कई सर्वे व रिपोर्ट्स से यह बात सामने आई है कि कोरोना से पीड़ित मरीज़ों को भूलने की समस्याएं हो रही हैं. कोरोना दिमाग़ पर अटैक कर रहा है. ऐसे में जो लोग कोरोना संक्रमण से ठीक हुए हैं, उनमें से बहुत से लोग दिमाग़ की उलझन, याददाश्त कमज़ोर, भूलने जैसी समस्याओं से गुज़र रहे हैं. इनमें से अधिकतर बुज़ुर्ग लोग हैं, जो गंभीर इंफेक्शन के कारण आईसीयू में एडमिट रहे हैं. पिछले दो सालों में कोरोना महामारी ने हमारे याददाश्त को कमज़ोर बना दिया है. एक्सपर्ट के अनुसार, इसके कारण लोगों में फोकस न कर पाने और ज़रूरी जानकारी भूलने की समस्या बढ़ती जा रही है.
कोराना वायरस ने हम सभी को परेशानियों व दर्द के साथ भूलने की बीमारी भी तोहफ़े में दे दी है. कोविड-19 की वजह से सभी के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव आए. लेकिन यहां पर हम बात कर रहे हैं भूलने को लेकर. यूं तो शारीरिक, मानसिक व आर्थिक समस्याएं तो रहीं, पर अनचाहे रूप से ही भूलने की बीमारी ने भी हमें घेर लिया.
कोरोना ने कैसे किया मन-मस्तिष्क पर असर
कोराना काल में हरेक एक रूटीन-सी ज़िंदगी जीने लगे थे, ख़ासकर लॉकडाउन लगने पर. लोगों से मिलना-जुलना, घूमना-फिरना, मार्केटिंग, सोशल गैदरिंग तमाम एक्टिविटीज़ कम होती चली गई. इसका असर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हमारे दिमाग़ पर पड़ने लगा. चूंकि चीज़ों की प्लानिंग नहीं होती थी, कहीं घूमना-फिरना नहीं है, कई आना-जाना नहीं है, अधिकतर लोग वर्क फ्रॉम होम में थे. कई बातों को लेकर कुछ याद रखने जैसा नहीं रहा. इस कारण लोगों की जीवन के प्रति नकारात्मकता और निराशा भी बढ़ती रही. हम सभी जानते हैं ब्रेन तो हर बात को अपने तरीक़े से ले ही लेता है, फिर चाहे वो ख़ुशी हो या ग़म. निगेटिविटी और डिप्रेशन का प्रभाव हमारे दिलों-दिमाग़ पर इस तरह हावी होने लगा कि हम छोटी-छोटी चीज़ों को भूलने लगे.
प्रोफेसर माइकल यास्सा (न्यूरोबायोलॉजी, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया) का कहना है कि याददाश्त का मतलब सिर्फ़ तस्वीर खींचकर याद कर लेना भर ही नहीं है. अमूमन यादें एक पल को जीने से बनती हैं. कोविड-19 के दौरान लोगों के लिए अपने याददाश्त को बनाना या संभालना बहुत कठिन हो गया है. दरअसल, उनकी ज़िंदगी में ऐसा कुछ ख़ास भी नहीं हो रहा है, जिसे वे याद रख सकें. इस कारण भी उन्हें कुछ याद ना रखने की आदत-सी हो गई है.
कोराना संक्रमण से ग्रस्त काफ़ी मरीज़ों को ठीक होने के बाद कुछ बातों को याद ना रहने की परेशानी होने लगी. वायरस की वजह से उनमें याददाश्त कमज़ोर होने की समस्या आने लगी. वायरस लोगों के दिमाग़ में हावी हो चुका है. घबराहट और तनाव की वजह से भूलने की बीमारी बढ़ रही है. महामारी में हमें कुछ याद न रखने की आदत-सी भी हो गई है.
