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कहीं डिजिटल और रियल पर्सनैलिटी में अंतर आपके रिश्ते को बिगाड़ तो नहीं रहा? (Difference In Digital and Real Personality May Affect Your Relationship)

कहीं डिजिटल और रियल पर्सनैलिटी (Difference In Digital and Real Personality) में अंतर आपके रिश्ते को बिगाड़ तो नहीं रहा?

सोशल मीडिया की दस्तक ने हमारी निजी ज़िंदगी को बहुत प्रभावित किया है. अधिकांश व़क्त हम यहां जो भी कुछ देखते हैं, करते हैं, वह हक़ीक़त से बिल्कुल विपरीत होता है. डिजिटल दुनिया की जो हमारी पर्सनैलिटी है, वह रियल लाइफ से अक्सर मेल नहीं खाती है. क्यों ऐसा करते हैं हम? और क्या है इसकी वजह? इसी के बारे में जानने की हमने यहां कोशिश की है.

लीला एक हाउसवाइफ हैं. वे बताती हैं कि पति के शोरूम और बच्चों के स्कूल चले जाने के बाद मैं खाली व़क्त में इंटरनेट, व्हाट्सऐप और फेसबुक पर समय बिताती थी. मेरे दोस्तों की संख्या सैकड़ों में थी. घर पर रहूं, तो लैपटॉप और बाहर निकली, तो मोबाइल में उंगलियां चलती ही रहती थीं. कुछ महीनों बाद यह स्थिति बन गई कि हमारा दांपत्य जीवन प्रभावित होने लगा. मैं बच्चों की केयर और परिवार की ज़िम्मेदारियों से दूर भागने लगी. पति की नाराज़गी और पैरेंट्स के समझाने पर मुझे आभास हुआ कि मैं ग़लत कर रही हूं. मुझे इससे निकलने में काफ़ी व़क्त लगा. लीला मात्र एक उदाहरण है, कमोबेश आज हर दूसरा व्यक्ति डिजिटल और रियल पर्सनैलिटी के बीच उलझा हुआ है.

निजी ज़िंदगी हो रही है प्रभावित

आज के दौर में हम सोशल मीडिया को पसंद या नापसंद तो कर सकते हैं, लेकिन उसे नज़रअंदाज नहीं कर सकते. आज लोग इंसानों के साथ कम और सोशल साइट्स ज़्यादा समय बिता रहे हैं. इस पर रिश्ते बनने से ज़्यादा बिगड़ने लगे हैं.

आपको बता दें कि 55 से 60 फ़ीसदी लोगों का तलाक़ आज के समय में सोशल साइट्स की वजह से हो रहा है. यह खुलासा अमेरिका के क़ानूनी फर्म के सर्वे में किया गया है. इसमें बताया गया है कि आजकल रिश्ते जल्द टूटने की वजह सोशल साइट्स के प्रति लोगों का एडिक्शन है.

आपके दोस्त अपनी लव लाइफ की शानदार तस्वीरें पोस्ट कर सकते हैं, लेकिन आपको इस बात का एहसास भी नहीं होता कि उनकी निजी यानी ऑफलाइन ज़िंदगी कितनी भयानक हो सकती है. उन्हें देखकर आपको भी लगता है कि आप भी अपने साथी के साथ ऐसी फोटो खिंचवाकर पोस्ट करें. हो सकता है आपका साथी ऐसा करने के ख़िलाफ़ हो या फिर आपके रिश्ते में थोड़ीबहुत तल्ख़ी हो, लेकिन इसके बावजूद आप चाहते हैं कि दुनिया को बताएं कि आप एक हैप्पी कपल हैं.

डिजिटल पर्सनैलिटी की बड़ी उम्मीदें 

डिजिटल पर्सनैलिटी बड़ी उम्मीदों को जन्म देती है. हो सकता है कि रियल लाइफ में आपकी लव लाइफ बहुत दिलचस्प या संतोषजनक न हो, पर डिजिटल लाइफ पर आप अपनी लव लाइफ को सबसे बेहतरीन और दिलचस्प दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते. अक्सर कपल्स जिन स्माइली और इमोशंस का इस्तेमाल डिजिटल लाइफ में अपना प्रेम ज़ाहिर करने के लिए करते हैं, उनका रियल लाइफ में मतलब तभी होता है, जब हक़ीक़त की ज़िंदगी में भी आप अपने साथी को प्यार करते हैं. दिखावटी प्रेम जो डिजिटल दुनिया में चलता है, वह रियल ज़िंदगी में कई बार नज़र तक नहीं आता है. लेकिन इससे उत्पन्न उम्मीदें आपके रिश्तों में सेंध लगाकर उन्हें बिगाड़ सकती हैं.

