहे हो… मखमली आवाजेड में वह ढेरों सवाल पूछ रही थी और मैं बेसुध खड़ा सुना रहा था. गांव की लड़कियां शहरी लड़कों के हृदय में प्रेम काअंकुरण करती हैं वैसे ही कुछ मैंने महसूस किया. उसने मुझे झंझोड़ते हुए फिर से अपना सवाल दोहराया, मैं वर्तमान में लौटा. ट्रेन हादसे के बारे में उसे बताया. उसने अपने पिता को मेरीस्थिति समझाई. सरल हृदय के धनी उन लोगों ने मुझे अपने यहां रुकने  का आग्रह किया- ‘जब तक ट्रेन ठीक नहीं हो जाती बाबू तबतक आप यहां आराम से रह सकते हैं. घर में शादी है आप शरीक हों, हमें अच्छा लगेगा.’ न जाने क्यों मैंने उनका आमंत्रण स्वीकार करलिया. शादी की रस्मों में गुलाबी लड़की थिरकती उन्मुक्त-सी उछलती-कूदती कुछ न कुछ गुनगुनाती रहती. मेरा दिल उसे देखकर धड़क जाता. यह लड़की कुछ अलग थी. कुछ बात थी जिसके कारण मेरा दिल मेरा नहीं था. रात के समय जब मै गांव के अंधेरे को निहार रहा था, तो वह मेरे पास आ बैठी. हम दोनों देर तक बातें करते रहे. मैं अपने कॉलेज केकिस्से सुनाता रहा. आगे की ट्रेनिंग के बारे में बताया और वह अपनी ज़िंदगी के अनछुए पहलुओं से अवगत करा रही थी. उसकी बातेंजादू थी, मैं डूब रहा था. अचानक उसने मेरा हाथ थाम लिया. ‘जो सितारे रात में तेज चमकते हैं वे प्रेम में चोट खाए हुए प्रेमी हैं. जाने-अनजाने में जब प्रेम किया और उसे पाने में खुद को असमर्थपाया. प्रेम कह देने में नहीं है बाबू. यह देह की भाषा से परिलक्षित हो जाता है. मैं तुम्हारे लिए नहीं बनी हूं. इसलिए अपनी आंखों में कोईख्वाब मत संजोना. कल मेरी शादी है.’ ‘तुम्हारी शादी… तुम तो दुल्हन जैसी नहीं लग रही.’ पूछ  बैठा उससे. ‘हां बाबू, मुझे नहीं पता मेरा आने वाला समय कैसा होगा, मैं हर पल को जीना चाहती थी. तुम्हारे मन को पढ़ा तो बता देना ज़रूरीसमझा.’ मै आसमां से सीधे ज़मीं पर आ गिरा. अभी तो प्रेम कहानी शुरू भी नहीं हुई थी कि खत्म होने की बात आ गई. ‘एक सवाल पूछने कीहिमाकत कर सकता हूं? क्या तुम भी मुझसे…’ मेरी बात बीच में काटती हुई बोली- ‘उन प्रश्नों का कोई अर्थ नहीं होता जिनका जवाब देने में एक उम्मीद जग जाए, मैं कोई उम्मीद नहींहूं, दरख़्त हूं, तुम्हारे लिए हरी नहीं हो सकती.’ उसकी आंखें छलछला गई. हारा हुआ दिल लेकर मैं दो क़दम पीछे हटकर मुड़ा ही था कि उसकी आवाज़ गूंजी- ‘बाबू मेरी शादी का उपहार नहीं दोगे?’ ‘क्या चाहिए इस अजनबी से, बोलो?’…

June 27, 2023

ये काम औरतों का है, ये काम मर्दों का- क्या आप भी लिंग के आधार पर काम को लेकर यही सोच रखते हैं? (Men’s Work, Women’s Work: Division Of Work And Social Inequalities Associated With Gender)

