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अपनी इमोशनल इंटेलीजेंसी को कैसे इम्प्रूव करें? (How To Increase Your Emotional Intelligence?)

भावनाएं ही तो हैं, जिनसे कितने ही ख़्वाब व ख़्वाहिशें होती हैं पूरी. ज़िंदगी के सफ़र में जो कभी ख़ुशियों की, तो अक्सर जीने की वजह बन जाते हैं. ऐसे में अपने इमोशंस का ख़्याल रखना तो बेहद ज़रूरी बन जाता है, ख़ासतौर पर अपनी ईक्यू यानी इमोशनल इंटेलीजेंसी को इम्प्रूव करना. अक्सर अनकहे से रह जानेवाले इस पहलू पर एक नज़र डालते हैं.

 भावनाओं पर ही दुनिया टिकी हुई है. फिर चाहे वो भावना अच्छी हो या बुरी. सभी के अपने-अपने मायने हैं. लेकिन जब बात इमोशनल इंटेलीजेंसी की होती है, तो स्थिति थोड़ी बदल जाती है. इमोशनल इंटेलीजेंसी के संदर्भ में मनोवैज्ञानिक परमिंदर निज्जर ने हमें कई महत्वपूर्ण जानकारियां दीं. उनके अनुसार ईक्यू यानी इमोशनल इंटेलीजेंसी हमारी अपनी भावनाओं तक पहुंचने की वह क्षमता है, जिससे हम अपनी ज़िंदगी को और भी ख़ूबसूरत व बेहतर बना सकते हैं. इसके ज़रिए हम अपनी भावनाओं को संतुलित रखते हुए अपने मानसिक तनाव को नियंत्रण में रख सकते हैं. साथ ही दूसरों से प्रभावशाली रिश्ते बनाने में भी समर्थ हो सकते हैं. एकबारगी देखें, तो इससे हम पर्सनल व प्रोफेशनल दोनों ही स्तरों पर ख़ुद को अधिक-से-अधिक बेहतर बनाते हैं. इस पर एकाग्र होकर ध्यान देते रहने से ईक्यू समय के साथ विकसित होता जाता है और इसमें पैनापन आता जाता है.

स्मार्ट पॉइंट्स

* किसी भी घटना से जुड़े अपनी इमोशनल रिएक्शन को नोट करते रहें. जब भी व़क्त मिले, अपने अनुभवों से उन भावनाओं को समझें व स्वीकारें.

* अपने दुख-दर्द, ख़ुशी, परेशानी, संतुष्टि आदि भावनाओं को समझने का अभ्यास करें.

* दिनभर में जब भी समय मिले अपनी भावनाओं को टटोलने की आदत डालें.

* सुबह उठते ही किस तरह की भावनाएं उठती हैं और सोते समय अंतिम भावनाएं कैसी रहती हैं, इन पर गौर करें.

* भावनाओं से जुड़े लक्षणों की उपेक्षा न करें, बल्कि उस पर ध्यान दें, जैसे- तनाव, सांसें तेज़ चलना, सीने में जकड़न, पेट में हलचल, दिल की धड़कन बढ़ना आदि.

* देखें कि आपकी भावनाएं व व्यवहार एक-दूसरे से कैसे जुड़े हुए हैं.

* जितनी जल्दी आप अपने प्रति उत्पन्न हो रहे व्यवहार को समझने लगेंगे, उतना अधिक ईक्यू लेवल बढ़ता जाएगा.

नई दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल के मनोचिकित्सक डॉ. संदीप वोहरा ने ईक्यू को और भी अधिक स्पष्ट करते हुए अपनी बात कुछ यूं रखी.

रिश्ते-नाते, प्यार-मोहब्बत, नौकरी-व्यापार… तक़रीबन सब कुछ भावनाओं के इर्दगिर्द ही घूमता रहता है. यदि हम अपनी भावनाओं को सही दिशा नहीं देते और संतुलित नहीं करते, तो यह विस्फोटक स्थिति हो सकती है. जैसा अक्सर आप देखते रहते हैं कि दुनियाभर में भावनाओं की तीव्रता के कारण ही जंग-सी छिड़ी रहती है. भावनाएं तो लगातार बहती रहती हैं. जिस तरह हमारे अंतर्मन में चल रहे विचारों का समंदर बहता रहता है. लेकिन तय तो हमें ही करना होगा कि अपनी भावनाओं को कैसे संभालें. इसी कड़ी में मदद करती है इमोशनल इंटेलीजेंसी, जो हमारी भावनाओं को समझदारी से हैंडल करती है.

