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कहानी- अपवाद (Short Story- Apwad)

“परिपक्व उम्र का प्यार भी परिपक्व होता है बेटी. अब शारीरिक क्षुधा तो समाप्त हो गई है और मन उनके प्यार से परितृप्त है. वे मेरे मन में बसे हुए हैं, जहां मैं उनसे हर बात साझा करती हूं, सलाह-मशविरा करती हूं.”

पापाजी के देहावसान का अप्रत्याशित समाचार मिलते ही राशि और राहुल पहली ही फ्लाइट पकड़कर इंडिया आ गए थे. साइलेंट हार्ट अटैक ने नींद में ही उनकी जान ले ली थी. अंतर्मुखी और शांत स्वभाव के पापाजी ने आख़िरकार दुनिया भी उसी अंदाज़ में छोड़ दी थी, पर वाचाल, भोली और मिलनसार सविताजी पर तो मानो पहाड़ टूट पड़ा था. रिश्तेदार और पड़ोसी महिलाओं के भरपूर सहयोग के बावजूद राशि के लिए उन्हें संभालना मुश्किल हो गया था. ख़ैर, गुज़रते व़क्त के साथ-साथ सब संभलने लगा, पर राशि और राहुल जानते थे कि मां की ज़िंदगी में अचानक आया खालीपन इतनी आसानी से भरनेवाला नहीं है.
पिता की ही तरह अल्पभाषी और धीर-गंभीर राहुल और भी चुप-चुप रहने लगा, तो राशि ने आगे बढ़कर सारी ज़िम्मेदारियां ओढ़ ली थीं. यहां तक कि उनके अमेरिका लौटने का दिन आने से पहले-पहले उसने मम्मीजी को भी किसी तरह साथ चलने के लिए मना ही लिया था.
“यह घर ऐसे का ऐसा ही रहेगा मम्मीजी. आपका वहां मन न लगे, तो आप कभी भी वापस आ सकती हैं.” राशि के इस आश्‍वासन पर ही सविताजी बच्चों के साथ जाने के लिए तैयार हो पाई थीं. वैसे भी बेटे-बहू के सिवाय अब उनका दुनिया में और था भी कौन?
राशि ने बहुत ही उत्साह से अमेरिका में रहनेवाले अपने संबंधियों और दोस्तों से सविताजी को मिलवाया था. उसका तो पूरा परिवार ही अमेरिका में बसा हुआ था. राहुल से भी उसकी मुलाकात उच्च अध्ययन के तहत कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में हुई थी और बस वहीं दोनों एक-दूसरे को दिल दे बैठे थे. राशि के घरवाले तो एक बार में ही इस रिश्ते के लिए तैयार हो गए थे. हां, राहुल के माता-पिता को ख़ुद को समझाने में थोड़ा व़क्त लगा था… यदि बेटा पढ़-लिखकर वहीं नौकरी करेगा, तो ठीक ही है, अपना कहने को वहां इतने लोग होंगे. कम से कम बहू इंडियन तो है.
बातूनी, मिलनसार सविताजी को तो मानो बेटी, सहेली सब कुछ मिल गई थी. विदेश में पली-बढ़ी होने पर भी राशि को सविताजी के साथ सामंजस्य बिठाने में कोई परेशानी नहीं हुई. कारण, सविताजी का दिल बिल्कुल साफ़ था. वे राशि को सच्चे दिल से अपना मानने लगी थीं और उनकी यही साफ़गोई और सच्चाई राशि को अंदर तक छू जाती थी. राशि ने अपनी उच्च शिक्षित, कामकाजी मां से निर्भीकता, स्मार्टनेस सीखी थी, पर अब सविताजी की उदारता, विनम्रता, माधुर्य और सादगी भी अपना लेने से उसके व्यक्तित्व में चार चांद लग गए थे.

