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अंगदान से दें दूसरों को जीवनदान

ख़ुद में ही सिमटे, ख़ुद में ही उलझे, ख़ुद से ही जूझते, ख़ुद को ही कोसते… यूं ही ज़िंदगी बिता देते हैं हम… कभी कुछ देर ठहरकर, ख़ुद से पूछने की ज़रूरत भी शायद नहीं समझते कि क्या हमारी सामाजिक ज़िम्मेदारी भी है कोई? क्या इंसानियत के प्रति भी फ़र्ज़ है कोई? ख़ून के रिश्तों के दायरों से आगे भी रिश्ते निभाने की ज़रूरत है कोई? लेकिन हम में से भी कुछ लोग हैं और ऐसे लोगों की तादाद बढ़ भी रही है, जो दूसरों को भी ज़िंदगी जीते हुए देखने की चाह रखते हैं. यही चाह उन्हें अंगदान व देहदान की प्रेरणा देती है, ताकि उनके बाद भी लोग बेहतर ज़िंदगी जी सकें. तो क्यों न आप और हम भी इस नेक काम को करने का जज़्बा अपने अंदर पैदा करें और अंगदान करके दूसरों को जीवनदान दें.

हर वर्ष लाखों लोग मात्र इस वजह से मौत के मुंह में समा जाते हैं, क्योंकि उन्हें कोई डोनर नहीं मिल पाता. कभी ऑर्गन फेलियर के चलते, तो कभी एक्सीडेंट्स के कारण ऑर्गन ट्रांसप्लांट करना ज़रूरी हो जाता है और उसके बाद जान भी बच जाती है, लेकिन ऑर्गन डोनेट करनेवालों की कमी के चलते ऐसे मामलों का अंत भी अक्सर मौत के रूप में ही होता है.

ऑर्गन्स की कमी क्यों होती है?

– मूल रूप से जागरूकता की कमी के चलते ऐसा होता है. लोगों से बातचीत व सर्वे में भी यह बात सामने आई है कि लोग अंगदान करना चाहते हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में वो ऐसा नहीं कर पाते.

– बहुत-से लोग चाहते हैं और सोच भी रखते हैं कि अंगदान करेंगे, लेकिन इस बारे में ऑन रिकॉर्ड कुछ नहीं होता और न ही वे अपने परिवारवालों को बताते हैं, तो उनकी चाह मन में ही रह जाती है.

– अंगदान से जुड़े कई अंधविश्‍वासों के चलते भी लोग इससे परहेज़ करते हैं. इस विषय से जुड़े तमाम पहलुओं पर अधिक विस्तार से जानकारी दे रहे हैं, मोहन फाउंडेशन से जुड़े डॉ. रवि वानखेड़े.

कैसे करें अंगदान, टिश्यू दान और देहदान?

1. ऑर्गन/टिश्यू डोनेशन का रजिस्ट्रेशन: रजिस्ट्रेशन के लिए आपको फॉर्म भरना होगा. यह फॉर्म एनजीओ से भी प्राप्त किया जा सकता है. मोहन फाउंडेशन (मल्टी ऑर्गन हार्वेस्टिंग एड नेटवर्क) एक ऐसा ही एनजीओ है, जो इस क्षेत्र में सराहनीय काम कर रहा है. आप मोहन फाउंडेशन से फॉर्म प्राप्त कर सकते हैं या फिर उनकी ऑनलाइन वेबसाइट- www.mohanfoundation.org   के ज़रिए भी फॉर्म भर सकते हैं.

– या फिर आप भारत सरकार की साइट नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइज़ेशन-  www.notto.nic.in पर जाकर भी फॉर्म भर सकते हैं.

– स्मार्टफोन्स के ज़रिए भी ऐप्स डाउनलोड करके रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं.

2. बॉडी डोनेशन और ऑर्गन/टिश्यू डोनेशन दो अलग-अलग चीज़ें हैं, तो हमें इन्हें मिलाना नहीं चाहिए.

– बॉडी डोनेट करने के लिए ऐप्लीकेशन फॉर्म किसी भी मान्यता प्राप्त कॉलेज के एनाटॉमी विभाग से ही प्राप्त किया जा सकता है. ये फॉर्म अन्य कहीं से भी प्राप्त नहीं किया जा सकता.

ध्यान दें

– कोई भी व्यक्ति चाहे किसी भी उम्र का हो, बॉडी और टिश्यूज़ डोनेट कर सकता है. बेहतर होगा आप ख़ुद से यह न सोचें कि मैं अभी बहुत यंग या ओल्ड हूं, डोनेट करने के लिए. कुछ अंगों व टिश्यूज़ की कोई उम्र सीमा नहीं होती डोनेट करने की.