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ केंट में साइकोलॉजी के लेक्चरर आमिर हुमायूं जवादी का मानना है कि मनुष्य को परिस्थिति में ढलने की आदत होती है, लेकिन पिछले दो सालों से हम लोगों ने अपने ज़िंदगी में कुछ अधिक न कोई योजना बनाई, ना ही कुछ ख़ास प्लान किया. अब इन चीज़ों को ना करने की आदत-सी हो गई है. लोग इस तरह का जीवन जीना सीख गए हैं. इस कारण उनकी याद रखने, ध्यान लगाने, याददाश्त की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.
इसके अलावा जिन व्यक्तियों को कोरोना नहीं हुआ है, उन्हें भी हर दिन एक तरह से होने, लोगों से ना मिलने और वर्कआउट की कमी के कारण ब्रेन फॉग होना शुरू हो गया है. ब्रेन फॉग की स्थिति में लोगों के व्यवहार में तेजी से परिवर्तन आते रहते हैं, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, थकान, नींद ना आना, किसी काम में मन न लगना, अवसाद, छोटी-छोटी बातें भूल जाना, याददाश्त कमज़ोर होना जैसी दिक़्क़तें सामने आने लगती हैं.
नेशनल मेंटल हेल्थ क्राइसिस हेल्पलाइन के अनुसार, एंजायटी व ऑब्सेसिव कंपिल्सव डिसऑर्डर जैसी प्रॉब्लम्स भी बढ़ रही हैं. हेल्पलाइन पर हर हफ़्ते 40-45 केस ऐसे आ रहे हैं, जिनमें क़रीब 50 प्रतिशत मामले ऐसे होते हैं, जो कोरोना से रिकवर होने के बाद भूलने की प्रॉब्लम अधिक झेल रहे हैं. मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना के इंफेक्शन की वजह से मरीज़ों में अधिक डर पैदा हो गया है और दिमाग़ी तौर पर वायरस उन्हें कमज़ोर भी बना रहा है. हम देख सकते हैं कि शारीरिक कमज़ोरी, मानसिक दबाव और हाई डोज़ की दवाइयां भी इसकी वजह बन रही है. वायरस से लड़ने पर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह प्रभावित होती है, इसका असर भी हमारे दिमाग़ पर पड़ता है. ओसीडी यानी ऑब्सेसिव कंपिल्सव डिसऑर्डर एंजाइटी से भी मरीज़ डिप्रेशन का शिकार होने लगता है. इस अवस्था में मरीज़ एक ही काम को बार-बार करने लगता है, जैसे- बार-बार हाथ धोना, नहाना, देर तक नहाना, ताला-गेट आदि बंद होने पर भी खुले होने की आशंका, साफ़ होने पर भी गंदगी महसूस करना, किसी चीज़ को छूने के बाद बार-बार उसे साफ़ करने जैसी आदतें उसमें बढ़ जाती हैं.
डॉक्टरों का कहना है कि सार्स-कोव-2 वायरस फेफड़ों पर हमला करता है. इस कारण हमारे शरीर में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाता और ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. ऑक्सीजन की कमी होने पर मरीज़ के मस्तिष्क में भी ऑक्सीजन का प्रवाह कम हो जाता है. इन वजहों से याद रखने की स्थिति पर भी असर होता है. विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना की रिपोर्ट निगेटिव आने के तक़रीबन एक महीने बाद भूलने की समस्या होती रहती है. साथ ही याददाश्त से जुड़ी परेशानियां हो रही हैं. इस महामारी ने हमारी मैमोरी को स्लो बना दिया है. अब यह हम पर है कि हम कैसे इसका मुक़ाबला करें और इससे उबरें.
क्या करें?
भूलने की समस्या या याददाश्त का कमज़ोर होना कोरोना के कारण हुई हो या फिर इस महामारी की चिंता को लेकर हुई हो, अपनी जीवनशैली में बदलाव कर हम अपने ब्रेन को हेल्दी बना सकते हैं और मैमोरी की समस्या को भी सुलझा सकते हैं. भूलने की समस्या से छुटकारा पाने के लिए कई छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत है. निम्नलिखित तरीक़ों को अपनाकर काफ़ी हद तक समस्या को सुलझाया जा सकता है.
– ऊषा गुप्ता
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