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मम्मीजी को अपने साथ अमेरिका लाकर राशि संतुष्ट थी, पर मम्मीजी संतुष्ट हैं या नहीं, इसे लेकर वह आश्‍वस्त नहीं हो पा रही थी. और उसकी आशंका निर्मूल भी नहीं थी. विदेश प्रवास का सविताजी का यह पहला अवसर था. सब कुछ अनजाना होते हुए भी अपनों के संग होने का भाव उन्हें आश्‍वस्त किए हुए था, लेकिन इधर काफ़ी समय से मिलने आने-जानेवालों का उन्हें देखते ही कुछ
खुसर-पुसर करने लग जाना, फिर राशि से अकेले में उनकी ओर इशारा करते हुए कानाफूसी करना उन्हें आशंकित करने लगा था. क्या वे यहां के तौर-तरी़के सही तरह से फॉलो नहीं कर पा रही हैं? कहीं उनकी वजह से राशि और राहुल को कोई शर्मिंदगी तो नहीं उठानी पड़ रही है? यदि ऐसा है, तो उन्हें तुरंत इंडिया लौट जाना चाहिए.
उधर लोगों के सुझावों और प्रस्तावों ने राशि को अजीब धर्मसंकट में डाल दिया था. वह कैसे मम्मीजी के सम्मुख ये सब बातें और प्रस्ताव रखे? जिस तरह के समाज और मानसिकता के बीच वह बचपन से रहती आई है, उसमें यह सब बहुत सामान्य बात है. लेकिन मम्मीजी जिस तरह के परिवेश से आई हैं, वहां इस तरह की बातें, प्रस्ताव…
राशि को तो यह भी डर था कि उसके प्रस्ताव रखते ही कहीं मम्मीजी उसी व़क्त पैदल ही इंडिया रवाना न हो जाएं. राहुल भी तो सब सुनकर एकबारगी कितने असहज हो गए थे. राशि ने समझाना चाहा, तो उन्होंने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया था कि मुझे नहीं लगता कि मां इसके लिए कभी तैयार होंगी.
राशि समझ गई थी कि यह मोर्चा उसे अकेले ही संभालना है. यदि मम्मीजी सहमत हो जाती हैं, तो यह न केवल उनके लिए वरन पूरे परिवार के लिए बहुत राहत और ख़ुशी की बात होगी, पर इसकी संभावना उसे शून्य ही नज़र आ रही थी. इसमें कोई संदेह नहीं कि अपने साधारण रूढ़िवादी परिवेश के बावजूद मम्मीजी बहुत प्रगतिशील विचारों की हैं. शादी से पहले ही राहुल ने उसे बता दिया था कि चाहे पूरा घर-बिरादरी उनकी शादी के ख़िलाफ़ हो जाए, लेकिन मां शत-प्रतिशत उन्हीं का साथ देंगी.
“अच्छा, इतने विश्‍वास की वजह?” राशि ने शोख़ी से पूछा था.
“मां का दिल बहुत साफ़, कोमल और सच्चा है. मैं उन्हें जैसे ही हमारे प्यार की गहराई का वास्ता दूंगा, वे तुरंत पिघल जाएंगी और आगे होकर तुम्हारा हाथ मांग लेंगी.”

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राशि ने सविताजी के बारे में जो सुना था, शादी के बाद उन्हें उससे कहीं बढ़कर पाया. कई बार तो राशि का पक्ष लेते हुए वे राहुल को ही झिड़क देती थीं. राहुल तो शादी के बाद हमेशा के लिए इंडिया सेटल हो जाना चाहता था. राशि उसकी भावनाओं को समझती थी. सहमत भी थी, लेकिन जल्दबाज़ी में कोई भी निर्णय लेना उसे समझदारी नहीं लग रहा था. “देखिए न मम्मीजी, राहुल तो ज़िद पकड़कर बैठ जाते हैं. कहते हैं नौकरी तो मिल ही जाएगी, आज नहीं तो कल! यदि इंडिया लौटना है, तो बस तुरंत लौट चलो.”
“अच्छा, राहुल ने ऐसा कहा? हम तो सोच रहे थे वो हमेशा के लिए वहीं विदेश में ही बस जाएगा.” सविताजी गर्व से फूल उठी थीं.
