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कैसे करें बच्चों की सेफ्टी चेक? (How To Keep Your Children Safe?)

ज़रा इन आंकड़ों पर नज़र डालें

* नेशनल क्राइम ब्यूरो के अनुसार- साल 2015 में देशभर में बच्चों के ख़िलाफ़ क्राइम के 94,172 मामले दर्ज़ हुए.

* इनमें सबसे ज़्यादा मामले 11,420 उत्तर प्रदेश में दर्ज़ किए गए.

* वर्ष 2014 से तुलना करें, तो बच्चों के ख़िलाफ़ होनेवाले आपराधिक मामले में 12.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी पाई गई.

देशभर में मासूम बच्चों के साथ यौन शोषण, बलात्कार, हत्या की ख़बरें रुकने का नाम ही नहीं ले रहीं, लेकिन स़िर्फ स्कूल, समाज या प्रशासन को दोष देने से कुछ नहीं होगा. हर माता-पिता को भी जागरूक होना होगा. ख़ुद भी सतर्क होना होगा और बच्चों को भी सतर्क करना होगा. उन्हें सेफ्टी से जुड़ी छोटी-छोटी बातें बतानी होंगी, तभी आपका बच्चा सुरक्षित रह सकेगा.

छोटे बच्चों के लिए

स्कूल में कैसे करें सेफ्टी चेक?

* बच्चा प्ले स्कूल या नर्सरी में जाता है, तो ये सुनिश्‍चित करें कि उसे अपना पूरा नाम, पैरेंट्स का नाम, घर का पता और कम से कम दो फोन नंबर याद हों.

* बच्चा अगर स्कूल बस या वैन से स्कूल जाता है, तो बस की सुरक्षा की भी तसल्ली कर लें. ये ज़रूर चेक करें कि बस के ड्राइवर और अटेंडेंट का पुलिस वेरिफिकेशन हुआ है या नहीं. अगर बच्चे का स्टॉप सबसे आख़िरी स्टॉप है, तो चेक करें कि उसके साथ कोई अटेंडेंट रहता है या नहीं.

* बस के ड्राइवर और कंडक्टर का नंबर रखें, ताकि उनसे संपर्क में रहें.

* कोशिश करें कि घर के नज़दीक ही किसी स्कूल में एडमिशन कराएं. एडमिशन के समय ही ये चेक कर लें कि स्कूल के सभी क्लास, हॉल, गार्डन एरिया में सीसीटीवी लगा है या नहीं और बच्चों की सेफ्टी के लिए स्कूल की क्या तैयारी है.

* स्कूल के बाथरूम-टॉयलेट कितने सुरक्षित हैं, इस पर भी नज़र रखें. वहां कोई अटेंडेंट बैठता है या नहीं, ये चेक करें और बच्चों से भी इस बारे में समय-समय पर पूछते रहें.

* बच्चों को गुड टच-बैड टच के बारे में ज़रूर बताएं. उन्हें सिखाएं कि किसी के बुरे बर्ताव करने या बैड टच करने पर कैसे शोर मचाना है.

* बच्चे को समझाएं कि स्कूल छूटने के बाद वो अपने फ्रेंड्स के साथ ही रहें. इसके अलावा स्कूल छूटने के बाद टॉयलेट अकेले न जाएं.

* बच्चे की एक्टिविटीज़ पर नज़र रखें. उसके व्यवहार या आदत में कोई बदलाव नज़र आए, तो इसे अनदेखा न करें. बच्चे को विश्‍वास में लेकर उससे सच जानने की कोशिश करें.

* बच्चे में बचपन से ही ये आदत डालें कि वो आपसे कोई बात छिपाए नहीं. इसके लिए एक रूटीन बनाएं कि रोज़ उसके साथ थोड़ा टाइम बिताएं और इस दौरान उसकी दिनभर की सारी एक्टिविटीज़ के बारे में जानने की कोशिश करें.

* सबसे ज़रूरी बात- बच्चे के सामने पैनिक न हों. उसे समझाएं कि स्कूल उसके लिए सुरक्षित जगह है और ये सारी एक्टिविटीज़ एहतियात के तौर पर करनी ज़रूरी है.