– हां, व्यक्ति मौत किस तरह से हुई और उसकी मेडिकल हिस्ट्री व हेल्थ के आधार पर यह डिसाइड किया जाएगा कि उसके ऑर्गन्स फिट हैं या नहीं.

आपको क्या करना है?

– सबसे पहले आपको ख़ुद को तैयार करना होगा कि हां, आपको अंगदान या देहदान करना है. उसके बाद अपने परिवार के सदस्यों को इसके महत्व को समझाकर तैयार करना होगा, क्योंकि उनकी रज़ामंदी ज़रूरी है.

– ख़ुद को रजिस्टर कराना होगा. आप किसी मेडिकल कॉलेज, संस्था या ऑनलाइन भी रजिस्टर करा सकते हैं. आपको फॉर्म भरना होगा. फॉर्म पर दिए निर्देशों का पालन करें और जो भी ज़रूरी काग़ज़ात लगें, उन्हें संलग्न करें.

– पेपर वर्क पूरा होने के बाद आपको डोनर कार्ड मिलेगा, उस कार्ड को हमेशा संभालकर अपने साथ रखें.

– ध्यान रहे कि यह कार्ड लीगल डॉक्यूमेंट नहीं होता, बल्कि इससे आपकी अंगदान/देहदान की इच्छा की पुष्टि होती है.

– अंतिम निर्णय आपके पारिवारिक सदस्यों के हाथों में ही होगा.

अगर देहदान करना है तो…

– जैसाकि पहले बताया गया है कि अपनी इच्छा ज़ाहिर करने के बाद पेपर वर्क भी ज़रूरी है.

– बेहतर होगा कि बॉडी को कैरी करने के लिए जो ख़ासतौर से गाड़ियां बनी हों, उन्हीं में शरीर को ले जाया जाए. इस तरह की गाड़ियां कई एनजीओ उपलब्ध करवाते हैं, जैसे- रोटरी, लायन्स, धार्मिक या अन्य संस्थान, जो नो प्रॉफिट बेसिस पर काम करते हैं.

– मृत्यु के पश्‍चात् परिवार के सदस्य द्वारा संबंधित संस्था या अस्पताल से संपर्क किए जाने के बाद बॉडी को कलेक्ट कर लिया जाएगा.

– देहदान की इच्छा आप वसीयत में भी कर सकते हैं, यह क़ानून द्वारा मान्य है.

– बॉडी डोनेशन जल्द से जल्द कर देना चाहिए. बॉडी ख़राब न हो इसलिए उसे रेफ्रिजरेटेड कॉफिन्स में प्रिज़र्व किया जाना चाहिए.

– शरीर को तरह-तरह के परीक्षण व जांच के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे नई मशीनों, शोधों व सर्जरीज़ को ईजाद करने व इलाज को बेहतर करने की दिशा में मदद मिल सकती है.

ध्यान दें

– अलग-अलग संस्था/अस्पतालों के कुछ नियम व शर्तेंहोती हैं, आप फॉर्म भरते समय उन्हें ध्यान से पढ़ लें, मसलन- ट्रांसपोर्टेशन का ख़र्च. कुछ संस्थाएं यह ख़र्च ख़ुद उठाती हैं, जबकि कुछ इसका चार्ज भी लेती हैं.

– मृत्यु के फ़ौरन बाद ही जितना जल्दी संभव हो सके, बॉडी सौंप देना चाहिए.

– आपकी बॉडी को विभिन्न चीज़ों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे- क्राइम केसेस सॉल्व करने के लिए, रिसर्च या शिक्षा आदि के लिए, क्योंकि कुछ अस्पताल मात्र शरीर विज्ञान व संरचना की जानकारी के लिए ही मृत शरीर का उपयोग करते हैं, तो कुछ स़िर्फ फॉरेंसिक के लिए बॉडी लेते हैं. आप यह सुनिश्‍चित कर लें कि आपको व आपके प्रियजनों को आपत्ति न हो.

– ध्यान रहे कि बॉडी को रिजेक्ट भी किया जा सकता है. अगर बॉडी बहुत अधिक डीकंपोज़ हो गई हो, किसी बड़ी सर्जरी से गुज़री हो, शरीर क्षत-विक्षत हो गया हो (अगर एक्सीडेंट से मृत्यु हुई हो), तो बॉडी लेने से इंकार किया जा सकता है.

अगर अंगदान करना है तो…

– इसे हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं- अंगदान यानी ऑर्गन और टिश्यू डोनेशन.

