ढूंढे़ कोई हमें तो सिर्फ़ ठिकानों पर मिलते है
ये बंजारापन देख के अब हम घर में नहीं मिलते
मुझसे चाहनेवाले और ख़फ़ाज़दा दोनों मिलते है
पर ऐसा क्यों है कि कभी हम नहीं मिलते
आईने से भी पूछे है सवाल कई मैंने
जवाब तो मिलते है पर माकूल नहीं मिलते
कब्र भी नहीं मेरी और ख़ुद ही में दफ़न हूं मैं
इसलिए लोग तो मिलते है पर उनसे फूल नहीं मिलते…
– मेघा कटारिया
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