जब मैं कॉलेज के प्रथम वर्ष की छात्रा थी, तब मेरी पहचान हॉस्टल की छात्रा अनिता से हुई. हम अच्छी सहेलियां बन गईं. हम दोनों अक्सर अपने-अपने भाइयों के बारे में बातेें करते. रक्षाबंधन के त्योहार से पहले हम सभी अपने-अपने भाइयों को राखी भेज रहे थे. उसने मुझसे पूछा कि क्या वो मेरे भाई को राखी भेज सकती है? मेरे हां कहने पर उसने मेरे भैया को राखी भेज दी. उसके पूछने पर कि वो भी अपने भैया को मेरी तरफ़ से राखी भेज दे, मैंने सहमति दे दी.
हर रविवार को हॉस्टल की लड़कियों से उनके रिश्तेदार मिलने आते थे. एक दिन अनिता के भैया कैलाश आए. वो मुझसे मिलना चाहते थे, पर अपने शर्मीले स्वभाव और घर के कठोर अनुशासन के कारण मैं नहीं मिली. फिर वे अमेरिका चले गए. हम दोनों सहेलियां स्नातक तक एक-दूसरे के बेहद क़रीब रहीं. फिर हम जुदा हो गए, पर पत्र-व्यवहार चलता रहा. एक दिन मेरे नाम कैलाश का ख़त आया.
मेरी आशू,
आशा करता हूं कि मेरे इस संबोधन से तुम नाराज़ नहीं होगी. आज से 3 साल पहले जिसकी एक झलक ने मेरे दिल के तारों को छेड़ दिया था, वो तुम ही थीं. अनिता के पास तुम्हारी तस्वीरें देखकर तुम्हारी ख़ूबसूरती का कायल हो गया. तुम्हारी और अनिता की तस्वीरें मेरे बेड के पास टेबल पर रखी हैं. जब घर में रहता हूं, तुम्हें देखता हूं और जब बाहर जाता हूं, तुम्हारा एहसास लेकर निकलता हूं. मैंने तुम्हें कई ख़त लिखे, पर भेजने की हिम्मत न जुटा पाया. आज पहली बार ख़त भेज रहा हूं. दूसरे देश में जहां अपना कहने को कुछ नहीं, एक तुम्हारे ख़त का इंतज़ार रहेगा.
मैंने अपनी मां को कैलाश के ख़त के बारे में बताया, वे बहुत ख़ुश हुईं. बेटी के लिए एक सुयोग्य जीवनसाथी जो मिल गया था. हमारा पत्र-व्यवहार चलता रहा. हमारी चाहतें दिनोंदिन जवां होती गयीं. उन्होंने मुझसे अनिता को कुछ भी न बताने का वादा लिया. फिर एक दिन एक ख़त मिला-
बस, कुछ पलों का इंतज़ार. तुम्हारे जन्मदिन पर तुम्हें एक सरप्राइज़ तोहफ़ा मिलेगा, जिसे देख तुम्हारे होश उड़ जाएंगे. मेरा इंतज़ार करना…
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मन झूम उठा. कितना सुखद भविष्य द्वार पर खड़ा था मुझे आगोश में लेने के लिए! एक-एक दिन पहाड़ जैसे लग रहे थे. न रातों को नींद, न दिन को चैन था. कल मेरा जन्मदिन है, उन्होंने तोहफ़ा भेजा होगा, क्या होगा? क्या अटूट बंधन में बंधने का संकल्प होगा? क्या वो ख़ुद आ रहे हैं? मन में सैकड़ों सवाल, पर कोर्ई जवाब नहीं.
उन्हें भारत आए 15 दिन हो गए थे. वादे के अनुसार कल का दिन बहुत ख़ास था हमारे लिए. समय कट ही नहीं रहा था. सुबह हुई, घरवालों ने जन्मदिन की बधाई दी. आख़िर इंतज़ार ख़त्म हुआ, पोस्टमैन आ गया था. मैंने दौड़कर ख़त लिया, कांपते हाथों से टटोला, कार्ड था. ओह, तो जनाब ने बधाई का कार्ड भेजा है. जल्दी-जल्दी बड़ा-सा लिफ़ाफ़ा खोला. अंदर एक और लिफ़ाफ़ा था- शादी का कार्ड. ऊपर छपा था- सुनीता वेड्स कैलाश. सन्न-सी रह गई मैं! साथ में अनिता का ख़त था-
कैलाश तुझसे शादी की ज़िद कर रहा है, पर मैंने कहा कि तुमने उसे राखी भेजी थी. उस पुराने रिश्ते को कैसे भुलाया जा सकता है? मुझे तुमसे ऐसी आशा न थी. पापा के दोस्त की लड़की है सुनीता. जल्दी में शादी कर रहे हैं. आख़िर एक बार भाई बनाकर पति बनाने का सपना तुमने देखा भी तो कैसे?
मेरे लिए यह दूसरा वज्रपात था. चेतनाशून्य हो गई मैं और सदमे से बेहोश हो गई. अस्पताल में चार दिन के बाद होश आया. अनजाने में बनाया गया राखी का रिश्ता- मेरे वर्तमान और भविष्य को सदा के लिए अंधकारमय कर देगा, सोचा न था. यह एक अनजाने में की गई भूल थी. पर अब भला किससे क्या कहें-
मुद्दतें हो गई चुप रहते
कोई सुनता, तो हम भी कुछ कहते…
36 साल बाद भी उनके ख़तों को संजोकर रखा है मैंने. आज भी वे मेरे ज़ेहन में हैं और सदा रहेंगे.
– आशा चंद्रा
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