पहचानें रिश्तों की लक्ष्मण रेखा (Earn to respect relationship and commitment)

इंसानी ज़िंदगी में रिश्तों (Earn to respect relationship and commitment) की अहमियत से हम सभी वाक़िफ़ हैं, लेकिन शायद हम इस बात को कम ही समझते हैं कि हर रिश्ते की एक मर्यादा, एक लक्ष्मण रेखा होती है. इस लक्ष्मण रेखा को पार करते ही रिश्तों में दरारें आने का ख़तरा बनने लगता है, लेकिन दूसरी तरफ़ यदि इस रेखा को हम दीवार बनाने की भूल करते हैं, तो भी रिश्तों का बचना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि कैसे पहचानें अपने रिश्तों की लक्ष्मण रेखा को?

सम्मान: किसी भी रिश्ते के गहरे होने की पहली शर्त होती है सम्मान. स़िर्फ पति-पत्नी ही नहीं, तमाम रिश्तों से लेकर यारी-दोस्ती तक में एक-दूसरे के प्रति सम्मान बेहद अहम् है. हंसी-मज़ाक के दौरान भी यदि हम हद से आगे बढ़ जाते हैं, तो सामनेवाले को ठेस पहुंचती है. ऐसे में यह बात समझना ज़रूरी है कि हर चीज़ की हद होती है. अपने दायरों को लांघते ही जैसे ही हम हदों को पार कर जाते हैं, तो वहां सम्मान ख़त्म हो जाता है और रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

अपनी सीमा ख़ुद निर्धारित करें: हम स्वयं इस बात को बेहतर समझते और जानते हैं कि किस रिश्ते की सीमा क्या है और कहां आकर हमें रुकना है. जिस वक़्त हम ये जानकर भी अपनी सीमा रेखा लांघते हैं, तब समस्या शुरू हो जाती है. अगर पति-पत्नी भी एक-दूसरे को हर बात पर टोकें और मज़ाक उड़ाएं, तो एक स्टेज पर आकर उन्हें एक-दूसरे से खीझ होने लगेगी और वो शिकायत करने लगेंगे कि अब उनके बीच वो सम्मान नहीं रहा.

मज़ाक करने और मज़ाक उड़ाने के बीच के अंतर को समझें: बहुत-से लोगों की आदत होती है कि वो बात-बात पर ताने मारते हैं और फिर कहते हैं कि हम मज़ाक कर रहे थे, पर जब यही मज़ाक कोई दूसरा उनके साथ करे, तो उन्हें बुरा लग जाता है. मज़ाक करने का अर्थ होता है कि दूसरों के चेहरे पर हंसी-मुस्कुराहट आए, न कि उन्हें आहत किया जाए. अक्सर यार-दोस्तों की महफ़िल में लोग एक-दूसरे से शरारत करते हैं, पर इस शरारत में यह ध्यान ज़रूर रखें कि कहीं किसी का दिल न दुखा दें आप.

मर्यादा बनाए रखने का यह मतलब नहीं कि कम्यूनिकेट ही न करें: अगर हमें बार-बार अपनी टोकने की आदत के बारे में कोई एहसास करवाए, तो हम अक्सर उस आदत को बदलने की बजाय यह तर्क देते हैं कि अगर तुम्हें मेरी बातें पसंद नहीं, तो बेहतर है हम बात ही न करें. यह अप्रोच बेहद ग़लत व नकारात्मक है. इससे रिश्तों में दीवारें पैदा होती हैं. अच्छा होगा कि आप बातचीत बंद न करें, बल्कि आपसी बातचीत को हेल्दी और पॉज़ीटिव बनाएं.

शब्दों का चयन सही करें: अपनों से बात करते वक़्त हम अक्सर अपने शब्दों के चयन पर ध्यान नहीं देते. हम यह सोचते हैं कि अपनों के साथ क्या औपचारिकता करना और इसी सोच के चलते हम अक्सर लक्ष्मण रेखा भूल जाते हैं. चाहे अपने हों या अन्य लोग, तमीज़ से, प्यार से बात करेंगे, तो सभी को अच्छा ही लगेगा. अपनों के साथ तो और भी सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि हमारे द्वारा कहा गया कोई भी कटु शब्द उन्हें ज़्यादा हर्ट कर सकता है, जिससे मन-मुटाव हो सकता है.

अपने निर्णय सब पर न थोपें: अगर आपने कोई निर्णय लिया है, तो सबकी राय और सहमति भी ले लें. अपना निर्णय सुना देना या अपनी ही मर्ज़ी सब पर थोपना भी रिश्तों की मर्यादा का उल्लंघन करना ही है. जिस बात से सब लोग सहमत न हों, उस पर दोबारा विचार करें या फिर सबको अपनी निर्णय की वजह बताकर कोशिश करें कि उन्हें आपके निर्णय से कोई आपत्ति न हो.

हर बात, हर चीज़ पर हक़ न जमाएं: बच्चे हैं, तो माता-पिता की हर चीज़ पर हक़ समझते हैं, भाई-बहन भी यही सोचते हैं कि हम एक-दूसरे की सारी चीज़ पर हक़ जमा सकते हैं और पति-पत्नी तो यह मानकर ही चलते हैं कि हमारी कोई चीज़ पर्सनल नहीं हो सकती. ऐसे में पर्सनल स्पेस खो जाती है और एक समय ऐसा आता ही है, जब हमें लगता है कि सामनेवाला अपनी सीमा रेखा लांघ रहा है. हर रिश्ते में स्पेस की ज़रूरत होती ही है और जब वो नहीं मिलती, तो घुटन होने लगती है और रिश्तों में दरार आने का डर बन जाता है.