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दोस्तों-परिचितों पर भी रखें नज़र

कोई पड़ोसी, पारिवारिक मित्र या फिर दूर के रिश्तेदार- बच्चे इनके लिए ईज़ी टारगेट होते हैं और मौक़ा पाते ही उन्हें छूना, पोर्न क्लिपिंग दिखाना, सेक्स के लिए उकसाना जैसी हरकतें करने में इन्हें मज़ा आने लगता है. ज़्यादातर बच्चे डर के कारण इसका विरोध भी नहीं करते और सब कुछ चुपचाप चलता रहता है व माता-पिता को ख़बर भी नहीं होती. आपके बच्चे के साथ ऐसा कुछ न हो, वो सेक्सुअल एब्यूज़ का शिकार न हो, इसके लिए ज़रूरी है कुछ एहतियात.

* घर पर आनेवाले लोगों पर नज़र रखें. ऐसे लोगों को पहचानें, जो बच्चे के लिए ख़तरा बन सकते हैं और उन्हें अपने बच्चों से दूर रखें.

* बच्चों को सही उम्र में सेक्स एजुकेशन दें.

* उन्हें सेफ और अनसेफ टच व सही-ग़लत के बारे में बताएं.

* हर व़क्त उनके लिए उपलब्ध रहें. उन्हें बताएं कि वो किसी भी टॉपिक पर कभी भी आपसे बात कर सकते हैं.

* उन्हें ना कहना सिखाएं. उन्हें बताएं कि किसी से डरकर उनकी सही-ग़लत बात मानना ज़रूरी नहीं.

बड़े होते बच्चों के लिए

अगर आपका बच्चा 10-12 साल का है, तो अभी वो बहुत छोटा है और उसे एक्स्ट्रा केयर की ज़रूरत है. ऐसे बच्चों की सेफ्टी के प्रति भी सावधानी ज़रूरी है.

इंटरनेट सेफ्टी है ज़रूरी

सोशल नेटवर्किंग अब बच्चों की दुनिया का ज़रूरी हिस्सा बन गया है. लेकिन आए दिन साइबर क्राइम की घटनाओं और इंटरनेट पर उपलब्ध सही-ग़लत कंटेन्ट से पैरेंट्स परेशान हैं कि अपने बच्चे को इन सबसे सुरक्षित कैसे रखें.

* सबसे पहले तो आप ख़ुद को एजुकेट करें. अगर आप इंटरनेट के बारे में सब कुछ जानते हैं, तो अपने बच्चे को भी समझा सकेंगे और उसके प्लस और माइनस पॉइंट्स के बारे में उसे बता पाएंगे.

* इंटरनेट को बिल्कुल बैन न कर दें,  बल्कि इंटरनेट के इस्तेमाल के लिए अपने बच्चे के लिए एक समय सीमा निर्धारित करें. एक गाइडलाइन बनाएं और बच्चे को समझाएं कि उनकी सुरक्षा के लिए ये गाइडलाइन ज़रूरी है.

* बच्चों को देर रात तक मोबाइल या लैपटॉप पर रहने की इजाज़त न दें.

* आजकल कई ऐसे सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं, जो विभिन्न साइट्स और उनके कंटेन्ट को फिल्टर करते हैं. इन्हें अपने मोबाइल या कंप्यूटर में इंस्टॉल करवाएं, ताकि आपका बच्चा कोई ग़ैरज़रूरी साइट न ओपन कर सके.

* उनकी ऑनलाइन एक्टीविटीज़ और फ्रेंड्स पर नज़र रखें.

* ब्राउज़र प्रोग्राम में जाकर हिस्ट्री बटन का इस्तेमाल करें. इससे आप जान सकेंगे कि आपके बच्चे ने किस साइट पर विज़िट किया है.

* कई सोशल नेटवर्किंग साइट्स, जैसे- फेसबुक, ट्विटर में साइनअप करने के लिए एक आयु सीमा निर्धारित की गई है. ये आपके बच्चे की सुरक्षा के लिए ज़रूरी है. इसे अनदेखा न करें.

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सेफ्टी @ होम

* बच्चे को घर पर अकेला न छोड़ें. अगर बच्चा समझदार है, तो उसे सावधान व सजग रहने को कहें.

* बच्चे को समझाएं कि अगर वो घर पर अकेला है और किसी का फोन आता है, तो वो कॉल करनेवाले को ये भनक बिल्कुल भी न लगने दे कि वो घर पर अकेला है.

* उसे बताएं कि किसी अजनबी के लिए दरवाज़ा न खोले, न ही अपना पता और पर्सनल जानकारियां दे.