“मम्मीजी, उन्हें आप सबसे बहुत लगाव है. मैं भी यही चाहती हूं कि सभी साथ रहें, लेकिन जब तक यहां दूसरी नौकरी का इंतज़ाम नहीं हो जाता, तो हम दोनों की लगी लगाई बढ़िया नौकरियां छोड़कर आना क्या समझदारी होगी? वहां रहते हुए भी तो यहां नौकरी ढूंढ़ सकते हैं?”
“हां और क्या? मैं राहुल को समझाती हूं.”
मां के कहने पर ही राहुल को दो साल और अमेरिका में रुकना पड़ा था. दो साल बाद जब वो इंडिया आने के लिए पूरी तरह तैयार था, तो मां ने उसे यह कहकर फिर रोक दिया था, “बहू क्या वहां अकेली रहेगी? उसकी भी तो यहां नौकरी लग जाने दे.”
“अकेली क्यूं? उसका तो पूरा घर-परिवार है यहां.” राहुल ने तर्क दिया था.
“वह वहां अपने घर परिवार के साथ रहती है या तेरे साथ? वो तेरी ज़िम्मेदारी है न! और अपनी ज़िम्मेदारी से इस तरह मुंह मोड़कर आना भले घर के लड़कों की निशानी नहीं है.”
“लेकिन इसमें न जाने कितना टाइम और लग जाएगा मां?”
“जहां इतने साल लगे हैं, वहां एकाध और सही, लेकिन मैं चाहती हूं तुम दोनों साथ इंडिया लौटो.”
राशि के घर-परिवारवाले, दोस्त, ऑफिसकर्मी सभी उसकी सास का निर्णय जानकर आश्‍चर्यचकित रह गए थे. “इंडियन सास तो अपनी बहू को सांस भी नहीं लेने देतीं. बड़ी स्ट्रिक्ट और रूढ़िवादी होती हैं.”
“मेरी सास अपवाद हैं.” राशि गर्व से मुस्कुराते हुए बताती. टिपिकल सास जैसी नहीं हैं और देखने में भी वे बेहद ख़ूबसूरत हैं. अभी 50 की हुई हैं, पर देखने में 50 से भी कम की लगती हैं.”
“राशि, बेटी तूने ये कैसे कपड़े रखे हैं मेरे पहनने के लिए?” मम्मीजी की पुकार सुनाई पड़ी, तो विगत में खोई राशि वर्तमान में लौटी. वह भागती हुई मम्मीजी के कमरे में पहुंची.
“मैंने बताया तो था कि आपके लिए कुछ नए सूट तैयार करवाए हैं, जो यहां के मौसम और रहन-सहन के हिसाब से आपके लिए सही रहेंगे.”

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“हां, पर इनके रंग तो देख. ये लाल-पीले कपड़े मैं पहनूंगी?”
“मम्मीजी, आप भूल जाती हैं यह इंडिया नहीं है. यहां यह सब कोई नहीं देखता.”
“इंडिया नहीं, इंडियन्स तो हैं. मैं तो राहुल के सामने भी ये सब पहनकर नहीं जा सकती. क्या सोचेगा वो?”
“कोई कुछ नहीं सोचेगा. जो सोचता है, वो आपके भले के लिए ही सोचता है और राहुल तो वैसे भी आज से 3-4 दिनों के लिए बाहर गए हैं. भूल गईं आप?”
“ओह हां! पर फिर भी मुझसे यह सब पहनकर किसी के सामने नहीं जाया जाएगा. वैसे ही लोग मुझे देखकर जाने क्या-क्या बातें बनाते रहते हैं?”
“कैसी बातें?” राशि ने चौंककर पूछा. “किसी ने आपसे कुछ कहा क्या?”