‘अरे बहनजी एक बात बतानी थी. आज सुबह मैं मिसेज़ गुप्ता के घर गई थी और मैंने देखा कि उनका बेटा झाड़ू-पोछा कर रहा था. मैं तोहैरान हो गई, भला ये भी कोई लड़कों का काम है?’  मिसेज़ मिश्रा ने ये बात मिसेज़ जोशी को बताई तो मिसेज़ जोशी की बेटी ने कहा- ‘आंटी इसमें क्या ग़लत है. गुप्ता आंटी को दो दिन से बुख़ार है और उनकी काम वाली भी छुट्टी पर है, तो बेटा ही करेगा न और अपने ही तो घर का काम किया है.’ ‘देखो बेटा मुझे पता है तुम ज़्यादा ही मॉडर्न हो लेकिन कुछ काम सिर्फ़ लड़कियों के ही होते हैं, लड़कों को शोभा नहीं देता कि वो घर काझाड़ू-पोछा भी करें.’ मिसेज़ मिश्रा ने तुनककर कहा. दरअसल हमारा सामाजिक ढांचा कुछ ऐसा बना हुआ है कि हम कभी भी महिला और पुरुष को समान नज़रों से नहीं देखते. अगर किसीघर में कोई लड़का झाड़ू लगाता या किचन में ख़ाना पकाता दिख जाए तो वो इसी तरह गॉसिप का विषय बन जाता है.  हमारे परिवारों में आज भी अधिकांश लोग लिंग के आधार पर ही काम को तय करते हैं. लड़कियों को शुरू से ही एक कुशल गृहणी बनने की ट्रेनिंग दी जाती है.  वो पढ़ाई में कितनी भी अच्छी हो लेकिन जब तक वो गोल रोटियां बनाने में निपुण नहीं हो जाती उसे गुणी नहीं माना जाता.  घर के काम लड़कियां करती हैं और बाहर के काम पुरुष- यही सीख बचपन से दी जाती है और यही धारणा सबके मन में बैठजाती है. यही वजह है कि आज भी फ़ायनेंस और प्रॉपर्टी से जुड़े काम महिलाएं करने से हिचकती हैं. शादी से पहले बैंक, प्रॉपर्टी, बिल पेमेंट्स यानी फ़ायनेंस से जुड़े तमाम काम उनके पिता या भाई करते थे और शादी के बाद उनकेपति. पुरुषों को तो जाने ही दो ख़ुद महिलाएं भी यही सोच रखती हैं कि बैंक, लेन-देन या कोई भी इस तरह के काम तो मर्दों के ही होतेहैं. यहां तक की पढ़ी-लिखी और कामकाजी महिलाएं भी यही सोच रखती हैं, क्योंकि उनके भीतर वो आत्मविश्वास पैदा ही नहींहोता कि ये काम हम भी कर सकती हैं.  मिस्टर शर्मा के घर गांव से उनकी भांजी कुछ दिन मुंबई घूमने के लिए आई थी. जब वो वापस गई तो मिस्टर शर्मा को गांव से उनके कईरिश्तेदारों के फ़ोन आए और सबने यही कहा कि ये हम क्या सुन रहे हैं, घर की साफ़-सफ़ाई तुम करते हो और यहां तक कि किचन मेंकाम भी करवाते हो. घर की औरतों को शर्म आनी चाहिए और तुमको भी. मिस्टर शर्मा ने उनसे बहस करना ठीक नहीं समझा लेकिन सच यह था कि वो अर्ली रिटायरमेंट ले चुके थे. उनको घर में बैठने की आदतनहीं थी और वो सुबह जल्दी उठ जाते थे. उनकी बहू कामकाजी थी, उसकी शिफ़्ट ही कुछ ऐसी थी कि लेट नाइट तक काम करना पड़ताथा. ऐसे में मिस्टर शर्मा अपनी वाइफ़ और बहू की मदद के लिए सुबह जल्दी उठने पर उस वक्त का सदुपयोग कर लेते थे. उनके घर पर सभी मिल-जुलकर काम एडजस्ट करते थे, जिसमें उनको तो कोई दिक़्क़त नहीं थी लेकिन बाक़ी लोगों को काफ़ी परेशानीथी. कामवाली इसलिए नहीं लगाई थी कि उनका भरोसा नहीं कि कभी आए, कभी न आए, समय का भी ठिकाना नहीं उनका तो इससे बेहतरहै अपना काम ख़ुद कर लें. हम ऊपरी तौर पर तो मॉडर्न बनते हैं और लिंग भेद को नकारने की बातें करते हैं, लेकिन हमारे व्यवहार में, घरों में और रिश्तों में वोयह भेदभाव साफ़ नज़र आता है. घरेलू काम की ज़िम्मेदारियां स़िर्फ बेटियों पर ही डाली जाती हैं. बचपन से पराए घर जाना हैकी सोच के दायरे में ही बेटियों की परवरिश की जाती है.…

