किसी ने बहुत सही कहा है कि डर आपका सबसे बड़ा दुश्मन है. एक बार आपका डर आप पर हावी हो गया, तो बड़ी मुश्किल से पीछा छोड़ता है. रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भी बहुत से ऐसे लोग हैं, जो हर छोटी-छोटी बात को लेकर डर या चिंता में रहते हैं, जिसका ख़ामियाज़ा उन्हें अपनी सेहत से चुकाना पड़ता है. आप डर से न डरें और ज़िंदगी को ज़िंदादिली से जीएं, इसके लिए ज़रूरी है कि इस डर को समझें. क्या है यह एंज़ायटी डिसऑर्डर (Anxiety Disorder), आइए जानते हैं.
हम सभी डरते हैं और डरना मानव स्वभाव भी है, पर क्या आप भी किसी बीमारी के बारे में सुनकर इतना डर जाते हैं कि लगता है कि अब बचेंगे नहीं या फिर कोई छोटी-सी समस्या आने पर ऐसा लगता है, जैसे सब बर्बाद हो गया, अब कुछ नहीं बचा? इस तरह डरनेवाले लोग ढर्रे पर चलना पसंद करते हैं. ज़रा-सी परिस्थितियां प्रतिकूल हुई नहीं कि सब बेकार लगने लगता है. डर तो कई तरह के हैं, पर देखते हैं कि सबसे आम डर क्या हैं?
आजकल हर व्यक्ति किसी न किसी बात से चिंतित या डरा हुआ रहता है, चाहे वो काम को लेकर हो, परिवार, पैसा, सेहत या फिर भविष्य की ही बात क्यों न हो. माना कि कुछ चीज़ों की चिंता करना ज़रूरी है, पर हर चीज़ को लेकर हमेशा मन को सशंकित रखना आपकी सेहत के लिए बिल्कुल ठीक नहीं. दरअसल, जब हम चिंताग्रस्त होते हैं, तो हमारे शरीर में कार्टिसोल नामक केमिकल का स्राव होता है, जो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बुरी तरह प्रभावित करता है, जिससे हम आसानी से किसी इंफेक्शन या बीमारी की चपेट में आ जाते हैं.
रिसर्च में यह बात साबित हो गई है कि कार्टिसोल का डायबिटीज़, हार्ट प्रॉब्लम्स और ऑस्टियोपोरोसिस जैसी गंभीर बीमारियों से गहरा संबंध है. स्ट्रेस और डर के कारण आप न स़िर्फ डिप्रेशन और पैनिक डिसऑर्डर, बल्कि बाई पोलार डिसऑर्डर के शिकार भी हो सकते हैं.
एक्सपर्ट्स के मुताबिक़ हम जिन बातों को लेकर डरे हुए रहते हैं या हमें जिनकी चिंता सताती रहती है, 96% मामलों में देखा गया है कि वह समस्या कभी हक़ीक़त में होती ही नहीं. हम बेवजह अपने दिमाग़ में ही उस समस्या को पालते-पोसते रहते हैं.
– छोटी-मोटी बातों पर घबराना या चिंता करना आम बात है, लेकिन जब व्यक्ति हर छोटी-से-छोटी बात पर घबराने या डरने लगे, तो उसे जनरलाइज़्ड एंज़ायटी डिसऑर्डर (जीएडी) कहते हैं. इससे पीड़ित व्यक्ति अपनी घबराहट या डर को कंट्रोल नहीं कर पाता, जिससे उसका मन किसी काम में नहीं लगता.
– रोज़मर्रा के कामों को लेकर भी चिंता करना.
– घबराहट और चिंता पर कंट्रोल न होना.
– उन्हें भी पता होता है कि वो ज़रूरत से ज़्यादा परेशान हो रहे हैं.
– असहज बने रहते हैं, जिससे जल्दी रिलैक्स नहीं हो पाते.
– एकाग्र नहीं हो पाते.
– बहुत जल्दी चौंक जाते हैं.
– जल्दी नींद नहीं आती या फिर सुकूनभरी नींद नहीं ले पाते.
– बहुत जल्दी थक जाते हैं या फिर हर व़क्त थका हुआ महसूस करते हैं.
– सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, पेटदर्द या फिर शरीर के किसी हिस्से में बेवजह का दर्द.
– खाना खाते समय निगलने में परेशानी होना.
– चिड़चिड़ापन.
– चक्कर आना.
– बार-बार टॉयलेट जाना.
लक्षणों को देखकर बहुत से लोगों को लगेगा कि उनमें भी जीएडी है, पर ज़रूरी नहीं कि आप इससे पीड़ित हों. अगर हैं भी, तो कौन-सी बड़ी बात हो गई, हर किसी की तरह इसका भी तो समाधान है.
