दादा-दादी, नाना-नानी, चाची, बुआ, मौसी जैसे रिश्ते अब बीते व़क़्त की बात बनकर रह गए हैं. बच्चों की नज़र में अब ये रिश्ते अजनबी बनते जा रहे हैं. बहुत से घरों में तो बच्चे इन रिश्तों के नाम से भी वाकिफ़ नहीं. ऐसे परिवेश में रहने वाले बच्चे रिश्तों में प्यार, लगाव व अपनेपन को बिल्कुल भी समझ नहीं पाते. ऐसी स्थिति से बचने के लिए और बच्चों को पारिवारिक रिश्तों का महत्व समझाने के लिए पैरेंट्स को क्या करना चाहिए? आइए, जानने की कोशिश करते हैं.
* रिश्ते-नाते जैसी नाज़ुक बातों का महत्व एक ही दिन में नहीं समझाया जा सकता. अत: बचपन से ही बच्चे को इनके बारे में बताना शुरू कर दें. * बच्चे को रिश्ते-नातों की दुनिया में प्रवेश कराने के लिए चार साल का उम्र सही होती है, क्योंकि इस उम्र तक पहुंचते-पहुंचते बच्चे अपनों व गैरों के बीच फ़र्क़ समझने लगते हैं और रिश्तेदारों को भी पहचानने लगते हैं. * साथ ही उनमें हर व्यक्तिकी पर्सनैलिटी को आइडेंटिफ़ाई करने की क्षमता भी विकसित हो जाती है.
* यदि इस उम्र से ही बच्चे को अलग-अलग रिश्ते के बारे में समझाया जाए तो वह उनकी तस्वीर दिमाग़ में उतार लेते हैं.
* अत: इसी उम्र से बच्चे को रिश्तेदारों के क़रीब लाने की कोशिश शुरू कर दें.
* उसे बात-बात में परिवार के अन्य सदस्यों के बारे में बताती रहें.
* उसे यह भी समझाने की कोशिश करें कि पापा-मम्मी के अलावा भी कई लोग हैं, जो उसकी केयर करते हैं और उसे प्यार करते हैं. आपकी कोशिश अवश्य रंग लाएगी.
* बच्चे में क़रीबी रिश्तेदारों के प्रति प्यार व अपनेपन का भाव पैदा करने के लिए समय-समय पर उनसे मिलते-जुलते रहना बहुत ज़रूरी है.
* इसके लिए यदि रिश्तेदार पास में रहते हैं, तो ह़फ़्ते में कम से कम एक बार बच्चे को साथ लेकर उनसे मिलने जाएं.
* यदि चचेरे भाई-बहन पास में रहते हैं तो उन्हें एक साथ पिकनिक पर ले जाएं.
* इससे बच्चे एक-दूसरे की कंपनी एंजॉय भी करेंगे और उनके बीच आपसी बॉन्डिंग भी बढ़ेगी.
* यदि रिश्तेदार दूर रहते हैं तो बच्चे को उनसे फ़ोन पर बात करने के लिए प्रोत्साहित करें.
* इसके अलावा रात में सोने से पहले बच्चे को किसी न किसी तरह उनकी याद दिलाते रहें, जैसे- उससे कहें, “ सोने से पहले दादा-दादी को याद करके गुड नाइट कहो” या “आज पिंकी ने नई डॉल ख़रीदी है, अगली बार जब उसके घर जाओ तो उसके साथ खेलना.” इस तरह बच्चा हर रिश्ते से जुड़ा रहेगा.
* बच्चों को कहानियां सुनना बहुत अच्छा लगता है और उन्हें कहानियां ज़्यादा दिनों तक याद भी रहती हैं.
* अतः बच्चे को स्टोरी के रूप में रिश्ते समझाने की कोशिश करें, जैसे- जब दादाजी पहली बार स्कूल गए तब क्या हुआ? या उसके कज़िन का निकनेम कैसे रखा गया?
* इस तरह की बातें बच्चे को दिलचस्प भी लगेंगी और उसे ज़्यादा दिनों तक याद भी रहेंगी.
* स्टोरी सुनाने का समय फ़िक्स रखें. साथ ही जो स्टोरी आपने सुनाई है, वही कहानी कभी उसे सुनाने के लिए कहें.
* उदाहरण के लिए- बच्चे से कहें कि दादाजी या बुआजी वाली कहानी कौन सुनाएगा? इस तरह बच्चों का मनोरंजन भी होगा और उन्हें रिश्ते भी याद रहेंगे.
* परिवार के सभी सदस्यों के फ़ोटोग्रा़फ़्स कलैक्ट करके फैमिली एलबम बनाएं तथा समय-समय पर बच्चों को पूरे परिवार का एलबम दिखाती रहें. * साथ ही उन्हें हर सदस्य के बारे में दिलचस्प बातें भी बताती रहें.
* इससे बच्चे रिश्तेदारों को चेहरे से पहचान लेंगे और अचानक मिलने पर वे अजनबियों की तरह व्यवहार नहीं करेंगे.
* इसके अलावा बच्चों को अपनी पुरानी फ़ोटो भी दिखाएं और बताएं कि पापा जब छोटे थे तो ऐसे दिखते थे या मम्मी नानी की गोद में थी तो कैसी लगती थी? इत्यादि.
* फैमिली गेट टुगेदर का कोई मौक़ा हाथ से न जाने दें.
* छुट्टियों में बच्चे को रिश्तेदारों के यहां घुमाने ले जाएं या रिश्तेदारों को अपने घर बुलाएं.
* इससे बच्चे का समय भी अच्छे से कट जाएगा और वो रिश्तेदारों से घुल-मिल भी जाएगा.
* हो सके तो बच्चे के चचेरे भाई-बहन को बुलाकर स़िर्फ उनके लिए कज़िन कैम्प रखें, जिसमें स़िर्फ वे लोग ही शामिल हों.
* इस कैम्प में बच्चों को पूरी आज़ादी दें. वे जिस तरह से रहना चाहें उन्हें रहने दें.
* इसके अलावा उन्हें मिलकर काम करने के लिए प्रोत्साहित करें, जैसे- टेबल पर खाना लगाना, पानी देना, एक-दूसरे की मदद करना आदि.
* ये बातें दिखने में भले ही छोटी-छोटी सी लगें, लेकिन भविष्य में बच्चों को आपसी रिश्ते बनाने में बहुत मददगार साबित होंगी.
अक्षय कुमार इन दिनों 'बड़े मियां छोटे मियां' को लेकर सुर्ख़ियों में हैं. उनका फिल्मी…
बोनी कपूर हे कायमच चर्चेत असणारे नाव आहे. बोनी कपूर यांचे एका मागून एक चित्रपट…
ईद के मौके पर टीवी एक्ट्रेस समबुल तौकीर ने हाउस पार्टी होस्ट कर ईद सेलिब्रेट…
अनियमित जीवनशैलीने सर्व माणसांचं आरोग्य बिघडवलं आहे. ऑफिसात 8 ते 10 तास एका जागी बसल्याने…
नुकताच स्वामी समर्थ यांचा प्रकट दिन पार पडला अभिनेता - निर्माता स्वप्नील जोशी हा स्वामी…
"ऐसे नहीं पापा, " उसने आकर मेरी पीठ पर हाथ लगाकर मुझे उठाया, "बैठकर खांसो……