कौन कहता है अकेले ज़िंदगी नहीं गुज़रती
मैंने चांद को तन्हा देखा है सितारों के बीच में
कौन कहता है ग़म में मुस्कुराया नहीं जाता
मैंने फूलों को हंसते देखा है कांटों के बीच में
कौन कहता है पत्थरों को एहसास नहीं होता
मैंने पर्वतों को रोते देखा है झरने के रूप मेंं
कौन कहता है दलदल में जाकर सब गंदे हो जाते हैं
मैंने कमल को खिलते देखा है कीचड़ के बीच में
कौन कहता है दूसरे की आग जला देती है
मैंने सूरज को जलते देखा है ख़ुद की आग में
कौन कहता है ज़िम्मेदारी निभाना आसान नहीं होता
मैंने प्यार से सबका बोझ उठाते देखा है धरती माता के रूप में
– रेश्मा कुरेशी
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