“म…मुझे नहीं कहा तो क्या, तेरे तो कान भरते ही हैं. देख बेटी, मैं नहीं चाहती मेरी वजह से यहां तुम लोगों को कोई नीचा दिखाए. वैसे तो मैं अपनी ओर से बहुत संभलकर रहती हूं, फिर भी शायद कभी कोई भूल हो गई हो. यहां के तौर-तरी़के नहीं जानती न! तू राहुल से कहकर अब मेरे इंडिया लौटने की व्यवस्था करा दे. वैसे भी मुझे यहां आए अब बहुत समय हो गया है.”
राशि को लगा यही उपयुक्त समय है खुलकर बात करने का. “आप कहीं नहीं जा रहीं मम्मीजी, बल्कि हमेशा के लिए यहीं बसने जा रही हैं. आप अपने आपको एक नई ज़िंदगी की शुरुआत के लिए तैयार करना आरंभ कर दें.”
“ये तू क्या पहेलियां बुझा रही है?”
“आप लोगों की कानाफूसी की बात कर रही थीं न? वे आपसे, आपकी ख़ूबसूरती से, आपकी व्यवहारकुशलता, आपकी पाककला आदि सभी से बहुत ज़्यादा प्रभावित हैं. कोई अपने विधुर भाई के लिए, तो कोई अपने तलाक़शुदा बेटे के लिए आपका रिश्ता मांग रहा है.”
सविताजी भौचक्की-सी राशि को देख रही थीं. “तू पागल तो नहीं हो गई है? क्या बके जा रही है?”
“मम्मीजी, शांत हो जाइए. यहां यह सब बहुत सामान्य बात है. फिर वे आपके भले के लिए ही यह सब कह रहे हैं. अभी आपकी उम्र ही क्या है!”
“राहुल जानता है यह सब?” सविताजी अब भी सदमे की सी स्थिति में थीं.
“हां, मैंने बताया था उन्हें.” कहते-कहते राशि को ख़्याल आ गया कि यदि वह राहुल की प्रतिक्रिया शब्दश: बता देगी, तो मम्मीजी कभी भी इस प्रस्ताव के लिए तैयार नहीं होंगी. “वो भी यही कह रहे थे कि मां जैसा ठीक समझें. मम्मीजी, आप इतनी समझदार, व्यावहारिक और प्रगतिशील विचारोंवाली हैं. अच्छी तरह जानती हैं कि ज़िंदगी का सफ़र अकेले तय करना कितना मुश्किल है?”

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“लेकिन मैं अकेली नहीं हूं. तुम्हारे पापाजी शरीर से भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें, उनका प्यार मेरे दिलोदिमाग़ में रच-बस गया है, जिसके सहारे मैं आराम से अपनी शेष ज़िंदगी व्यतीत कर सकती हूं. तुम्हारे लिए यह समझना थोड़ा मुश्किल होगा, क्योंकि तुम्हारी वैवाहिक ज़िंदगी की तो शुरुआत ही प्यार से हुई है, लेकिन मेरा वैवाहिक जीवन जब आरंभ हुआ था, तब मैं प्यार का क ख ग… भी नहीं जानती थी. मात्र 19 वर्ष की थी तब मैं. शारीरिक संबंधों को ही प्यार समझती थी. 20 की हुई, तब राहुल गोद में आ गया था. तुम्हारे पापाजी दूसरे शहर में नौकरी करते थे. ससुरजी का प्रॉपर्टी का बिज़नेस था और मैं सास-ससुर के पास ही रहती थी. सप्ताहांत में या कभी-कभी तो दो सप्ताह में राहुल के पापा घर आते थे. कभी उनकी अपने ही शहर में ट्रांसफर करा लेने की बात चलती, तो कभी मुझे उनके पास भेजने की बात. इस ऊहापोह में कुछ वर्ष तो ऐसे ही निकल गए. राहुल स्कूल भी जाने लग गया. मुझे अब उनसे दूर रहना अखरने लगा था. मन हमेशा उनके सामीप्य की कामना करता रहता. शायद ऐसी ही मनोदशा उनकी भी थी. शायद हमारे दिलों में सच्चे प्यार का अंकुरण हो चुका था, लेकिन राहुल के पापा को तो तुम जानती ही हो. वे इस सच्चाई को कहां अपने मुंह से स्वीकारने वाले थे? पर मैं ग़ौर कर रही थी कि उनके घर के चक्कर, फोन कॉल्स आदि बढ़ गए थे. उस समय मोबाइल तो थे नहीं. लैंडलाइन पर ही राहुल की पढ़ाई या अन्य किसी बहाने से ये मुझसे बात करने में आतुरता दिखाते, तो ऊपर से शर्माती मैं अंदर ही अंदर ख़ुशी से फूल उठती थी.