June 27, 2023

10 झूठ जो पत्नियां अक्सर पति से बोलती हैं (10 Common lies that wives often tell their husbands)

पति-पत्नी के बीच जितना प्यार होता है, तकरार भी उतनी ही ज़्यादा होती है. और झूठ... इसकी तो कोई सीमा…

June 26, 2023

पहला अफेयर- किरदार (Pahla Affair: Kirdaar)

भले ही अब लैला-मजनू, शीरी-फरहाद और कच्चे घड़े पर माहिवाल से मिलने आने वाली सोहनी का ज़माना नहीं रहा, मगर प्यार-मुहब्बत अब भी है, दिल तो आज भी उसी तरह धड़कते हैं और महबूब का इंतजार भी वैसा ही है. मैं अपनी मां और तीन भाई-बहनोंके साथ रहती थी, सामने वाले घर में पहली मंजिल के एक कमरे में वो सलोना-सा किराएदार लड़का आया. कहीं नौकरी करता होगा. अक्सर ही यहां-वहां दिख जाता. कुछ अजीब-सी कशिश थी उसमें, बस आंखें मिलती ही थीं कि मेरी नजरें झुक जातीं. वो हल्का-सा मुस्करा कर निकल जाता. उसकी मुस्कान भी बड़ी मनमोहक थी. दिल तो दिल है और फिर उम्र भी ऐसी. जिम्मेदारियों के बोझ तले दबी मैं इन इश्क-मुहब्बत की बातों से अपने आप को दूर ही रखती, लेकिन उसके सामने आते ही धड़कने इतनी तेज हो जाती कि सामने वाले को भी सुनाई दे जाएं. पिताजी दूसरे शहर में मुनीमगीरी करते थे, कभी-कभार ही आते. उन दिनों हालात और ट्रैफिक आज की तरह नहीं था. बच्चे गलियों में देररात तक खेला करते थे. एक दिन शाम का समय, अंधियारा-सा छा रहा था, बादल छाए हुए थे और ए दम से आंधी चलने लगी और मूसलाधार बारिश शुरू हो गई. मेरा छोटा दस वर्षीय भाई गली में खेल रहा था कि उसी समय किसी बच्चे की गेंद भाई की आंख पर जोरसे लगी और खून बहने लगा. भाई की चीख सुनकर सभी बाहर को भागे. डॉक्टर तक कैसे पहुंचें, हम सब के आंसू रुकने का नाम नहीं लेरहे थे. वो साईकलों का ज़माना था. वो लड़का फुर्ती से साईकल लाया और मैं भाई को लेकर पीछे कैरियर पर बैठ गई. इस जल्दबाज़ीमें मैं अपना दुपट्टा तक लेना भूल गई थी. मौसम की परवाह न करते हुए तेज़ी से साईकल चलाकर डॉक्टर तक पहुंच गए. शुक्र प्रभु काकि आखं बच गई. उसके बाद तो हम जैसे उसके कर्ज़दार ही हो गए. वो अक्सर हमारे घर आता, उसकी आंखों में मुहब्बत का पैगाम मैनें पढ़ लिया था, मगरहमारी और उसकी दुनिया में बहुत फासला था. उसके पहले खत के जवाब में ही मैंने लिख दिया- “मैं न साथ चल सकूंगी तेरे साथ दूरतलक, मुझे फ़कत अपनी ज़िंदगी में ‘किरदार’ ही रहने दे…”  उसने भी मेरी मजबूरी समझी और बेहद सम्मान के साथ अपने प्यार की लाज रखने के लिए मुझसे दूरी बना ली. आज ज़िंदगी बढ़िया चल रही, मगर भाई की आंख के पास का निशान मुझे आज भी उस पहले अफेयर की याद दिलाता है. विमला गुगलानी

