Top Stories

Landmark Judgement: ‘इच्छा मृत्यु’ को सुप्रीम कोर्ट ने दी हरी झंडी (Landmark Judgement: Passive Euthanasia ‘Permissible’ in India)

‘हर किसी को सम्मान से मरने का हक़ है’ सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक जजमेंट में यह फैसला दिया. ‘लिविंग विल’ (वसीयत) के ज़रिए किसी व्यक्ति को यह अधिकार दिया गया है कि वो अपनी वसीयत में लिख सके कि अगर वह किसी लाइलाज बीमारी का शिकार हो जाता है, तो उसे जबरन लाइफ सपोर्ट सिस्टम के ज़रिए ज़िंदा न रखा जाए. उसे सुकून और शांति से मरने का पूरा हक़ दिया जाए.

हमारे देश में अब तक पैसिव इथनेशिया या इच्छा मृत्यु की इज़ाज़त नहीं थी, पर 9 मार्च, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने लैंडमार्क जजमेंट में इसे क़ानूनी कर दिया, हालांकि उसके लिए कई गाइडलाइन्स भी जारी की गई हैं, ताकि कोई उसका ग़लत फ़ायदा न उठा सके.

कैसी बनेगी लिविंग विल?
कोई भी व्यक्ति एडवांस में यह विल बनवाकर रख सकता है, ताकि जब वह अपनी रज़ामंदी देने की स्थिति में न हो, तो तब इस लिविंग विल का इस्तेमाल किया जा सके. लिविंग विल बनने की प्रक्रिया कोर्ट की निगरानी में होगी. कोई व्यक्ति डिस्ट्रिक्ट जज की तरफ़ से नियुक्त जुडिशनल मजिस्ट्रेट के सामने लिविंग विल कर सकता है, जिसे दो गवाहों की मौजूदगी में बनाया जाएगा. लिविंग विल का पूरा रिकॉर्ड डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में रखा जाएगा.

लिविंग विल न होने की स्थिति में
अगर किसी व्यक्ति ने लिविंग विल नहीं बनाई है और वह लाइलाज बीमारी से जूझ रहा है, तो परिवार वाले या रिश्तेदार उसके लिए हाई कोर्ट जा सकते हैं. हाई कोर्ट में मेडिकल बोर्ड इस बात का ़फैसला लेगा कि व्यक्ति का लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाना है या नहीं.

मेडिकल ट्रीटमेंट को कह सकते हैं ‘ना’
यहां इस बात पर सुप्रीम कोर्ट ने सहमति जताई कि लाइलाज बीमारी से जूझ रहे किसी व्यक्ति का जबरन इलाज न किया जाए. ऐसे में वह मेडिकल ट्रीटमेंट को मना कर सकता है. उसके रिश्तेदार इसमें उसकी मदद कर सकते हैं. इससे पहले ऐसा करना ग़ैरक़ानूनी था.

क्या है पैसिव इथनेशिया?
पैसिव इथनेसिया का मतलब है लाइलाज बीमारी का इलाज करा रहे किसी व्यक्ति के लाइफ सपोर्ट सिस्टम को हटाना है. ऐसा करने से व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है. आपको बता दें कि एक्टिव इथेनेशिया यानी जहरीला इंजेक्शन आदि लगाकर व्यक्ति को इच्छा मृत्यु देना है, पर अभी भी हमारे देश में यह ग़ैरक़ानूनी है. जिन देशों में एक्टिव इथनेशिया क़ानूनी है, वहां यदि कोई व्यक्ति बीमारी के असहनीय दर्द को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा, डॉक्टर की मदद से उसे इच्छा मृत्यु दी जाती है.

बेंच के जजेज़ ने यह भी कहा कि जब तक इस पर कोई क़ानून नहीं बन जाता, यह ़फैसला और गाइडलाइन्स ही क़ानून की तरह काम करेंगी. आपको बता दें कि साल 2005 में कॉमन कॉज़ नामक एनजीओ ने जनहित याचिका दाखिल की थी, जिस पर यह ऐतिहासिक ़फैसला आया है. हालांकि इससे पहले अरुणा शामबाग केस में सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में पैसिव इथनेशिया की उन्हें इजाज़त दी थी, पर उस गाइडलाइन में भी कई कमियां थीं, जिसे बाद में सुधारा गया.

 यह भी पढ़ें: ख़ुद बनाएं अपनी वसीयत, जानें ज़रूरी बातें
Aneeta Singh

Share
Published by
Aneeta Singh

Recent Posts

 उमराहसाठी मक्का येथे गेला अली गोनी, रमजानमधील उमराहचे महत्व केले शेअर (Actor Aly Goni Performs Umrah In Makkah, Shares Pictures)

अभिनेता अली गोनी रमजान महिन्यात मक्का येथे उमराह करत आहे. अलीने आपल्या सोशल मीडियावर काबाची…

March 16, 2024

कहानी- कंबल (Short Story- Kambal)

दुल्ला काकी ने घर संभाल लिया, पर मन संभालने के लिए तुम्हें पुराने कंबल की…

March 16, 2024

पुलकित सम्राट आणि क्रिती खरबंदा अखेर विवाहबंधनात (Pulkit Samrat-Kriti Kharbanda Are Married, Couple Shares First Wedding Pics)

अनेक वर्षांपासून एकमेकांना डेट करत असलेले पुलकित सम्राट आणि क्रिती खरबंदा अखेर लग्नबंधनात अडकले आहेत.…

March 16, 2024
© Merisaheli