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मन-मुटाव का बनता कारण

बच्चे हों या बड़े, घर, कॉलेज, ऑफिस, ड्राइविंग यहां तक कि देर रात बिस्तर तक में आराम नहीं है. जिसे देखो, वही उलझा है डिजिटल दुनिया के रिश्तों में. जिनमें भले ही सच्चाई की संभावना न के बराबर हो, लेकिन सभी चैटिंग, फोटो शेयरिंग और कमेंट्स में सुकून और अपने सवालों के उत्तर ढूंढ़ने में लगे हैं. संवाद और एकदूसरे के संपर्क में रहने के नएनए तकनीकी तरीक़ों में बुरी तरह उलझी है आज की ज़िंदगी. टीनएजर्स ही नहीं, उम्रदराज़ लोगों की संख्या भी कम नहीं है, तकनीक के इस जाल में. शायद यही वजह है कि क़रीबी और सामाजिक रिश्ते गौण हो रहे हैं और लोग अवास्तविक दुनिया के सागर में डूब रहे हैं.

प्रभावित हो रही है सेक्स लाइफ

मनोवैज्ञानिक शमा अग्निहोत्री कहती हैं, आपके जीवनसाथी के साथ के अंतरंग पलों के दौरान स्मार्टफोन पर आई एक बेव़कूफ़ीभरी पोस्ट का नोटिफिकेशन आपसी रिश्तों में दरार पैदा करने के लिए काफ़ी है. युवा जोड़ों, विशेषकर

नौकरीपेशा की संख्या एकाएक तेज़ी से बढ़ी है और इनकी सेक्स लाइफ पर जिस तरह से डिजिटल दुनिया की वजह से असर पड़ा है, वह संबंधों में मनमुटाव उत्पन्न कर रहा है. सोशल मीडिया पर मित्रों के लगातार अपडेट्स के चलते लोग अपने जीवनसाथी के साथ क्वालिटी टाइम बिताने में असफल हो रहे हैं. यही नहीं, दूसरों को देखकर यह जीवनसाथी में बेमतलब की कमियां ढूंढ़ने को भी उकसा रहा है.

हक़ीक़त से अलग है यह दुनिया

जब आपको अपने बेडरूम की चारदीवारी के अंदर प्रेम नहीं मिलता, तो आप इसे कहीं बाहर खोजने लगते हैं. रिश्तों की ख़त्म होती गर्माहट और ऑनलाइन दुनिया में आसानी से मेलजोल बढ़ाने से अपने लिए एक नया साथी तलाशना काफ़ी आसान हो गया है. साथ ही यह आपको एक ग़लत क़दम उठाने में भी ज़्यादा व़क्त नहीं लगने देता, जिसके चलते आप अपने निजी रिश्तों को भी दांव पर लगा देते हैंसच तो यह है कि हम अपनी रियल पर्सनैलिटी से दूर होते जा रहे हैं और एक दिखावटी दुनिया का हिस्सा बन रहे हैं. उस दिखावटी दुनिया में हमारी सोच, हमारी मानसिकता और पर्सनैलिटी हमारी रियल पर्सनैलिटी से एकदम भिन्न होती है. लेकिन हम अपनी स्वाभाविक भावनाओं को ताक पर रख ऑनलाइन वीडियो या पोस्ट को पढ़ ख़ुश हो जाते हैं.

ज़िंदगी सोशल मीडिया नहीं

समाजशास्त्री नीरू यादव का मानना है कि एक ऑनलाइन वीडियो को देखकर अकेले हंसने में उतना मज़ा कहां है, जो आप अपने जीवनसाथी के साथ बैठकर एक पुराने चुटकुले पर उठा सकते हैं. सोशल मीडिया हमारी ज़िंदगी का केवल एक हिस्सा भर है, जबकि हमारी ज़िंदगी सोशल मीडिया का हिस्सा बिल्कुल भी नहीं है, इसलिए इस दूरी को बरकरार रखने की कोशिश करते हुए चीज़ों की प्राथमिकता तय करनी होगी.