यूं करें इमोशनल इंटेलीजेंसी को इम्प्रूव

अंतर्मन को टटोलें

क्या कहता है आपका मन… देखें कि आपका मन आपके बारे में क्या राय रखता है. वो किस तरह से क्रियाएं-प्रतिक्रियाएं देता है. भागदौड़भरी ज़िंदगी में हम इस पहलू को गंभीरता से लेते ही नहीं हैं, इसलिए यह ज़रूरी है कि आप थोड़ा व़क्त ख़ुद को दें और अपने विचारों व इच्छाओं पर ध्यान दें. आख़िर यह कितना सही और तर्कपूर्ण है. जब हम ध्यान व योग करते हैं और अपने मन को जानने-समझने लगते हैं. तब सही मायने में हम अपनी भावनात्मक बुद्धिमता को भी बढ़ाते जाते हैं.

दूसरों की स्थिति को समझने की कोशिश

यह बेहद ज़रूरी है कि आप अपने साथ-साथ ख़ुद से जुड़े लोगों की स्थितियों को गहराई से जानने की कोशिश करें. उनकी भावनाओं को समझें. ख़ुद को उनकी जगह पर रखकर देखें. इससे आपको उनकी परिस्थितियों को अच्छी तरह से समझने में मदद मिलेगी. इससे आपका व्यवहार सही होगा व ईक्यू बढ़ेगी.

 सेल्फ अवेयरनेस की प्रैक्टिस

आत्मविश्‍लेषण का अभ्यास करें. हर रोज़ सुबह उठते समय एक बार ख़ुद को लेकर विचार करें. रात को सोने से पहले दिनभर की दिनचर्या के बारे में चिंतन-मनन करें. उसे देखें-समझें. पूरे दिन में ख़ुद के द्वारा की गई क्रिया-प्रतिक्रिया के बारे में ध्यान दें. सेल्फ अवेयरनेस को लेकर की गई इस तरह की प्रैक्टिस आपको काफ़ी हद तक भावनात्मक रूप से जागरूक कर देगी.

ख़ुद को मोटिवेट करें

ख़ुद को प्रोत्साहित करना, अपनी ज़िंदगी को बेहतरीन बनाने का सबसे कारगर उपाय है. यही आपको कभी निराश होने नहीं देता. मायूसी आप तक फटकने नहीं पाती, इसलिए सदा स्वयं को उत्साहित करते रहें. कहें- आई एम प्राउड ऑफ मायसेल्फ… जब हम ख़ुद पर गर्व महसूस करने लगते हैं, तब हम और भी आशावादी और सहज होते जाते हैं. यह कहकर ख़ुद को प्रोत्साहित करें कि आई एम द बेस्ट… सुनने में कितना अच्छा लगता है. अक्सर स्वयं की तारीफ़ करना, ख़ुद पर विश्‍वास रखना, अपने आपको प्रोत्साहित करने के लिए बेहद ज़रूरी होता है.

हेल्दी व बेहतर रिश्ते बनाएं

अपने रिश्तों को सहेजने की कोशिश करें. उन्हें व़क्त दें. अपनों के साथ पर्याप्त समय बिताएं. उनके लिए आप हैं और हर मुश्किल घड़ी में उनके साथ हैं… इस तरह का भरोसा दिलाएं, ताकि वे ख़ुद को अकेला न समझें. इससे आपके रिश्ते कभी उदासीन, नीरस व बीमार नहीं पड़ेंगे.

सही दृष्टिकोण व मिलनसार होना

जैसी सोच वैसी स्थिति… हम जैसा सोचते, दूसरों के प्रति जैसा नज़रिया रखते हैं, कहीं-न-कहीं हम अपने लिए एक ख़ूबसूरत दायरा बनाते चले जाते हैं. हमारा दृष्टिकोण हमारे भावनात्मक पक्ष को बेहतर बनाता है. लोगों से मिलें, उनसे बातचीत करें, उनसे अपनी भावनाओं का आदान-प्रदान करें. अक्सर हम बहुत सारी बातें कह नहीं पाते. कभी ख़ामोश रह जाते हैं, तो कभी सही शब्दों की तलाश में व़क्त गुज़र जाता है. रिश्तेदारों, दोस्तों, कलीग्स से मिलें-जुलें, अपनी कहें और उनकी सुनें.

मतभेद में मन भेद न होने दें

जब कभी कोई वाद-विवाद हो, तो केवल कह भर के ही न रह जाएं. यह नहीं कि हमने बोल दिया बस हो गया. अपना रिएक्शन देने के साथ-साथ दूसरे पक्ष को भी समझें. उनकी बातों का भी जवाब दें. ऐसा नहीं कि एकतरफ़ा संघर्ष रह जाए. मतभेद होना स्वाभाविक है, लेकिन इसमें मन भेद न होने दें यानी मन में दुर्भावना न रखें. यदि सामनेवाला आपसे अपनी बात कहना चाह रहा है, तो उसे सुनें. अनसुना न करें. किसी भी लड़ाई-झगड़े को लंबा न खींचे.

