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ग़ज़ल- तेरी पाकीज़गी में हमदम (Gazal- Teri Pakeezgi Mein Humdam)

Gazal मेरी आंख से बता क्यों ख़्वाब झांकता है एहसास का समंदर तेरी आंख में छुपा है दिल मेरा स़िर्फ लफ़्ज़ों का आईना ठहरा रूमानियत का परचम तेरे अश्क में छुपा है तू आस पास हो तो तस्वीर खींच लूं मेरे दिल में जो बसा है वो रूह-सा छुपा है05 तुझे ढूढ़ने को निकले तो उस तक पहुंच गए तेरी पाकीजगी में हमदम अभी और क्या छुपा है...   Murli Manohar Shrivastav मुरली मनोहर श्रीवास्तव   मेरी सहेली वेबसाइट पर मुरली मनोहर श्रीवास्तव की भेजी गई कविता को हमने अपने वेबसाइट में शामिल किया है. आप भी अपनी कविता, शायरी, गीत, ग़ज़ल, लेख, कहानियों को भेजकर अपनी लेखनी को नई पहचान दे सकते हैं… यह भी पढ़े: Shayeri

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