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शरीर ही नहीं, मन की सफ़ाई भी ज़रूरी है (Create In Me A Clean Heart)

हम अपने शरीर, घर, आस-पास के वातावरण को साफ़ रखने के लिए तो हर मुमक़िन कोशिश करते हैं, लेकिन कभी हम अपने मन की सफ़ाई के बारे में सोचते हैं? चलिए, ये भी करके देखते हैं. बॉस के हर हुक्म पर यस बॉस, क्लाइंट की हर हां में हां, रिश्तेदार, पड़ोसी की हर बात पर मुस्कुराना... हर बार हमारे चेहरे पर जो भाव नज़र आते हैं, क्या हमारे मन में वही भाव होते हैं? नहीं... दिनभर में हम अपने चेहरे पर जाने कितने मुखौटे चढ़ाते-उतारते हैं. अपने मन पर दिखावे की जाने कितनी परतें लगाते हैं, जिससे कई बार मन भारी हो जाता है. दूसरों को ख़ुश करने की चाह में हम अपने मन पर इतना बोझ डाल देते हैं कि हमारे मन की ख़ुशी दबती चली जाती है. हम अपने लिए जीना भूल जाते हैं. उतार दें सारे मुखौटे दूसरों की ख़ुशी की परवाह करना अच्छी बात है. उसके लिए मुखौटे पहनने में भी कोई बुराई नहीं, लेकिन दिनभर में कुछ समय ऐसा भी होना चाहिए, जब आपके चेहरे पर कोई मुखौटा न हो, आपके मन पर कोई दबाव या बोझ न हो. उस व़क्त आप ख़ुद से बातें कर सकते हैं. सही-ग़लत का आकलन कर सकते हैं. ख़ुद से साक्षात्कार ही हमें सही मायने में जीना सिखाता है. उस व़क्त हम वही सोचते हैं, जो हम चाहते हैं. ऐसा करने से हमारे मन की सारी कड़वाहट धुल जाती है और मन साफ़ हो जाता है. कह दें जो दिल में है दूसरों को ख़ुश रखने के लिए कई बार हम उनकी उस बात पर भी रिएक्ट नहीं करते, जो हमें बहुत बुरी लगती है. ऐसा करना ठीक नहीं. इसके दो नुक़सान हैं- एक ये कि हम मन ही मन उस व्यक्ति से चिढ़ने लगते हैं और दूसरा ये कि उस व्यक्ति को अपनी ग़लती का एहसास नहीं होता इसलिए वह बार-बार वही ग़लती दोहराता रहता है. इससे रिश्तों में खिंचाव आने लगता है. ऐसी स्थिति में मन की बात साफ़-साफ़ कह देना बेहद ज़रूरी है. इससे आप मन ही मन कुढ़ेंगी भी नहीं और सामने वाले को भी अंदाज़ा हो जाएगा कि आपको उसकी कौन-सी बात पसंद नहीं. यह भी पढ़ें: कितने दानी हैं आप?  रोना भी ज़रूरी है कई बार हम किसी की बात या किसी घटना से इतने आहत होते हैं कि लाख चाहने के बावजूद उस बात को भूल नहीं पाते और बार-बार उसी के बारे में सोचते रहते हैं. ऐसी स्थिति में मन ही मन दुखी होने की बजाय किसी करीबी से अपने मन की बात कहें. यदि रोने का मन कर रहा है तो उसके सामने जीभर कर रो लें. इससे आप हल्का महसूस करेंगी और हो सकता है, सामने वाला व्यक्ति आपको इस तरह समझाए कि आप उस घटना से आसानी से उबर जाएं. [amazon_link asins='B00WUGBBGY,B00SAX9X6G,B01951R2S2' template='ProductCarousel' store='pbc02-21' marketplace='IN' link_id='418469fb-b7e5-11e7-8af8-7d5e9d431fad'] दूसरों को नहीं, ख़ुद को बदलें हमारे आस-पास ऐसे कई लोग होते हैं जो हमें पसंद नहीं आते, लेकिन उनके बारे में सोचते रहना समस्या का समाधान नहीं है, क्योंकि लाख कोशिशों के बावजूद आप उन्हें सुधार नहीं पाएंगी. अतः उन्हें उसी रूप में स्वीकारें. इससे आपकी उनके प्रति चिढ़ कम होगी और आप उन्हें उनके तरी़के से हैंडल कर सकेंगी. यह भी पढ़ें: हम क्यों पहनते हैं इतने मुखौटे?

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