ऐसे पैरेंट्स जो अपने बच्चों को ओवर प्रोटेक्ट करते हैं या उनकी ज़रूरत से ज़्यादा केयर करते हैं, बड़े होकर उनके बच्चों को काफ़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. वे अपने बच्चों को ज़िदंगी की मुश्किलों व सच्चाइयों से रू-ब-रू नहीं होने देते, जिसके कारण बच्चा हर छोटी से छोटी बात के लिए पूरी तरह से उन पर ही निर्भर रहने लगता है. ऐसे बच्चों में बोल्डनेस नहीं होती. हर काम, हर निर्णय लेने के लिए पैरेंट्स की तरफ़ भागता है. बच्चों पर हमेशा मंडराने वाली अपनी आदत के चलते ही इन पैरेंट्स को ‘हेलीकॉप्टर पैरेंट्स’ कहा जाता है.
♦ पैरेंट्स का ऐसा व्यवहार बच्चों के भावनात्मक और मानसिक विकास में बाधक बनता है.
♦ बच्चों की उंगली पकड़कर चलाने की बजाय उन्हें अपनी आंखों से दुनिया देखने व समझने का मौक़ा दें.
♦ जहां बच्चों को आपकी ज़रूरत हो, वहां उनको सहयोग ज़रूर दें.
♦ पैरेंट्स का बच्चों के प्रति ज़्यादा केयरिंग बिहेवियर उन्हें आत्मनिर्भर बनने से रोकता है.
♦ बच्चों को अपने छोटे-छोटे काम स्वयं करने दें. ऐसा करने से वे बचपन से ही ज़िम्मेदार व आत्मनिर्भर बनेंगे.
सभी पैरेंट्स अपने बच्चों पर पैनी नज़र रखते हैं कि कहीं उनका बच्चा ग़लत राह पर तो नहीं जा रहा, लेकिन शक्की स्वभाव वाले पैरेंट्स ज़रूरत से ज़्यादा ही निगरानी रखते हैं अपने बच्चों पर. ऐसे पैरेंट्स भूल जाते हैं कि उनका ऐसा व्यवहार बच्चों के लिए कितनी मुश्किलें खड़ी कर देता है. यदि बच्चा किसी काम से बाहर गया है तो उनका बार-बार फ़ोन या मैसेज देखते ही वह परेशान हो जाएगा और अपने आप को बचाने के लिए उनसे झूठ भी बोलने लगेगा.
शक्की स्वभाव वाले पैरेंट्स हर स्थिति को लेकर अपने बच्चे के मन में एक डर बैठा देते हैं और इसी डर के साथ उनके बच्चे बड़े होने लगते हैं. ऐसे बच्चों में आत्मविश्वास की कमी होती है. वे किसी पर भी आसानी से विश्वास करने लगते हैं.
♦ बच्चों पर कड़ी नज़र रखने की बजाय उनसे खुलकर बातें करें.
♦ आपस में मिल-जुलकर समस्या का हल निकालें.
♦ बच्चों पर शक करने की बजाय उन्हें आज़ादी दें, लेकिन उन्हें इतनी छूट भी न दें कि वे लापरवाह ही हो जाएं.
♦ पैरेंट्स अपने शक्की स्वभाव को छोड़कर बच्चों पर विश्वास करना सीखें.
♦ यह मानकर चलें कि बच्चे ग़लतियों से ही सीखते हैं, बजाय आपके समझाने के.
ग़लती करने पर बच्चे को उसकी ग़लती का एहसास कराना ज़रूरी है, लेकिन उसके साथ बदतमीज़ी से बात करना या उसे मारना-पीटना सही नहीं है. पैरेंट्स द्वारा ऐसा व्यवहार करने पर उनके मन-मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ेगा.
अभद्र भाषा (गाली-गलौज) का प्रयोग करनेवाले पैरेंट्स अपने बच्चों के विकास को रोककर उनके आत्मविश्वास को कम करते हैं. ऐसे पैरेंट्स के बच्चे अनुशासन में न रहने वाले, तोड़-फोड़ करने वाले, बेक़ाबू और अनेक तरह की मानसिक परेशानियों से घिरे होते हैं. इन बच्चों में बिस्तर गीला करना, डिप्रेशन, पढ़ाई में कमज़ोर होना आदि जैसी समस्याएं देखने में आती हैं.
♦ ग़लती करने पर बच्चे को उसकी ग़लती का एहसास ज़रूर कराएं.
♦ अपना आपा खोने से पहले स्थिति को समझने की कोशिश करें. बेवजह गाली-गलौज न करें.
♦ बच्चों के सामने अपशब्दों का प्रयोग न करें, क्योंकि जिस ढंग से आप अपने बच्चे से बात करेंगे, बच्चा भी उसी तरी़के से आपसे बात करेगा. इसलिए स्थितियां चाहे कैसी भी हों, बच्चों के साथ सहज व सौम्य व्यवहार करें.
♦ बच्चों के सामने अनावश्यक झूठ न बोलें, क्योंकि बच्चे अपने पैरेंट्स की नकल करते हैं.
♦ पैरेंंट्स बच्चों के आदर्श होते हैं. इसलिए वह बच्चों के साथ जैसा आचरण करेंगे, वे भी वैसा ही सीखेंगे.
कॉम्पिटीशन के इस दौर में ऐसे महत्वाकांक्षी पैरेंट्स की संख्या बढ़ती जा रही है, जो अपने बच्चों को हमेशा विजेता के रूप में देखना चाहते हैं या उन पर जीत के लिए हमेशा दबाव बनाए रखते हैं. ऐसे पैरेंट्स जाने-अनजाने में अपने बच्चों पर मानसिक बोझ लाद देते हैं. मानसिक बोझ तले दबे ऐसे बच्चे नर्वस ब्रेकडाउन और डिप्रेशन का शिकार होकर आत्महत्या जैसा क़दम उठा लेते हैं.
