हकलाने वाले बच्चे एक ही अक्षर या शब्द को लम्बा खींचते हैं. कोई वाक्य बोलते वक्त अचानक किसी अक्षर या शब्द पर अटक जाते हैं और उसे बार-बार बोलने की कोशिश करते हैं. अलग-अलग बच्चों में इसके लक्षण भी अलग-अलग होते हैं. प्राय: हर सौ लोगों में एक इस दोष से पीड़ित होता है. कोई बार-बार किसी ख़ास अक्षर या शब्द पर ही अटकता है, तो कोई अचानक किसी भी शब्द पर अटक जाता है. कई बार सामान्य रूप से बातचीत करनेवाले बच्चे या बड़े भी भय, शर्म, तनाव, निराशा या आत्मविश्वास डगमगाने की स्थिति में हकलाने लगते हैं.
यह ज़रूरी नहीं कि हकलानेवाला बच्चा गा नहीं सकता. ऐसे कई मामले देखने में आते हैं कि सामान्य बातचीत में हकलाने वाला बच्चा किसी शब्द पर अटकता है, लेकिन कविता या गाना सुनाते वक्त उसी अक्षर या शब्द को बड़ी सहजता से बोल जाता है.
हकलाहट अथवा स्टैमरिंग आमतौर पर तीन से पांच साल की उम्र में शुरू होती है. पांच से नौ साल के बच्चों में यह दोष धीरे-धीरे कम हो जाता है तथा 12-13 साल के बच्चों में बहुत कम पाया जाता है. चिकित्सकों के मुताबिक शुरुआती दौर में लगभग 5 फीसदी बच्चों में यह दोष पाया जाता है. इनमें से 5 फीसदी बच्चे बिना किसी मदद या इलाज के अपने आप ठीक बोलने लगते हैं.
एक दिलचस्प तथ्य यह है कि लड़कियों के मुक़ाबले लड़कों में यह भाषा संबंधी दोष 5 गुना ज़्यादा पाया जाता है. वैसे तो यह एक सामान्य दोष है और शुरुआती दौर में संभवत: बच्चे की भाषा पर बहुत अच्छी पकड़ न होने के कारण भी हो सकता है. फिर भी कई ऐसे मनोवैज्ञानिक कारण हैं, जिनकी वजह से ऐसा होता है. शारीरिक दोष तो बहुत कम बच्चों में पाया जाता है. मुख्यत: भावनाओं के भारी झंझावात और असमंजस की स्थिति में उलझने के कारण ही ऐसा होता है. बच्चा एक साथ अपनी स्कूल, घर, मित्र मंडली, पैरेन्ट्स, टीचर्स आदि की बातों में उलझा होता है, उसी के प्रभाव से ऐसा हो जाता है. कई बार किसी के भय से वह बोलना छोड देता है. इससे भी बोलने की क्षमता प्रभावित होती है.
* इस दोष का इलाज किसी दवा से नहीं किया जाता. स्पीच थेरेपिस्ट और मनोवैज्ञानिक ही इस समस्या का निदान कर सकते हैं.
* सर्वप्रथम हकलाहट का कारण जानने की कोशिश की जाती है.
* बच्चे के मन में किसी प्रकार का भय हो, तो उसे दूर करने की कोशिश होती है.
* उसके मन में आत्मविश्वास पैदा किया जाता है और दिमाग़ से यह बात दूर करने के प्रयास किए जाते हैं कि उसके अन्दर किसी प्रकार का दोष है.
* बच्चे को तनावमुक्त रखना ही मनोवैज्ञानिक और स्पीच थेरेपिस्ट का मुख्य उद्देश्य होता है.
* स्पीच थेरेपिस्ट उन्हीं शब्दों या अक्षरों को बच्चे से बार-बार बुलवाता है, जिन्हें बोलने में उसे परेशानी होती है.
* ज्यों-ज्यों निरन्तर अभ्यास के कारण बच्चे का उच्चारण सुधरता है, उसके मन में आत्मविश्वास आने लगता है.
* अधिकांश मामलों में सुधार स्पष्ट नज़र आने लगता है.
* पेरेन्ट्स को सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा भयभीत या तनावग्रस्त न रहे.
* अगर बच्चा हकलाता है, तो उसका न स्वयं मज़ाक उड़ाएं न किसी को उड़ाने दें.
* आपका दो पल का मज़ाक उसे ज़िन्दगीभर के लिए तकलीफ़ दे सकता है.
* बच्चे को ज़्यादा से ज़्यादा बोलने के लिए प्रेरित करें.
* बच्चे की मौजूदगी में उसके दोष के बारे में चर्चा करने से बचें.
* बच्चे को कहानी, कविता, गीत आदि सुनाने के लिए प्रेरित करें व उसकी प्रशंसा कर उसे प्रोत्साहन दें.
* दूसरे बच्चों से तुलना करके उसे लज्जित करने का प्रयास बिल्कुल न करें.
* बच्चा कोई वाक्य बोलते वक्त अटकता हो, तो धैर्य से उसकी बात सुनें और उसे ही अपना वाक्य पूरा करने दें. आप उस वाक्य को पूरा न करें.
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