May 19, 2023

पहला अफेयर: छुअन… (Pahla Affair: Chhuan)

पहली बार जब मिले थे तब राजी बीस बरस की जवान लड़की और बिंदा दुबला-पतला शर्मिला-सा किशोर. पंद्रह बरस की उम्र में भीवह बारह-तरह बरस का लगता. बिंदा राजी की मां की मुंहबोली बहन का बेटा था. दोनों एक ही शहर की रहने वाली थी. अक्सर अपनीमां के साथ बिंदा राजी के घर आता रहता था. दोनों की मांएं अपने शहर की गलियों की पुरानी बातों में खो जाती और बिंदा अपनी मांकी बातों की उंगली थाम कर थोड़ी देर तक तो अपरिचित गलियों में घूमता-फिरता रहता फिर उकता जाता. तब राजी उसके मन कीस्थिति समझ कर उसे पढ़ने को कहानियों की कोई किताब या कॉमिक्स देती और अपने पास बिठा लेती थी. बिंदा गर्दन झुकाए चुपचापकिताब में सिर घुसा कर बैठा रहता. उसे राजी के पास बैठना न जाने क्यों बहुत अच्छा लगता, क्यों लगता यह तक वह समझ नहीं पाताथा, लेकिन बस इतना ही उसे समझ आता कि राजी के आसपास रहना उसे अच्छा लगता है. एक खुशबू सी मन को मोहती रहती. वहबहुत कम बात करता. बस यदा-कदा गर्दन उठाकर पलभर कमरे में नजर फिराता हुआ राजी को भी देख लेता और फिर सिर नीचा करकेकिताब में खो जाता. फिर साल भर बाद बिंदा के पिता का तबादला दूसरे शहर हो गया और वह लखनऊ चला गया. जाने के पहले उसकी मां बिंदा को लेकरराजी की मां से मिलने आई. राजी की मां ने सामान लाने के लिए उसे पास की दुकानों तक भेजा. राजी अपनी काइनेटिक उठाकर बाजारजाने लगी तो बिंदा से बोली, "चल बिंदे तुझे भी घुमा लाऊं." और बिंदा  कुछ सकुचाता हुआ उसके पीछे बैठ गया. गाड़ी जब चली तो राजी का दुपट्टा उड़ता हुआ बिंदा के कंधे और चेहरे को छूते हुएउसके मासूम मन को भी सहला गया. राजी की यही छवि बिंदा के मन पर छप गई तस्वीर बनकर. सालों बीत गए पर बिंदे के मन पर छपीऔरत की यह तस्वीर धुंधली नहीं हो पाई बल्कि उसके रंग और गहरे ही होते गए. उस रोज बिंदा राजी के साथ बाजार से घर लौटा तोउसके हाथ राजी की दी हुई चॉकलेट, बिस्किट, टॉफीओं की सौगात से भरे हुए थे और उसका दिल राजी के दुपट्टे की छुअन की सौगातसे. फिर तेरह साल बाद जब बिंदा राजी से मिला तब वह अट्ठाइस बरस का लंबा-चौड़ा, गोरा-चिट्टा जवान था जो फौज में भर्ती हो चुका थाऔर तैतीस बरस की राजी दो बच्चों की मां थी. राजी अपनी मां के ही घर थी जब बिंदा भरी दोपहरी में उसके दरवाजे पर आ खड़ा हुआ. "हाय रब्बा बिंदा तू...?" राजी बित्ता भर के बिंदे की जगह छह फुट ऊंचे फौजी मेजर बलविंदर को देखकर देखती रह गई. "क्या कद निकाला है रे तूने, वारी जाऊं. पता नहीं होता कि तू आने वाला है तो मैं तो कभी पहचान ही नहीं पाती तुझे." बिंदा मुस्कुरा दिया. उसकी आंखों मे राजी का तेरह बरस पुराना दुपट्टा लहरा गया. बिंदे ने देखा बरामदे में राजी की वही पुरानीकाइनेटिक अब भी खड़ी थी. थोड़ी देर सबसे बातें करने के बाद बिंदा अचानक उठ खड़ा हुआ. "चलो मुझे काइनेटिक पर घुमा लाओ." "चल हट बिंदे मजाक करता है? भला अब तू क्या बच्चा रह गया है? गाड़ी उठा और खुद ही घूम आ. रास्ते तो तेरे पहचाने हुए हैं ही." राजी को हंसी आ गई "फौज में तो तू बड़ी-बड़ी गाड़ियां चलाता होगा. भला अब मैं क्या तुझे अपने पीछे बिठाऊंगी." "पर मुझे तो तुम्हारे ही पीछे बैठना है. चलो न." बलविंदर ने बहुत जिद की तो राजी गाड़ी निकाल लायी. अब उसे चार पहियों वाली गाड़ी में आगे की सीट पर बैठने की आदत हो गईथी. वह डर रही थी कि पता नहीं चला भी पाएगी की नहीं काइनेटिक, लेकिन हिम्मत करके चला ही ली. बिंदा एक बार फिर उसके पीछेबैठा था. एक अनजानी खुशबू से महकता हुआ. आज बिंदे के गालों को फिर से राजी का नारंगी दुपट्टा सहला रहा था. वही दुपट्टा जोफौज की कठिन ट्रेनिंग के बीच जब तब उसे पिछले सालों में नरमाइ से सहलाता रहा है. जो रातों को खुशबू बन ख्वाबों में महकता रहा हैऔर जिसकी खुशबू के बारे में उसके सिवा कोई नहीं जानता, खुद राजी भी नहीं. वह चाहता भी नहीं कि कोई जाने. वह तो बस इसखुशबू में अकेले ही भीगना चाहता है और कुछ नहीं. बिंदे के मुंह पर आज वही किशोरों वाली झिझकी सी मासूम खुशी है और राजी के चेहरे पर वही बीस बरस की उम्र वाली लुनाई औरचमक थी. एक आजाद खुशी. जाने बिंदे ने राजी को उसका अल्हड़ और आजाद कुंवारापन एक बार फिर कुछ पलों के लिए लौटा दियाथा या राजी ने आज बिंदे के दोनों हाथ उसके मासूम किशोरपन की प्यार भरी सौगात से भर दिए थे… नहीं जानता था मेजर बलविंदर. जानना चाहता भी नहीं था. वह तो बस कुछ पलों के लिए राजी के आसपास रहना चाहता था. उसके दुपट्टे की छुवन को महसूस करनाचाहता था जो उसके दिल को  छू जाती थी. न जाने क्यों. यह पहले प्यार का अहसास था या कुछ और, नहीं जानता था बलविंदर. जानना चाहता भी नहीं था.…

