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कविता- ज़रूरी थी… (Kavita- Zaruri Thi…)

Kavita- Zaruri Thi बाकी थी तमन्नाएं हसरत अधूरी थी चाहतें तड़पती थीं और दुआ अधूरी थी फिर तेरी आंख से जीने का उजाला मांगा उम्र तो मिली थी मुझे रोशनी ज़रूरी थी व़क्त तो कट जाता ज़ुल्फ़ों की छांव में पर ज़िंदगी गुज़रने को धूप भी ज़रूरी थी धूल तेरे पांव की चंदन सी महकी थी ख़ुशबू बदन की तेरी सांस में ज़रूरी थी ऩज़रें बदलती रहीं हालात देख कर एक निगाह ऐसे में तेरी ज़रूरी थी... Murli Manohar Shrivastav मुरली मनोहर श्रीवास्तव   मेरी सहेली वेबसाइट पर मुरली मनोहर श्रीवास्तव की भेजी गई कविता को हमने अपने वेबसाइट में शामिल किया है. आप भी अपनी कविता, शायरी, गीत, ग़ज़ल, लेख, कहानियों को भेजकर अपनी लेखनी को नई पहचान दे सकते हैं…

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