जीत का दबाव बनाने वाले पैरेंट्स अपने बच्चों की छोटी से छोटी असफलताओं को भी बर्दाश्त नहीं कर पाते. धीरे-धीरे उन पर भी तनाव हावी होने लगता है. दूसरों की अपेक्षाओं पर खरे न उतरने के कारण वे उनसे कतराने लगते हैं और ख़ुद को नकारा समझने लगते हैं. ऐसे पैरेंट्स हाइपर पैरेंटिंग सिंड्रोम से पीड़ित होते हैं, जो बच्चों को नॉर्मल तरीक़े से बड़ा भी नहीं होने देते.
♦ बच्चों पर प्रेशर बनाने की बजाय उनमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार करें.
♦ उनके सामने नकारात्मक बातें कर उनका आत्मविश्वास कम करने की कोशिश न करें.
♦ किसी कॉम्पिटीशन में हारने के बाद भी बच्चे को डांटने-फटकारने की बजाय उत्साहित करें, ओवर रिएक्ट न करें.
♦ बच्चों से बहुत ज़्यादा अपेक्षाएं न रखें.
♦ अक्सर पैरेंट्स अपनी अधूरी महत्वाकांक्षाओं को बच्चों के ज़रिए पूरा करना चाहते है, इसलिए उन पर अधिक दबाव बनाते हैं, जो सही नहीं है.
तुलना करने वाले पैरेंट्स अपने बच्चों को सही तरी़के से समझ नहीं पाते हैं. इसलिए दूसरे बच्चों के साथ अपने बच्चों की तुलना करने लगते हैं. बच्चों की सही बात को सुने-समझे बिना अपनी बातों को ज़बर्दस्ती उन पर लादने की कोशिश करते हैं.
ऐसे पैरेंट्स के बच्चे स्वयं को किसी लायक नहीं समझते. वे अपनी क्षमता को नहीं पहचान पाते और स्वयं को बेवकूफ़ समझने लगते हैं. कई बार तो स्थितियां उलट भी होती हैं, जब पैरेंट्स अपने समझदार बच्चे की तुलना किसी कमज़ोर बच्चे से करते हैं तो वह ख़ुद को बहुत स्पेशल और ओवर कॉन्फिडेंट समझने लगता है.
♦ भाई-बहनों की भी आपस में तुलना न करें.
♦ दूसरे बच्चों के साथ तुलनात्मक व्यवहार करने से उनमें सुपीरियोरिटी कॉम्प्लेक्स आ जाता है.
♦ बच्चों की छोटी से छोटी सफलता पर भी उनकी तारीफ़ करें. माता-पिता द्वारा की गई प्रशंसा बच्चों में आत्मविश्वास जगाती है और वे भविष्य में बेहतर प्रदर्शन करने का प्रयास करते हैं.
♦ यदि पैरेंट्स बच्चों की किसी बात पर सहमत नहीं हैं तो उनकी तुलना करने के बजाय उन्हें पॉज़ीटिव फील कराएं.
♦ बच्चों को समझाते समय दिल दुखाने वाले शब्दों का प्रयोग न करें, बल्कि प्यार व नम्रता से उनके साथ पेश आएं.
♦ हर बच्चे का स्वभाव अलग-अलग होता है. इसलिए उसके अच्छे गुणों को परखना, हर पैरेंट्स की ज़िम्मेदारी होती है.
काम के बढ़ते बोझ और तनाव के चलते आजकल के पैरेंट्स के पास इतना व़क़्त ही नहीं है कि अपने बच्चों केलिए व़क़्त निकाल सकें. यदि पैरेंट्स बच्चों के लिए कुछ व़क़्त निकालते भी हैं तो उनके साथ बेरुखी और सख़्ती से पेश आते हैं.
पैरेंट्स का ऐसा व्यवहार बच्चों के मन पर बुरा प्रभाव डालता है और वे उनसे दूर और मन ही मन दुखी रहने लगते हैं. ऐसे पैरेंट्स बच्चों की सारी डिमांड्स पूरी करते हैं. उनकी मामूली-सी बात को भी नकार नहीं पाते, जिसके कारण बच्चे ज़िद्दी और घमंडी बन जाते हैं. ऐसे बच्चे अपनी आलोचना कभी बर्दाश्त नहीं कर पाते.
♦ बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं. उनकी दिनचर्या में शामिल होना भी बच्चों के संपूर्ण विकास का ही हिस्सा है.
♦ बच्चों के साथ पेंटिंग करने, कहानी सुनाने, पार्क में जाने जैसी एक्टिविटीज़ में शामिल हों.
♦ बच्चों के द्वारा ग़लतियां करने पर उन्हें प्यार से समझाएं.
♦ बच्चों की हर ज़िद, इच्छा को पूरा न करें. जो उनके लिए ज़रूरी हो, उन्हीं पर ध्यान दें. यदि बच्चा इस दौरान रोने-चिल्लाने लगे, तो उसकी इस एक्टिविटी को नज़रअंदाज़ करें, नहीं तो आपका ऐसा व्यवहार उसकी आदतों को और भी बिगाड़ सकता है.
♦ थोड़ी-सी समझदारी से पैरेंट्स बच्चों के इस स्वभाव को हैंडल करें तो उनकी यह आदत धीरे-धीरे अपने आप ही छूट जाएगी.
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