April 27, 2023

कैसे करें मैरिड लाइफ को रिचार्ज़? (How To Recharge Married Life?)

कभी ऑफिस का वर्कलोड, तो कभी घर की टेंशन और समय की कमी के चलते कपल्स की सेक्स लाइफ बोरिंग…

April 20, 2023

रिलेशनशिप को हैप्पी-स्ट्रॉन्ग बनाने के लिए अपनाएं ये 11 हेल्दी हैबिट्स (11 Healthy Habits To Keep Your Relationships Strong And Happy)

रिश्तों की मिठास एक तरफ जहां पति-पत्नी के व्यकितत्व को संवारती है, वहीं दूसरी तरफ जब रिश्तों में तनाव बढता…

April 4, 2023

लाइफ़स्टाइल नई, पर सोच वही… रिश्तों में आज भी लड़कियों को नहीं मिलता बराबरी का दर्जा… (Equality In Relationships: Women Still Far From Being Equal With Men)

ये माना समय बदल रहा है और लोगों की सोच भी. समाज कहने को तो पहले से कहीं ज़्यादा मॉडर्न ही गया है. लाइफ़स्टाइल बदल गई, सुविधाएं बढ़ गईं, लग्ज़री चीजों की आदतें हो गई… कुल मिलाकर काफ़ी कुछ बदल गया है, लेकिन ये बदलाव महज़ बाहरी है, दिखावाहै, छलावा है… दिखाने के लिए तो हम ज़रूर बदले हैं लेकिन भीतर से हमारी जड़ों में क़ैद कुछ रूढ़ियां आज भी सीना ताने वहीं कि वहींऔर वैसी कि वैसी खड़ी हैं… थमी हैं… पसरी हुई हैं. जी हां, यहां हम बात वही बरसों पुरानी ही कर रहे हैं, बेटियों की कर रहे हैं, बहनों की कर रहे हैं और माओं की कर रहे हैं… नानी-दादी, पड़ोसन और भाभियों की कर रहे हैं, जो आज की नई लाइफ़स्टाइल में भी उसी पुरानी सोच के दायरों में क़ैद है और उन्हें बंदी बना रखा हैखुद हमने और कहीं न कहीं स्वयं उन्होंने भी.  भले ही जीने के तौर तरीक़ों में बदलाव आया है लेकिन रिश्तों में आज भी वही परंपरा चली आ रही है जिसमें लड़कियों को बराबरी कादर्जा और सम्मान नहीं दिया जाता. क्या हैं इसकी वजहें और कैसे आएगा ये बदलाव, आइए जानें.  सबसे बड़ी वजह है हमारी परवरिश जहां आज भी घरों में खुद लड़के व लड़कियों के मन में शुरू से ये बात डाली जाती है कि वोदोनों बराबर नहीं हैं. लड़कों का और पुरुषों का दर्जा महिलाओं से ऊंचा ही होता है. उनको घर का मुखिया माना जाता है. सारे महत्वपूर्ण निर्णय वो ही लेते हैं और यहां तक कि वो घर की महिलाओं से सलाह तक लेना ज़रूरी नहीं समझते. घरेलू कामों में लड़कियों को ही निपुण बनाने पर ज़ोर रहता है, क्योंकि उनको पराए घर जाना है और वहां भी रसोई में खाना हीपकाना है, बच्चे ही पालने है तो थोड़ी पढ़ाई कम करेगी तो चलेगा, लेकिन दाल-चावल व रोटियां कच्ची नहीं होनी चाहिए.ऐसा नहीं है कि लड़कियों की एजुकेशन पर अब परिवार ध्यान नहीं देता, लेकिन साइड बाय साइड उनको एक गृहिणी बनने कीट्रेनिंग भी दी जाती है. स्कूल के बाद भाई जहां गलियों में दोस्तों संग बैट से छक्के मारकर पड़ोसियों के कांच तोड़ रहा होता है तो वहीं उसकी बहन मां केसाथ रसोई में हाथ बंटा रही होती है.ऐसा नहीं है कि घर के कामों में हाथ बंटाना ग़लत है. ये तो अच्छी बात और आदत है लेकिन ये ज़िम्मेदारी दोनों में बराबर बांटीजाए तो क्या हर्ज है? घर पर मेहमान आ जाएं तो बेटियों को उन्हें वेल्कम करने को कहा जाता है. अगर लड़के घर के काम करते हैं तो आस-पड़ोस वाले व खुद उनके दोस्त तक ताने देते हैं कि ये तो लड़कियों वाले काम करता है.मुद्दा यहां काम का नहीं, सोच का है- ‘लड़कियोंवाले काम’ ये सोच ग़लत है. लड़कियों को शुरू से ही लाज-शर्म और घर की इज़्ज़त का वास्ता देकर बहुत कुछ सिखाया जाता है पर संस्कारी बनाने के इसक्रम में लड़के हमसे छूट जाते हैं.अपने घर से शुरू हुए इसी असमानता के बोझ को बेटियां ससुराल में भी ताउम्र ढोती हैं. अगर वर्किंग है तो भी घरेलू काम, बच्चों व सास-ससुर की सेवा का ज़िम्मा अकेले उसी पर होता है. ‘अरे अब तक तुम्हारा बुख़ार नहीं उतरा, आज भी राजा बिना टिफ़िन लिए ऑफ़िस चला गया होगा. जल्दी से ठीक हो जाओ बच्चेभी कब तक कैंटीन का खाना खाएंगे… अगर बहू बीमार पड़ जाए तो सास या खुद लड़की की मां भी ऐसी ही हिदायतें देती है औरइतना ही नहीं, उस लड़की को भी अपराधबोध महसूस होता है कि वो बिस्तर पर पड़ी है और बेचारे पति और बच्चे ठीक से खानानहीं खा पा रहे. ये चिंता जायज़ है और इसमें