एक्सपर्ट्स की मानें तो कुछ मामलों में इसका एक प्रमुख कारण आनुवांशिकता भी है. आपके मस्तिष्क और बायोलॉजिकल प्रोसेस डर और एंज़ायटी को तैयार होने में अहम् भूमिका निभाते हैं, हालांकि अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि क्यों कुछ परिवारों में ही लोग ज़्यादा डरते हैं, जबकि दूसरे परिवारवाले उतना नहीं डरते. इसके अलावा स्ट्रेस और बाहरी माहौल भी आपको डराने में कोई कसर नहीं छोड़ते.
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एक बात अच्छी तरह समझ लें कि आप अपने डर को जितना ज़्यादा अनदेखा करेंगे, वह आपके सब कॉन्शियस माइंड में उतनी ही गहरी पैठ जमाएगा. अगर अपने डर से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो उसका सामना करें. डर से नज़रे मिलाएं और पूछें कि ज़्यादा से ज़्यादा वो क्या कर सकता है. यहां हम आपको अपने डर पर काबू पाने के कुछ स्मार्ट ट्रिक्स बता रहे हैं, तो आप भी इन्हें अपनाकर निडर, साहसी व सकारात्मक बनें.
सबसे पहले तो आपको जिस भी चीज़ या बात से डर लग रहा है, उसे डायरी में लिखें. लिखने से डर दिमाग़ से निकलकर पेपर पर आ जाता है, जिससे आपका दिमाग़ शांत होता है. अब उसे चार-पांच बार पढ़ें और फिर फाड़कर जला दें. आपको बहुत अच्छा महसूस होगा. यह एक तरह की थेरेपी भी है, जो आपके अंदर के डर को ख़त्म करती है.
जिस तरह लिखने से डर कमज़ोर लगने लगता है, वही हाल उसे बांट देने से भी होता है. किसी भी तरह का डर क्यों न हो, अपने किसी बड़े-बूढ़े या फिर दोस्तों से डिस्कस करें. बांटने से आपको बहुत से समाधान एक साथ मिल जाते हैं, जो शायद ही आपके दिमाग़ में आए हों.
सुबह सोकर उठने पर और रात को सोने से पहले आपके पास जो भी है, उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद कहने और आभार प्रकट करने से आत्मिक संतोष मिलता है, जिससे दिमाग़ में मौजूद डर की ओर आपका ध्यान नहीं जाता. धीरे-धीरे इसे रोज़मर्रा की आदत में शामिल करें. आपकी सोच सकारात्मक होने लगेगी और डर दूर होगा.
डर का अस्तित्व भूत या भविष्य से होता है. जितना ज़्यादा आप वर्तमान में जीने की कोशिश करेंगे, उतने ही ज़्यादा ख़ुश रहेंगे. इस व़क्त मैं कैसा महसूस कर रहा हूं? यह जो सांस चल रही है, कितनी अनमोल है, यह वातावरण में घुली ख़ुशबू, ये मधुर आवाज़, सब कुछ कितना अच्छा है. इसे अपनी आदत में शुमार करें. रोज़ाना थोड़ी देर, ख़ुद को महसूस करें. इसमें मेडिटेशन आपकी बहुत मदद करेगा.
ज़िंदगी अगले क़दम क्या मोड़ लेगी, आप इसका अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते. हमें पता नहीं कि कल हमारी सेहत कैसी होगी, कौन हमें प्यार करेगा, कौन अनदेखा करेगा, हमारे अपनों के क्या हालात होंगे- हमें कुछ भी नहीं पता. हमें स़िर्फ इतना पता है कि ज़िंदगी के हर पल को एंजॉय करना है. जब कुछ पता ही नहीं कि कल क्या होगा, तो डर किस बात का? क्या पता जिस चीज़ से हम डर रहे हैं, कल उसका अस्तित्व ही ख़त्म हो जाए, इसलिए अनिश्चितताओं को स्वीकार करें और हर डर को ख़ुद से दूर कर दें.
जब हम लगातार डरे हुए रहते हैं, तो हमारा नर्वस सिस्टम हाई अलर्ट पर रहता है. मानसिक डर हमारे शरीर को बुरी तरह से प्रभावित करता है, इसलिए बेवजह मसल पेन होना, चक्कर आना और घबराहट जैसी भावनाएं महसूस होती हैं. इससे बचने का बेहतरीन तरीक़ा है फिज़िकल एक्टीविटीज़, एक्सरसाइज़, मेडिटेशन आदि.
एक बात ध्यान में रखें कि आप जिस चीज़ के लिए डर रहे हैं और जिस तरह का माहौल है, उस पर आपका कोई कंट्रोल नहीं है. और जब कोई कंट्रोल ही नहीं, तो छोड़ दें उन्हें. उन पर कब्ज़ा जमाकर न रखें. याद रहे, जितना कम दिमाग़ में रखेंगे, उतना ज़्यादा हल्का महसूस करेंगे.
– अनीता सिंह
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