किसी के निजी जीवन में बेवजह दख़लअंदाज़ी न करें: हम जब एक साथ रहते हैं, तो किसी का भी लेटर हो, ईमेल हो या फोन पर मैसेज हो, तो उसकी ग़ैरहाज़िरी में भी फौरन पढ़ने लगते हैं. यह व्यवहार ग़लत है. शिष्टता के चलते हमें ऐसा नहीं करना चाहिए, बल्कि सामनेवाले के आने का इंतज़ार करना चाहिए. उसके बाद वो ख़ुद-ब-ख़ुद बता ही देगा कि किसका पत्र या मेल है. अगर न भी बताए, तो इसका यह अर्थ नहीं कि आप उसे शक़ की निगाह से देखें. सबका निजी जीवन होता है, कुछ बातें ऐसी होती ही हैं, जो वो शायद इस वक़्त किसी से शेयर नहीं करना चाहता और आगे चलकर सही वक़्त आने पर करे. हर बात आपको जाननी ही है और सामनेवाला आपको बताए ही, यह कोई ज़रूरी नहीं.

अपने मन मुताबिक़ किसी को बदलने या व्यवहार करने को न कहें: आप अगर घर के मुखिया भी हैं, तो भी अपनी इच्छानुसार सबको व्यवहार करने की ज़िद न करें. हां, अगर कोई ग़लती कर रहा है, तो आपकी ज़िम्मेदारी है कि आप उसे सही रास्ता दिखाएं, लेकिन तानाशाही रवैया अपनाकर सब पर एक ही नियम लागू करने का अर्थ है कि आप अपनी उम्र, अपने ओहदे और अपने रिश्ते का नाजायज़ फ़ायदा उठा रहे हैं.

हमेशा आप ही सही होते हैं, यह सोच न बना लें: आप जो सोचते हैं, आप जो चाहते हैं और आप जो उम्मीदें रखते हैं, वो ही सही हैं और यदि कोई आपसे अलग सोच रखे, तो वो इंसान ही ग़लत है, ऐसी बात मन में न पालें. हर शख़्स का अपना अलग व्यक्तित्व होता है, उसे स्वीकार करें, उसका सम्मान करें. जिस तरह आप औरों से उम्मीद रखते हैं, दूसरे भी आपसे ठीक वैसे ही व्यवहार की आशा रखते हैं. आप जिस तरह हर्ट होते हैं, दूसरे भी हो सकते हैं. हर किसी की अपनी सोच व राय हो सकती है, जिसका हमें सम्मान करना ही चाहिए, वरना रिश्ते टूटते देर नहीं लगती.

स्वार्थी न बनें: रिश्तों में लक्ष्मण रेखा तभी पार होती है, जब हम स्वार्थी बन जाते हैं. स़िर्फ हम ही हम हैं, दूसरों को अपना जीवन अपनी तरह से जीने का कोई हक़ नहीं, यह अप्रोच नकारात्मक होती है. सबकी मर्ज़ी का ख़्याल करें और सकारात्मक सोच बनाएं, तभी आप अपने रिश्तों को शिद्दत से निभा सकते हैं.

अपनी ग़लती मानें: जब भी आप ग़लत हों, तो फ़ौरन उसे मान लें. ईगो पालकर रिश्तों को ताक पर न रखें. अपनी ग़लती के लिए किसी और को ज़िम्मेदार न ठहराएं. अक्सर हम अपनी ग़लतियां दूसरों पर थोप देते हैं और उन्हें ही इसका कारण बताकर ख़ुद को बचाने की सोचते हैं. जब सामनेवाला अपनी सफ़ाई देता है, तो हम नाराज़ हो जाते हैं कि तुम हमारा साथ नहीं दे रहे या ग़लती क्या स़िर्फ मेरी थी, जैसी बातें करने लगते हैं. यह ग़लत उम्मीद लगाना अपनी लक्ष्मण रेखा न पहचानने जैसा ही है.

रिश्तों में सम्मान का अर्थ क्या है?
हम रिश्तों को सम्मान दे रहे हैं या नहीं, इसे इन कसौटी पर परखें-

  •  अगर हम किसी बात पर असहमत हैं, पर हम अपनी ही बात और राय को महत्व देकर सामनेवाले को सुनना ही न चाहें और उससे भी यह उम्मीद रखें कि वो हमारी ही सुने, तो यह उसके सम्मान को आहत करेगा.
  •  अपने रिश्तेदारों या पार्टनर को सामाजिक समारोहों में या अन्य लोगों के सामने डांटते हैं या उनका मज़ाक उड़ाते हैं.
  •  हर बात पर टोकना या बात-बात पर नाराज़ हो जाना.
  •  सामनेवाले की भावनाओं के प्रति असंवेदनशील होकर उन्हें महत्व न देना.
  •  हर वक़्त स़िर्फ अपनी ज़रूरतों के बारे में ही सोचना.
  •  किसी की भी राय को महत्व न देकर मनमानी करना.
  •  अपनी सुविधानुसार नियम बदलना और दूसरों से भी अपनी सुविधानुसार ही व्यवहार करने की उम्मीद करना.
  •  सबसे मज़ाक करना, लेकिन जब कोई आपसे मज़ाक करे, तो बुरा मान जाना.
  •  हर छोटी-छोटी बात पर सफ़ाई मांगना.
  •  सामनेवाले की स्थिति को समझे बग़ैर या समझने की कोशिश किए बिना ही बात-बात पर नाराज़ हो जाना.
  •  सबसे यह उम्मीद रखना कि वो स़िर्फ आपका ही ख़्याल रखे और आपकी हर बात पर हां में हां मिलाए.
  •  विचार अलग होने पर दूसरों के विचारों को ग़लत व महत्वहीन समझना.

– कमलेश शर्मा

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