हमारा प्यार परवान चढ़ना शुरू ही हुआ था कि अचानक हृदयाघात से मेरे ससुरजी चल बसे. शोक संतप्त उस घड़ी में लंबे समय तक साथ रहने का मौक़ा मिला, तो हम परस्पर और भी पास आ गए. उस बार जब वो हमें छोड़कर गए, तो मैंने निश्‍चय कर लिया कि अब मैं मांजी और राहुल को लेेकर हमेशा के लिए इनके पास चली जाऊंगी, लेकिन मैं आश्‍चर्यचकित रह गई, जब कुछ दिन बाद ये ही अपना बोरिया-बिस्तर समेटकर हमेशा के लिए हमारे संग रहने आ गए. इन्होंने तर्क दिया कि अब सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृति लेकर ये बाऊजी का बिज़नेस संभालेंगे. लेकिन अपने अंतरंग क्षणों में इन्होंने स्वीकार किया कि मेरा मोह ही इन्हें हमेशा के लिए यहां खींच लाया था. मैंने भी अपना प्यार उजागर करते हुए इन्हें अपने इरादे से अवगत करा दिया था. हमारी ज़िंदगी के वे स्वर्णिम दिन थे. मांजी सत्संग में, तो राहुल अपनी उच्च शिक्षा में व्यस्त था और हमारा सारा समय एक-दूसरे को समर्पित था. फिर मांजी भी चल बसीं, राहुल विदेश चला गया, पर परवान चढ़ते प्यार को अचानक विराम लग गया. तुम्हारे पापाजी साथ छोड़ गए… परिपक्व उम्र का प्यार भी परिपक्व होता है बेटी. अब शारीरिक क्षुधा तो समाप्त हो गई है और मन उनके प्यार से परितृप्त है. वे मेरे मन में बसे हुए हैं, जहां मैं उनसे हर बात साझा करती हूं, सलाह-मशविरा करती हूं. अब बताओ, ऐसे में मैं किसी और को कैसे अपने दिल में जगह दे सकती हूं.”
राशि अवाक् थी. मम्मीजी-पापाजी की परिपक्व प्रेमगाथा ने उसे अभिभूत कर दिया था. पर साथ ही अपने प्रेम के प्रति उसका मन आशंका से भर उठा था. वह तो कॉलेज के प्रथम वर्ष में ही राहुल के प्यार में पड़ गई थी, तो क्या अपरिपक्व उम्र का प्रेम व़क्त के साथ समाप्त हो जाएगा? जैसा कि वह यहां देखती आई है. संबंंंध जोड़ना और तोड़ना यहां तो आम है.
“क्या हुआ बेटी? अचानक तुम्हारा चेहरा क्यूं उतर गया? मैंने कोई ठेस तो नहीं पहुंचा दी तुम्हें?”
राशि उनसे अपना भय साझा किए बिना न रह सकी.
“ऐसा कुछ नहीं होगा. यहां के समाज के लिए तुम्हारा प्रेम अपवाद साबित होगा. मैंने तुम्हारे आपसी प्यार में अल्हड़पन, नादानियां देखी हैं, तो गहन समर्पण और अपनत्व भी महसूस किया है. मेरा आशीर्वाद है तुम्हारा प्रेम सदैव अक्षुण्ण बना रहेगा.”
वातावरण में घुलती पवित्रता और विश्‍वास ने सास-बहू के रिश्ते को और भी प्रगाढ़ बना दिया था.

        अनिल माथुर

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