आप एस्ट्रामैरीटल अफेयर को किस तरह देखते हैं? क्या आपकी नज़रों में यह कलंक है या फिर आप इसे प्यार का ही एक रूप समझते हैं? फिल्म कलंक की कहानी इसी ताने-बाने के आस-पास घूमती है. शानदार सेट, टॉप क्लास स्टार कास्ट व शानदार सिनेमाटोग्राफी से सुज्जित फिल्म दर्शकों के दिलों में वो प्रभाव नहीं छोड़ पाती, जिसकी उम्मीद की जा रही थी. सामान्य से लंबी इस फिल्म की कहानी कहीं जगहों पर बेहद बोझिल और बोरिंग लगती है. इस फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि फिल्म के सभी कलाकारों ने बहुत अच्छा परफॉर्मेंस दिया है. आलिया भट्ट और वरुण धवन कलंक के दिल साबित हुए हैं.
कहानीः इस फिल्म की कहानी भारत-पाकिस्तान विभाजन से पहले, लाहौर के नज़दीक स्थित हुसैनाबाद पर आधारित है, जहां बड़ी संख्या में लोहार रहते हैं और यहां की जनसंख्या में प्रमुख तौर पर मुस्लिम शामिल हैं. यहां रहने वाला चौधरी परिवार हुसैनाबाद का सबसे समृद्ध और शक्तिशाली परिवार है. इस परिवार में बलराज चौधरी (संजय दत्त) और उनका बेटा देव (आदित्य रॉय कपूर) और उसकी पत्नी साथया (सोनाक्षी सिन्हा) शामिल हैं. साथया को कैंसर है, इसलिए वो चाहती है कि उसके मरने से पहले उसके पति और रूप (आलिया भट्ट) के बीच एक डील हो जाए, ताकि उसके मरने के बाद उसका पति अकेले न रह जाए, लेकिन रूप (आलिया भट्ट) इस रिश्ते को एक नाम देना चाहती है. इसलिए देव और रूप की शादी हो जाती है. लेकिन रूप इस रिश्ते में खुद को बंदी की तरह समझती है इसलिए खुद को व्यस्त रखने के लिए बहार बेगम (माधुरी दीक्षित) से संगीत की शिक्षा लेने जाती है, जहां उसकी मुलाकात जफर (वरुण धवन) से होती है. कुछ मुलाकातों के बाद दोनों के बीच प्यार पनपने लगता है. लेकिन यह इश्क नहीं कलंक होता है.
एक्टिंगः जैसा हमने पहले ही कहा है कि आलिया भट्ट ने रूप के किरदार को नई फ्रेशनेस दी है. उसकी लड़ाई बहुत असली लगती है. वरुण धवन ने भी अपने किरदार को बखूबी निभाया है. उन्होंने जफर का किरदार परफेक्शन के साथ पेश किया है. आदित्य रॉय कपूर का काम भी अच्छा है. सोनाक्षी को इस फिल्म में देखकर लूटेरा में उनके किरदार पाखी की याद आ जाती है. माधुरी दीक्षित नेने, संजय दत्त और कुणाल खेमू भी ऐक्टिंग के मामले में दर्शकों को इम्प्रेस करने में कामयाब हुए.
निर्देशनः यह डायरेक्टर अभिषेक वर्मन की दूसरी फिल्म है, लेकिन इतनी अच्छी स्टारकास्ट होने के बावजूद वे कमाल नहीं दिखा पाए. फिल्म का स्क्रीनप्ले कई जगह बोर करता दिखता है, जिससे फिल्म बोझिल होने लगती है. हालांकि ओवरऑल बात की जाए तो फिल्म के डायलॉग से लेकर, किरदारों के बीच की ट्यूनिंग निराश नहीं करती.
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