कोई हर्ज भी नहीं, लेकिन ठीक इतनी ही फ़िक्र खुद लड़की को और बाकी रिश्तेदारों को भी उसकीसेहत को लेकर भी होनी चाहिए. घर के काम रुक रहे हैं इसलिए उसका जल्दी ठीक होना ज़रूरी है या कि स्वयं उनकी हेल्थ केलिए उसका जल्दी स्वस्थ होना अनिवार्य है? पति अगर देर से घर आता है तो उसके इंतज़ार में खुद देर तक भूखा रहना सही नहीं, ये बात बताने की बजाय लड़कियों को उल्टेये सीख दी जाती है कि सबको खिलाने के बाद ही खुद खाना पत्नी व बहू का धर्म है. व्रत-उपवास रखने से किसी की आयु नहीं घटती और बढ़ती, व्रत का संबंध महज़ शारीरिक शुद्धि व स्वास्थ्य से होता है, लेकिनहमारे यहां तो टीवी शोज़ व फ़िल्मों में इन्हीं को इतना ग्लोरीफाई करके दिखाया जाता है कि प्रिया ने पति के लिए फ़ास्ट रखा तोवो प्लेन क्रैश में बच गया… और इसी बचकानी सोच को हम भी अपने जीवन का आधार बनाकर अपनी ज़िंदगी का अभिन्न हिस्साबना लेते हैं. बहू की तबीयत ठीक नहीं तो उसे उपवास करने से रोकने की बजाय उससे उम्मीद की जाती है और उसकी सराहना भी कि देखोइसने ऐसी हालत में भी अपने पति के लिए उपवास रखा. कितना प्यार करती है ये मेरे राजा से, कितनी गुणी व संस्कारी है. एक मल्टी नेशनल कंपनी में काम करने वाली सुप्रिया कई दिनों से लो बीपी व कमज़ोरी की समस्या झेल रही थी कि इसी बीचकरवा चौथ भी आ गया. उसने अपनी सास से कहा कि वो ख़राब तबीयत के चलते करवा चौथ नहीं कर पाएगी, तो उसे जवाब मेंये कहा गया कि अगर मेरे बेटे को कुछ हुआ तो देख लेना, सारी ज़िंदगी तुझे माफ़ नहीं करूंगी. यहां बहू की जान की परवाहकिसी को नहीं कि अगर भूखे-प्यासे रहने से उसकी सेहत ज़्यादा ख़राब हो गई तो? लेकिन एक बचकानी सोच इतनी महत्वपूर्णलगी कि उसे वॉर्निंग दे दी गई. आज भी हमारे समाज में पत्नियां पति के पैर छूती हैं और उनकी आरती भी उतारती दिखती हैं. सदा सुहागन का आशीर्वाद लेकरवो खुद को धन्य समझती हैं… पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद मिलने पर वो फूले नहीं समाती हैं… ऐसा नहीं है कि पैर छूकर आशीर्वाद लेना कोई ग़लत रीत या प्रथा है, बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद बेहद ज़रूरी है और ये हमारेसंस्कार भी हैं, लेकिन पति को परमेश्वर का दर्जा देना भी तो ग़लत है, क्योंकि वो आपका हमसफ़र, लाइफ़ पार्टनर और साथी है. ज़ाहिर है हर पत्नी चाहती है कि उसके पति की आयु लंबी हो और वो स्वस्थ रहे लेकिन यही चाहत पति व अन्य रिश्तेदारों कीलड़की के लिए भी हो तो क्या ग़लत है? और होती भी होगी… लेकिन इसके लिए पति या बच्चों से अपनी पत्नी या मां के लिए दिनभर भूखे-प्यासे रहकर उपवास करने कीभी रीत नहीं… तो फिर ये बोझ लड़कियों पर क्यों?अपना प्यार साबित करने का ये तो पैमाना नहीं ही होना चाहिए.बेटियों को सिखाया जाता है कि अगर पति दो बातें कह भी दे या कभी-कभार थप्पड़ भी मार दे तो क्या हुआ, तेरा पति ही तो है, इतनी सी बात पर घर नहीं छोड़ा जाता, रिश्ते नहीं तोड़े जाते… लेकिन कोई उस लड़के को ये नहीं कहता कि रिश्ते में हाथ उठानातुम्हारा हक़ नहीं और तुमको माफ़ी मांगनी चाहिए.और अगर पत्नी वर्किंग नहीं है तो उसकी अहमियत और भी कम हो जाती, क्योंकि उसके ज़हन में यही बात होती है कि जो कमाऊसदस्य होता है वो ही सबसे महत्वपूर्ण होता है. उसकी सेवा भी होनी चाहिए और उसे मनमानी और तुम्हारा निरादर करने का हक़भी होता है.मायके में भी उसे इसी तरह की सीख मिलती है और रिश्तेदारों से भी. यही कारण है कि दहेज व दहेज के नाम पर हत्या वआत्महत्या आज भी समाज से दूर नहीं हुईं.बदलाव आ रहा है लेकिन ये काफ़ी धीमा है. इस भेदभाव को दूर करने के लिए जो सोच व परवरिश का तरीक़ा हमें अपनाना हैउसे हर घर में लागू होने में भी अभी सदियों लगेंगी, क्योंकि ये अंतर सोच और नज़रिए से ही मिटेगा और हमारा समाज व समझअब भी इतनी परिपक्व नहीं हुईं कि ये नज़रिया बदलनेवाली नज़रें इतनी जल्दी पा सकें. पत्नी व महिलाओं को अक्सर लोग अपनी प्रॉपर्टी समझ लेते हैं, उसे बहू, बहन, बेटी या मां तो समझ लेते हैं, बस उसे इंसान नहींसमझते और उसके वजूद के सम्मान को भी नहीं समझते.गीता शर्मा 

