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काव्य- गर तुम होते… (Kavay- Gar Tum Hote…)
लिपटकर रो लेती गर तुम होते
ग़म कुछ कम होते गर तुम होते
बांहों में सिमट जाते खो जाते गर तुम होते
तुम्हारे हो जाते गर तुम होते
कल भी पुकारा था दोराहे पर
आंख न नम होती गर तुम होते
हां उसी मोड़ पर जाकर देखा है अभी
साथ-साथ चलती गर तुम होते
मुकम्मल हो जाती मुहब्बत मेरी
हां तुम गर तुम बस तुम होते...
- विद्यावती
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