* आन्सरिंग मशीन या कॉलर आईडी यूनिट लगवाएं, ताकि फोन करनेवाले का नंबर देखा जा सके. बच्चे को बताएं कि वो ऐसे ही लोगों के फोन उठाए जिसे वो जानता हो.

* ऐसे लोगों के नाम व कॉन्टैक्ट नंबर की लिस्ट फोन के पास ही रखें, जो इमर्जेंसी में फ़ौरन काम आ सकते हैं.

 

टीनएजर बच्चों के लिए

अगर बच्चा कहीं बाहर जा रहा है

* सबसे पहले तो उसे लेट नाइट कहीं बाहर रहने की इजाज़त न दें. वो कहीं जा ही रहा है, तो उसे समय पर घर लौट आने को कहें. उसे समझाएं कि वो घर लौटने का सुरक्षित रास्ता चुने.

* उसे समझाएं कि रात में अकेले बाहर जाना रिस्की है. अगर बहुत ज़रूरी हो, तो उसे ग्रुप में ही बाहर भेजें.

* उसे हिदायत दें कि वो सुनसान रास्ते पर जाने से बचे. वहां दुर्घटना होने की संभावना ज़्यादा होती है.

* आपको पता होना चाहिए कि वो कहां जा रहा है और कब तक लौटेगा. वो जहां जा रहा हो, वहां का फोन नंबर भी नोट कर लें, ताकि ज़रूरत पड़ने पर कॉन्टैक्ट किया जा सके.

* उसके मोबाइल पर घर का लैंडलाइन नंबर और पैरेंट्स के मोबाइल नंबर्स को स्पीड डायल पर रखें, ताकि इमर्जेंसी में वो तुरंत संपर्क कर सके.

* कुछ एक्स्ट्रा पैसे उसके पास ज़रूर रखें, ताकि कहीं फंसने की स्थिति में टैक्सी से ट्रैवल कर सके. ये पैसे इमर्जेंसी में भी काम आ सकते हैं. लेकिन पैसे इतने ज़्यादा भी न दें कि वही दुर्घटना का कारण बन जाए.

* अनजान लोगों के साथ या ऐसे लोगों के साथ, जिन पर आपको भरोसा न हो, उनके साथ उसे न भेजें.

अगर फ्रेंड्स के साथ पार्टी में जा रहे हैं

* आजकल टीनएज पार्टीज़ में ड्रग या अल्कोहल का क्रेज़ बढ़ा है, इसलिए पहले कंफर्म कर लें. ऐसी पार्टी में उसे भेजने से बचें, जहां ड्रिंक भी सर्व किया जानेवाला हो.

* हमेशा ग्रुप में या किसी फ्रेंड के साथ ही उसे पार्टी में भेजें. उसकी सेफ्टी के लिए ये ज़रूरी है.

* उसे समझाएं कि पार्टी में वे अनजान लोगों से दूर रहे. साथ ही अनजान लोगों द्वारा सर्व किया गया कोई भी ड्रिंक लेने से बचे.

* आपका बच्चा स्कूल या कॉलेज की ओर से कैम्प या पिकनिक वगैरह पर जा रहा है, तो भी सतर्क रहें. उसे अच्छी तरह समझा दें कि वो कहीं झाड़ियों या सुनसान जगह पर जाने से बचे.

सबसे अहम् बात– बच्चे की सुरक्षा को लेकर सजग रहना ज़रूरी है. लेकिन ध्यान रखें कि इस चक्कर में आप बच्चे को इतना डरा न दें कि वो कहीं बाहर आना-जाना ही छोड़ दे. उसे समझाएं कि ये सारे एहतियात सुरक्षात्मक क़दम हैं. किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है, बस एलर्ट रहना होगा.

– प्रतिभा तिवारी

अधिक पैरेंटिंग टिप्स के लिए यहां क्लिक करेंः Parenting Guide

 

 

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देशभर में मासूम बच्चों के साथ यौन शोषण, बलात्कार, हत्या की ख़बरें रुकने का नाम ही नहीं ले रहीं, लेकिन स़िर्फ स्कूल, समाज या प्रशासन को दोष देने से कुछ नहीं होगा. हर माता-पिता को भी जागरूक होना होगा. ख़ुद भी सतर्क होना होगा और बच्चों को भी सतर्क करना होगा. उन्हें सेफ्टी से जुड़ी छोटी-छोटी बातें बतानी होंगी, तभी आपका बच्चा सुरक्षित रह सकेगा
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Usha Gupta

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