March 29, 2023

पहला अफेयर: मीठी-सी छुअन (Pahla Affair… Love Story: Meethi Si Chhuan)

मीति और मधुर बचपन से एक ही स्कूल में पढते थे, लेकिन मधुर के पिता का अचानक निधन हो गया और उसे मीति का स्कूल छोड़ सरकारी स्कूल में दाख़िला लेना पड़ा. लेकिन आते-जाते अक्सर दोनों के रास्ते मिल ही जाते थे और उनकी नज़रें मिल जातीं, तो दोनों केचेहरे  पर अनायास मुस्कुराहट आ जाती. स्कूल ख़त्म हुआ तो दोनों ने कॉलेज में एडमिशन ले लिया था. दोनों उम्र की उस दहलीज़ पर खड़े थे जहां आंखों में हसीन सपने पलने लगते हैं. मधुर भी एक बेहद आकर्षक व्यक्तित्व में ढल चुका थाऔर उसके व्यक्तित्व के आकर्षण में मीति खोती जा रही थी. कई बार मधुर ने उसे आगाह भी किया था कि मीति तुम एक रईस पिता की बेटी हो, मैं तो बिल्कुल साधारण परिवार से हूं, जहां मुश्किल से गुज़र-बसर होती है, लेकिन मीति तो मधुर के प्यार में डूब चुकी थी. वहकब मधुर के ख्यालों में भी बस गई थी वह यह जान ही नहीं पाया. मीति कभी नोट्स, तो कभी असाइनमेंट के बहाने उसके पास आ जाती, फिर कभी कॉफी, तो कभी  आइसक्रीम, ये सब तो उसका मधुरके साथ नज़दीकियां बढ़ाने का बहाना था.   अब मीति और मधुर क़ा इश्क कॉलेज में भी किसी से छिपा नहीं रह गया था. करोड़पति परिवार की इकलौती लाडली मीति कोपूरा विश्वास था कि मध्यवर्गीय परिवार के मधुर के कैंपस सेलेक्शन के बाद वह पापा को अपने प्यार से मिलवायेगी. मल्टीनेशनल कंपनी के ऊंचे पैकेज का मेल मिलते ही मधुर ने मीति को अपनी आगोश में ले लिया ऒर वह भावुक हो उठा, ”मीति, तुम तो मेरे जीवन मेंकी चांदनी हो, जो शीतलता भी देती है और चारों ओर रोशनी की जगमगाहट भी फैला देती है. जब हंसती हो तो मेरे दिल में न जानेकितनी कलियां खिल उठती हैं. बस अब मेरी जिंदगी में आकर मेरे सपनों में रंग भर दो.” मीति मधुर के प्यार भरे शब्दों में खो गई और लजाते हुए उसने अपनी पलकें झुका लीं और मधुर ने झट से उसकी पलकों को चूम  लिया था. इस मीठी-सी छुअन से उसका पोर-पोर खिल उठा. वह छुई मुई सी अपने में सिमट गई. लेकिन इसी बीच मीति के पापा ने उसकी ख्वाहिश को एक पल में नकार दिया और मधुर को इससे दूर रहने का फरमान सुना दिया. मधुर उदास पराजित-सा होकर दूर चला गया. दोनों के सतरंगी सपनों का रंग बदरंग कर दिया गया था. मधुर ने अपना फ़ोन नंबर भी बदल दिया था और अपनी परिस्थिति को समझतेहुए मीति से सारे संबंध तोड़ लिये थे.  मीति के करोड़पति पापा ने धूमधाम और बाजे-गाजे के साथ उसे मिसेज़ मेहुल पोद्दार बना दिया. उसका अप्रतिम सौंदर्य पति मेहुल केलिए गर्व  का विषय था. समय के साथ वह जुड़वां बच्चों की स्मार्ट मां बन गई थी. पोद्दार परिवार की बहू बड़ी-बड़ी गाड़ियों में घूमतीऔर अपने चेहरे पर खिलखिलाहट व मुस्कान का मुखौटा लगाए हुए अपने होने के एहसास और वजूद को हर क्षण तलाशती-सी रहती. उसे किसी भी रिश्ते में उस मीठी-सी छुअन का एहसास न हो पाता और वह तड़प उठती. सब कुछ होने के बाद भी वह खोई-खोई-सी रहती. इतना सब कुछ पाने के बाद भी वह मधुर की उस मीठी-सी छुअन के विचार से ही वह रोमांचित हो उठती थी... पूरे आठ वर्ष बीत गए थे. वह अपने परिवार और बच्चों के साथ संतुष्ट थी, परंतु आज भी सतरंगी सपनों की उड़ान और गुनगुनाती बयार, मधुर की प्यार भरी मीठी छुअन की चाह, उसके मन को आंदोलित करके भटका ही देती. वह सोचती... वह मधुर से माफी भी तो नहीं मांगपाई... आज भी वह उससे नाराज़ ही होगा. एक शाम वह अकेली ही मॉल के कॉफी शॉप में बैठ कर कॉफी का इंतज़ार कर रही थी. वह फोन पर अपनी नज़रें गड़ाए हुए थी, तभी मानो उसके कानों में सुरीला संगीत बज उठा था. मधुर के वजूद में बसी ख़ुशबू उसके चारों ओर फैल गईं थी. उसकी मीठी-सी छुअनकी भावनाएं पायल की मीठी-मीठी रुनझुन की सी संगीत लहरी उसके कानों में  गूंज उठी थीं. दोनों की नज़रें मिलीं और उसके दिल कीधड़कनें तेज़ हो गईं. “कैसी हो मीति?” “अच्छी हूं और तुम ?”…

March 26, 2023

रिश्तों को लज़ीज़ बनाने के लिए ट्राई करें ये ज़ायक़ेदार रिलेशनशिप रेसिपीज़… (Add Flavour To Your Marriage And Spice Up Your Relationship)