सुनने की क्षमता बढ़ाएं

कहने की ही नहीं, सुनने की भी क्षमता रखें. अपनी बात कहें, पर दूसरे की भी सुनें. भावनाओं व संबंधों को मज़बूत बनाने का अचूक फॉर्मूला है यह. यदि आप सुनने का सामर्थ्य रखते हैं, तो आप जाने कितनी समस्याओं को अनजाने में ही सुलझा देते हैं. फिर चाहे वो मानसिक हों या शारीरिक.

सकारात्मक दृष्टिकोण का अभ्यास

ज़िंदगी में जिसने हर हाल में पॉज़िटिव रहना सीख लिया, उसने मानो सही मायने में जीना सीख लिया. स्थितियां-परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, यदि आपकी सोच सकारात्मक रहती है, तो आप बहुत-सी परेशानियों से बच जाते हैं. सकारात्मक दृष्टिकोण आपको हर हाल में संतुलित रहने की मनःस्थिति देता है, इसलिए पॉज़िटिव एटीट्यूड की प्रैक्टिस करना ज़रूरी है. जब आप इसे नियमित रूप से करने लगते हैं, तब एक समय ऐसा आता है, जब आप इसके मास्टर बन जाते हैं. फिर कोई भी स्थिति आपको डांवाडोल नहीं कर पाती.

आलोचनाओं को सहजता से लें

कहते हैं, निंदक नियरे राखिए… आपके आलोचक ही हक़ीक़त में आपके प्रशंसक होते हैं. अपनी निंदा या आलोचना को स्वीकारना सीखें. उसे सहजता से लें. इसे लेकर अधिक परेशान न हों. शोधों से पता चला है कि जब हम अपनी आलोचनाओं को बिना हलचल के शांत मन से स्वीकार करने लगते हैं, तब और भी सक्षम बनते चले जाते हैं. हमारा नज़रिया विस्तृत होने लगता है. दूसरों को देखने का दृष्टिकोण बदलने लगता है. हम अधिक उदार और दयालु होते जाते हैं.

दूसरों के साथ सहानुभूति रखें

सहानुभूति दिलों को जोड़ने का काम करती है. चाहे अपने हों या पराए, किसी के दुख, विपत्ति, परेशानी में हमारा ढांढस बंधाना, प्रेमभरे दो मीठे बोल बोलते हुए सहानुभूति दिखाना, दुखी व्यक्ति के ज़ख़्म पर मरहम का काम करता है. इससे उनका ही नहीं, हमारा भी भला होता है. हम नम्र व सौम्य बनते जाते हैं.

नेतृत्व कौशल का उपयोग करें

हर किसी में लीडरशिप के गुण होते हैं. बस, बात होती है थोड़ी हिचक व शर्मीलेपन की. लेकिन ज़िंदगी में हमें पहल करने, किसी कार्य को ख़ुद के बलबूते पर आगे बढ़कर करने का प्रयास करना चाहिए. नेतृत्व के गुण का अधिक-से-अधिक इस्तेमाल करना चाहिए. इससे ईक्यू इम्प्रूव होने के साथ-साथ आत्मविश्‍वास बढ़ता है. काम करने की इच्छा बलवती होती है. सफलता का ग्राफ भी ऊपर उठता है.

डिफरेंट स्ट्रोक

भावनाओं के अतिरेक में स्थिति बेहद बिगड़ भी जाती है. ऐसे में समझदारी यही होती है कि रूटीन से हटकर कुछ किया जाए यानी कि अपने काम से ब्रेक ले लिया जाए. ईक्यू से जुड़ा एक पहलू यह भी है. कुछ ऐसा ही ऑस्ट्रेलियन क्रिकेटर ग्लेन मैक्सवेल ने भी किया. वे मानसिक व भावनात्मक रूप से इस कदर परेशान थे कि उन्होंने क्रिकेट से दूरी बनाना ही बेहतर समझा. ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट बोर्ड से उन्होंने इसके लिए निवेदन किया और उनकी भावनाओं का ख़्याल रखते हुए क्रिकेट बोर्ड मान भी गया. भावनाओं का ही तो लेना-देना है हमारे जीवन से. ये हैं, तो सब है, वरना कुछ भी नहीं. सुख-दुख, ख़ुशी-ग़म सब कुछ इसी पर आधारित है. ये भावनाएं ही तो हैं, जो हमें जीने के लिए या फिर मरने के लिए उकसा देती हैं. ऐसे में इसके प्रति ईमानदारी और समझदारी होना ज़रूरी है.

– ऊषा गुप्ता

यह भी पढ़ेदूसरों को नसीहत देते हैं, ख़ुद कितना पालन करते हैं (Advice You Give Others But Don’t Take Yourself)

Usha Gupta

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