– ऑर्गन डोनेशन स़िर्फ ‘ब्रेन डेड’ व्यक्ति के लिए ही संभव है, जबकि टिश्यू डोनेशन प्राकृतिक रूप से मृत हर (नेचुरली डेड) व्यक्ति कर सकता है.

– सबसे आम टिश्यू डोनेशन में आता है- नेत्रदान. आजकल आईबैंक्स स़िर्फ कॉर्निया ही लेती हैं, बजाय पूरी आंख के.

– मृत्यु (यानी ब्रेन डेड) के फ़ौरन बाद जितना जल्दी संभव हो, ट्रांसप्लांट के लिए अंग का इस्तेमाल कर लिया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्‍चित रहे कि अंग ट्रांसप्लांट करने योग्य बना रहे.

– यदि डॉक्टर यह घोषित कर दे कि व्यक्ति ब्रेन डेड हो चुका है, तो उसके परिजनों व लीगल अथॉरिटीज़ की अनुमति के आधार पर अंगदान की तैयारी की जाती है.

– तब तक डोनर के शरीर को वेंटिलेटर पर रखकर, शरीर व अंगों को दवाओं व फ्लूइड से स्थिर रखा जाता है.

– रेसिपिएंट (जिन्हें ऑर्गन ट्रांसप्लांट किया जाना है) को तैयार किया जाता है और सर्जिकल टीम भी ऑर्गन व टिश्यूज़ रिमूव करने की तैयारी में जुट जाती है.

– ऑपरेशन थिएटर में मल्टीपल ऑर्गन रिकवरी से अंगों कोे निकालकर स्पेशल सॉल्यूशन्स और कोल्ड पैकिंग के ज़रिए उन्हें प्रिज़र्व किया जाता है.

– डोनर के शरीर को वेंटिलेटर से हटाकर सर्जिकली क्लोज़ करके परिजनों को सौंप दिया जाता है.

क्या है टिश्यू डोनेशन?

ऑर्गन डोनेशन के मानदंडों पर कम लोग ही खरे उतर पाते हैं, जबकि टिश्यू डोनेशन हर कोई कर सकता है. किसी भी शख़्स की मृत्यु के पश्‍चात् टिश्यू व आई बैंक्स को अस्पताल द्वारा सूचित किया जाता है. यदि टिश्यू डोनर डोनेशन की शर्तों व मानदंडों को पूरा करता पाया जाता है, तो उसका रजिस्ट्रेशन चेक करके, परिजनों से अनुमति लेकर टिश्यू व आई बैंक से रिकवरी के लिए एक टीम
आती है. प्रत्येक टिश्यू डोनर लगभग 50 लोगों की ज़िंदगी को बढ़ाने व बेहतर बनाने की दिशा में भागीदार बन सकता है.

क्या होता है ब्रेन डेड का अर्थ?

विषय के संदर्भ में यह जानना बेहद ज़रूरी है कि ब्रेन डेड क्या होता है. मस्तिष्क यानी ब्रेन हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण भाग है, जो पूरे शरीर को नियंत्रित करता है. यदि किन्हीं कारणों से मस्तिष्क को रक्त आपूर्ति न होकर ऑक्सीजन नहीं मिल पाता, तो वह मृत हो जाता है, जिससे वह व्यक्ति भी मृत माना जाता है. ब्रेन डेथ परमानेंट और ठीक न होनेवाली स्थिति है, जिसे पूरे विश्‍व ने स्वीकारा है. भारत में ब्रेन डेड के मुख्य कारण हैं- रोड एक्सीडेंट्स (विश्‍व में सबसे अधिक), इसके बाद स्ट्रोक (मस्तिष्क में ब्लीडिंग) और ब्रेन कैंसर. इस तरह के मरीज़ यदि ब्रेन डेथ के डायग्नोसिस से पहले अस्पताल में लाए जाते हैं, तो उन्हें लाइफ सपोर्ट सिस्टम यानी वेंटिलेटर पर रखा जाता है. इससे अप्राकृतिक रूप से श्‍वास की प्रक्रिया चलती रहती है, जो कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक रह सकती है. इसी दौरान यदि उसके परिजन आपसी सहमति से ऑर्गन डोनेशन का निर्णय लेते हैं, तो उसके ऑर्गन ले लिए जाते हैं.

यहां यह जानकारी देनी भी ज़रूरी है कि ब्रेन डेड व्यक्ति ऑर्गन और टिश्यू दोनों ही दान कर सकता है. इस तरह के मामलों में 50 से अधिक ऑर्गन और टिश्यूज़ डोनेट किए जा सकते हैं. भारत में एक व्यक्ति के नाम पर सर्वाधिक ऑर्गन्स और टिश्यूज़ डोनेट करने का रेकॉर्ड है, अनमोल जुनेजा ने वर्ष 2013 में नई दिल्ली, एम्स में 34 ऑर्गन्स और टिश्यूज़ डोनेट किए थे.