यह समझना ज़रूरी है कि आपकी फ़िक्र करनेवाला या आपको प्यार करनेवाला इंसान आपके आसपास होगा.

वे जो आपकी पोस्ट पर लाइक और कमेंट करते हैं, वे केवल आपको दिखावटी प्यार ही मैसेज कर भेज सकते हैं.

अपने साथी की अहमियत समझें और उन्हें केवल उनके लिए (जो आपकी निजी ज़िंदगी की सार्वजनिक रूप में चर्चा करते हैं) दूर न जाने दें.

ड्रीमवर्ल्ड में जीते लोग

डिजिटल और रियल पर्सनैलिटी एक ही इंसान द्वारा निभाए जानेवाले दो तरह के क़िरदार हैं. फेसबुक पर हम ऐसी ही चीज़ें पोस्ट करते हैं, जो हम लोगों को दिखाना चाहते हैं यानी हम एक में जी रहे होते हैं. वहां हमारी एक अलग छवि बनती है और उस छवि के अनुरूप ही हमारे पोस्ट होते हैं भले ही असल ज़िंदगी में हम वैसे न भी हों.

सार्वजनिक न बनाएं अपनी ज़िंदगी

जब हम डिजिटल की दिखावटी दुनिया में प्रवेश करते हैं, तो हम दूसरों की अच्छी चीज़ों को देखकर हीनभावना से ग्रस्त हो जाते हैं और फिर ख़ुद को उनके बराबर दिखाने के लिए या उनसे बेहतर दिखाने के लिए अपनी एक झूठी छवि सोशल मीडिया पर पेश करते हैं.

असल में हम भूल जाते हैं कि जो कुछ सोशल मीडिया पर दिखाई दे रहा है, वह वास्तविकता नहीं है. वह किसी व्यक्ति की ज़िंदगी का एक लम्हा भर है, जिसे उसने सोशल मीडिया पर शेयर किया. ज़िंदगी की वास्तविक छवि इससे अलग हो सकती है. हमारी ख़ुशी दूसरों पर निर्भर करने लगती है. यह इसलिए भी ख़तरनाक है, क्योंकि हम हर चीज़ का सर्टिफिकेट दूसरों से लेने लगते हैं.

किसी पल को आपने एंजॉय किया या नहीं, यह प्राथमिकता होने की बजाय प्राथमिकता यह हो जाती है कि उस पल की तस्वीर को सोशल मीडिया पर कितना रिस्पॉन्स मिल रहा है. उदाहरण के लिए यदि आप किसी जगह डिनर पर गए, तो आपको इस बात की ख़ुशी होनी चाहिए की डिनर टेस्टी था और आपने इसे अपने फैमिली/दोस्तों के साथ एंजॉय किया. न कि यह कि आपकी डिनरवाली तस्वीर पर 100 लाइक्स आए.

सच यह है कि आपकी डिजिटल पर्सनैलिटी आपको अपने वास्तविक संबंधों को मज़बूत करने की बजाय आपको एक ऐसी नकली दुनिया का आदी बना देती है, जिसमें आप अपने विचारों की अभिव्यक्ति उतने बेहतर तरी़के से नहीं कर पाते, जितना आप वास्तविक दुनिया में कर सकते हैं.

आप अपनी असल ज़िंदगी का मज़ा लेना ही भूलने लगते हैं. कई ख़ूबसूरत जगहों पर घूमते हुए वहां की ख़ूबसूरती का मज़ा लेने की बजाय लोग सेल्फी लेने और फोन से तस्वीरें खींचने में व्यस्त हो जाते हैं, जो उन्हें उस वास्तविक पलों को जीने से रोक देता है. ऐसे में आप अपने साथी का साथ क्या एंजॉय कर पाएंगे, तो रिश्तों पर आंच आना स्वाभाविक ही है.

अपनी जिंदगी के हर पहलू को सार्वजनिक करना कहां तक ठीक है. यह समझने की ज़रूरत है कि असल ज़िंदगी साढ़े पांच इंच की स्क्रीन में नहीं है, बल्कि उसके बाहर है.

सुमन बाजपेयी

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Aneeta Singh

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