अगर आपको लगता है कि स्वाद सिर्फ़ खाने में ही होता है तो ऐसा नहीं है. ज़ायक़ा तो हर चीज़ का होता है और रिश्ते भी इससे अछूतेनहीं. रिश्तों को भी लज़ीज़ बनाया जा सकता है और उनकी भी अलग ही तरह की रेसिपीज़ होती हैं. तो चलिए ऐसी ही ज़ायक़ेदाररिलेशनशिप रेसिपीज़ के बारे में जानें और अपने रिश्तों को स्वादिष्ट बनाएं. सबसे पहले तो रिश्तों की सामग्री पर ध्यान दें. कितनी मात्रा में क्या डालना और किससे बचना है, चाहे वो प्यार हो या तकरार, अपनापन, लगाव या तनाव.सबसे पहले अपनेपन की मिठास घोलें. रिश्ते को और रिश्तेदारों को आप जब तक अपना नहीं मानेंगे तब तक वो स्वीट नहीं बनेंगे. बेहतर होगा रिश्ते को बोझ न समझकर मन से सबको अपनाएं.प्यार की चाशनी से रिश्तों को सींचें. प्यार होगा तो हर काम आसान होगा. मीठा बोलें, आप जितना स्वीटली बात करेंगे उतना ही सामने वाले के कानों को और मन को अच्छा लगेगा. रोमांस और रोमांच का तड़का भी लगाएं. आपका रिश्ता समय के साथ बोरिंग न बन जाए इसलिए उसमें रोमांस और रोमांच कातड़का ज़रूर लगते रहें.इश्क़ का नमक भी डालना न भूलें. एकदम कॉलेज रोमांस वाले अंदाज़ में पार्टनर से फ़्लर्ट करें. खाने में तेज़ नमक भले ही नुक़सानकरे और स्वाद भी बिगाड़ दे लेकिन रिश्तों में इश्क़ का नमक जितना तेज़ होगा रिश्तों का स्वाद और सेहत उतनी ही अच्छी रहेगी.एक-दूसरे को सरप्राइज़ गिफ़्ट्स या ऑफ़िस में सरप्राइज़ विज़िट दें. कभी छुट्टी के दिन कहीं बाहर न जाकर एक-दूजे के साथ पूरा दिन साथ बिताएं. रोमांटिक म्यूज़िक सुनें. एक साथ खाना बनाएं और अपनी बेडरूम लाइफ़ को भी रिवाइव करें. अपने रिश्ते को रूटीन न बनने दें, बल्कि उसे मसालेदार बनाएं. वीकेंड पर एक-दो दिन के लिए कहीं बाहर जाकर हनीमून पीरियड की यादें ताज़ा करें. एक-दूसरे की तारीफ़ करना न भूलें. चाहे वो उनके काम की हो या उनके प्रयास की. अपने रिश्ते में करारापन ऐड करने के लिए कॉम्प्लिमेंट्स का माइक्रोवेव यूज़ करें. इसमें अपने पार्टनर की तारीफ़ों को डालें औरगर्मागरम परोसें… ‘वाह, तुम्हारी आवाज़ में आज भी वही जादू है जो सबको अपना बना ले’, ‘तुम्हारे आंखें इतनी गहरी हैं कि बसडूब जाने को दिल करता है’, ‘आप आज भी एकदम फ़िट लगते हो…’ इस तरह की मसालेदार बातें आपके रिश्ते को स्पाइसीबनाती हैं.भरोसे के बाउल में सारी सामग्री को घोलें, क्योंकि जब तक रिश्ते में भरोसा नहीं पनपेगा तब तक प्यार, इश्क़ और मिठास इतनाकाम नहीं कर पाएंगे.केयरिंग और शेयरिंग के घी में रिश्तों को पकने दें. सिर्फ़ मीठा बोलकर, इश्क़ लड़ाकर कुछ नहीं होगा जब तक कि आप शेयरऔर केयर जैसी भावनाओं में रिश्तों को नहीं भिगोएंगे. मन कि बातें, अपने सुख-दुख ज़रूर एक-दूसरे से बांटें और एक-दूसरे कीदेखभाल और परवाह करने में भी कसर न छोड़ें.ईमानदारी की डिश पर रखकर सम्मान से गार्निश करके अपने रिश्ते को परोसें. रिश्तों में चीटिंग की कोई जगह नहीं होती इसलिएईमानदार रहें और एक-दूसरे को प्यार के साथ-साथ सम्मान भी दें.  इन अनहेल्दी चीज़ों से बचाएं अपने रिश्ते को… ईगो और ईर्ष्या की तेज़ आंच से बचें. ये रिश्तों को जलाकर ख़ाक कर देती है. झगड़े व तानों की मिर्च से अपने रिश्ते में कड़वापन कभी न घोलें. एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ेयर के जंक फ़ूड से रिश्ते की सेहत ख़राब होगी, इसलिए बाहरी स्वाद के इस आकर्षण से बचें. तनाव के ऑइल में न डूबने दें खुद को भी और अपने रिश्ते को भी, क्योंकि तनावपूर्ण रिश्ता आपके मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्यके लिए ठीक नहीं.ऐसा नहीं है कि लड़ाई झगड़े हों ही नहीं, क्योंकि ये संभव नहीं. जहां प्यार है, वहां तकरार भी होगी लेकिन ये तकरार एकदमसलाद या साइड डिश जैसी होनी चाहिए. ग़ुस्से में कभी मुंह से ऐसा कुछ न कह दें कि बाद में आपको भी पछताना पड़े. संयम की स्वीटडिश हमेशा मौजूद रहनी चाहिए.हल्की नोक-झोंक तो ठीक है लेकिन लड़ाई-झगड़ा इतना ज़्यादा न हो कि आपके प्यार की आइसक्रीम ही पिघल जाए.स्वार्थ और ब्लैकमेलिंग का फैट न चढ़ने दें अपने रिलेशनशिप पर. अक्सर हम अपनी सुविधा के लिए रिश्तों में भी स्वार्थी बन जातेहैं और अपने अनुसार चीजें करवाने के लिए पार्टनर को इमोशनली ब्लैकमेल करने लग जाते हैं. जिससे पार्टनर का आप पर सेभरोसा उठने लगता है और आपका सम्मान भी कम होने लगता है. बेहतर होगा अपने स्वार्थ के फैट की परत इतनी न चढ़ा लें कि डायटिंग की नौबत आ जाए और फिर डायटिंग से भी वो उतर नपाए.हर चीज़ को सिर्फ़ अपने नज़रिए से ही न देखें, बाकी लोगों का नज़रिया भी देखें, वरना रिश्ता या तो बर्फ़ जैसा ठंडा पड़ जाएगाया फिर जले खाने की तरह ही जल जाएगा. पैसों की रोटियों पर अपने रिश्ते की रेसिपी न बनाएं. प्यार और रिश्तों के बीच जब पैसा आ जाता है तो बहुत कुछ ख़राब हो जाताहै. बेहतर होगा संयमित और संतुलित मात्रा में सारे मसाले डालें. पैसों और ज़िम्मेदारियों को लेकर भी शुरुआत से ही साफ़-साफ़सब कुछ तय कर लें ताकि आपका रिश्ता हमेशा फ़्रेश और क्रिस्पी बना रहे. गीता शर्मा 

March 12, 2023
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