लिविंग डोनर
जीते जी भी कुछ ऑर्गन्स डोनेट किए जा सकते हैं, जैसे- किडनी और लिवर का कुछ हिस्सा. हमारी दो किडनी होती हैं, जिनमें से ज़रूरत पड़ने पर एक डोनेट करके भी सामान्य जीवन जिया जा सकता है. लेकिन इनमें काफ़ी कड़े क़ानून और नियम होते हैं, ताकि व्यावसायिक रूप से इनकी ख़रीद-फरोख़्त न होने पाए. अंगों को बेचने व ख़रीदने पर सभी देशों में पाबंदी है, लेकिन ग़ैरक़ानूनी तरी़के से किडनी की ख़रीद-फरोख़्त के मामले सामने आते रहे हैं. ऐसे में क़रीबी रिश्तेदार, जैसे- माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी, बच्चे, ग्रैंड पैरेंट्स व ग्रैंड चिल्ड्रन आसानी से एक-दूसरे को किडनी डोनेट कर सकते हैं, बशर्ते मेडिकल रिपोर्ट्स कंपैटिबल हों. हालांकि दूर के रिश्तेदार, दोस्त व अंजान लोग भी मानवीय आधार पर डोनेट कर सकते हैं, लेकिन इन्हें कठोर क़ानूनी नियमों से गुज़रना पड़ता है.

कितनी ज़रूरत है और कितनी उपलब्धता है?
हर वर्ष लगभग 2 लाख किडनी की आवश्यकता होती है, जबकि मात्र 6000 ही मिल पाती हैं, वहीं प्रति वर्ष 50 हज़ार
लिवर की ज़रूरत होती है, जबकि मात्र 750 ही मिल पाते हैं. इसी तरह से हार्ट की ज़रूरत है 6,000 की और उपलब्धता है महज़ 100. आंखों के लिए तो 11 लाख लोग इंतज़ार में हैं.

– प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 13वें एपिसोड में इस विषय पर प्रकाश डाला था और अंगदान के महत्व के बारे में बात की थी. उन्होंने कहा था, “अंगदान बेहद महत्वपूर्ण विषय है. किडनी, हार्ट और लिवर की आवश्यकता बहुत ही अधिक है, लेकिन उसके मुकाबले ट्रांसप्लांट बहुत ही कम हो पा रहे हैं.”
– वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन के अनुसार भारत में मात्र 0.01% लोग ही ऑर्गन डोनेट करते हैं, जबकि पश्‍चिमी देशों में यह प्रतिशत 70-80 है.

अंगों के सुरक्षित रहने की समयावधि
– हार्ट: 4-6 घंटे
– लंग्स: 4-8 घंटे
– इंटेस्टाइन: 6-10 घंटे
– लिवर: 12-15 घंटे
– पैंक्रियाज़: 12-24 घंटे
– किडनी: 24-48 घंटे

भारत में अंगदान को लेकर उदासीनता क्यों?

– दरअसल, जागरूकता व जानकारी की कमी व कई तरह के अंधविश्‍वासों के चलते लोग आगे नहीं बढ़ते.

– हालांकि कई बड़ी हस्तियों द्वारा कैंपेन करने के बाद लोग आगे आ रहे हैं, लेकिन संस्थाओं व अस्पतालों का रवैया भी कुछ उदासीन है और लोग इससे परेशान होकर भी अपना इरादा बदल लेते हैं. बेहतर होगा कि इस तरह के प्रयासों के लिए जागरूकता अभियान और बेहतर तरी़के से हो. लोगों को शिक्षित किया जाए कि किस तरह से वो मृत्यु के बाद भी लोगों की ज़िंदगियां बचा सकते हैं.

– डोनेशन की प्रक्रिया व व्यवस्था को बेहतर बनाया जाए.
– इसके अलावा धर्म संबंधी ग़लतफ़हमियों के चलते भी लोग अंगदान/देहदान नहीं करते, जबकि सच्चाई यह है कि हर बड़े धर्म में अंगदान/देहदान की इजाज़त दी गई है.

– अंतत: यही कहा जा सकता है कि अंगों की आवश्यकता स्वर्ग में नहीं, धरती पर है, तो क्यों इन्हें जलाया या ख़ाक़ में मिलाया जाए, क्यों न इन्हें डोनेट करें.

 

 

– गीता शर्मा

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