पहले प्यार (FirstLove) का एहसास होता है बेहद ख़ास, अपने फर्स्ट अफेयर (Affair) की अनुभूति को जगाने के लिए पढ़ें रोमांस से भरपूर पहला अफेयर
ईश्वर ने जब इस सृष्टि की रचना की, तो उन्होंने सृष्टि की प्रत्येक वस्तु को नियमों में बांध दिया. सूरज के उगने और डूबने का स्थान और समय पहले से निर्धारित कर दिया. जहां पंछियों को उड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, वहीं इंसान आकाश में मुक्त होकर विचरण करने की कल्पना तक नहीं कर सकता. जहां दिन का आगमन रोशनी के साथ होता है, वहीं रात का स्वागत अंधकार करता है. लेकिन स़िर्फ एक ही चीज़ है इस सृष्टि में, जिसको ईश्वर ने सभी नियमों से मुक्त रखा है. वह चीज़ है- प्यार!
प्यार किसी को भी, कहीं भी, किसी से भी हो सकता है. यह इस सृष्टि की सबसे रहस्यमयी रचना है. प्रेम में उम्र और जन्म का बंधन कोई मायने नहीं रखता. यही वजह है कि मुझे जिस व्यक्ति से प्यार हुआ, वो मुझसे उम्र में 22 साल बड़े थे. जब इस ख़ूबसूरत एहसास को मैंने पहली बार महसूस किया, उस व़क्त मेरी उम्र मात्र 16 साल थी और वो 38 साल के थे. वो शादीशुदा थे.
मुझे आज भी वो दिन अच्छी तरह याद है, जब मेरे मोबाइल पर उनका संदेश आया था. मेरे मोबाइल पर किसी अज्ञात नंबर से कुछ रोमांटिक पंक्तियां आई थीं. मैंने सोचा कि कोई लड़का मेरे साथ बदमाशी कर रहा है. मैंने ग़ुस्से में आकर फोन लगाया और जमकर उनको बातें सुनाईं, पर उन्होंने मेरी गालियों का ज़रा भी बुरा नहीं माना, बल्कि नम्रतापूर्वक मुझसे आग्रह किया कि मैं उनकी दोस्ती स्वीकार कर लूं.
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पता नहीं, उनकी आवाज़ में क्या जादू था कि मुझ जैसी लड़की, जो हमेशा लड़कों से दूर रहती थी, ने एक अंजान शख़्स के आग्रह को स्वीकार कर लिया. इस घटना के बाद लगभग 20 दिनों तक हम एक-दूसरे से फोन पर बातें करते रहे. इन 20 दिनों में मैं यह तो बहुत अच्छी तरह समझ चुकी थी कि ये वही हंसान हैं, जिसकी मुझे तलाश थी.
इन 20 दिनों के बाद हम कई बार एक-दूसरे से समंदर के किनारे मिले. समंदर के किनारे बैठकर हम दोनों ही आई पॉड पर बजते संगीत का आनंद लेते थे और बिना एक-दूसरे से एक शब्द भी बोले अंधेरा होने तक समंदर को निहारते रहते थे. उस पल मुझे ऐसा महसूस होता था कि काश! ऐसा होता कि मैं अपनी सारी ज़िंदगी इसी तरह उनके साथ समंदर के किनारे बैठकर गुज़ार देती.
ऐसी ही एक ख़ूबसूरत शाम थी, जब उन्होंने मुझे अपनी बांहों में लेकर चूमा था. वो मेरी ज़िंदगी के पहले और आख़िरी पुरुष थे, जिन्होंने मेरे शरीर के साथ-साथ मेरी आत्मा को भी छुआ था. हमें एक-दूसरे से मिले स़िर्फ एक साल ही हुआ था कि उनका तबादला दूसरे शहर में हो गया. उसके बाद हम कभी नहीं मिले.
मेरी तो दुनिया ही वीरान हो गई. इस बीच उनका पत्र मुझे मिला, जिसमें उन्होंने अपने प्रेम का इज़हार किया और इस असफल प्रेम कहानी पर दुख व्यक्त किया. वो मजबूर थे. एक तरफ़ उनकी पत्नी और बेटे की ज़िम्मेदारी थी, तो दूसरी तरफ़ हमारे प्रेम को समाज की स्वीकृति कभी प्राप्त नहीं होती.
आज इस बात को 20 साल हो गए, पर आज भी मैं उनको भूल नहीं पाई. मेरे जीवन का कोई ऐसा दिन नहीं गुज़रता जब मैं उनको याद नहीं करती. ईश्वर से यही दुआ करती हूं कि वो जहां भी रहें, हमेशा ख़ुश रहें.
हालांकि मेरी क़िस्मत में उनसे जुदाई ही लिखी है, जिसे मैंने अब स्वीकार कर लिया है, क्योंकि किसी ने सच ही कहा है- कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता…
– सोनी दुबे
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