दिल में अगर दुनिया जीतने का जज़्बा हो, तो कोई भी आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता. इसकी मिसाल पूरी दुनिया को रियो पैरालिंपिक में देखने को मिली, ख़ासतौर पर हर भारतीय के लिए गर्व करने का समय है ये. रियो में चल रहे पैरालिंपिक में देश के मरियप्पन थांगावेलू ने हाई जंप में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया. गोल्ड की प्यास तो देश को रियो ओलिंपिक में थी, लेकिन उन खिलाड़ियों ने देश को निराश किया. मरियप्पन के गोल्ड के साथ ही वरुण सिंह भाटी ने हाई जंप के कांस्य पदक पर क़ब्ज़ा जमाया.
यहां हम आपको बता दें कि पैरालिंपिक उन खिलाड़ियों का खेल है, जो किसी न किसी तरह से शारीरिक रूप से अपूर्ण हैं. ज़रा सोचिए शारीरिक रूप से पूर्ण न होते हुए भी मरियप्पन ने देश की झोली में गोल्ड मेडल डाला है. इसे मरियप्प्न का जज़्बा ही कहेंगे. कभी न हार मानने की वो ज़िद्द, जो देश का नाम रोशन कर गई.
जब मरियप्पन गंवा बैठे थे अपना एक पैर
रियो में चल रहे पैरालिंपिक में देश की झोली में चमचमाता स्वर्ण पदक डालने वाले मरियप्पन दुर्घटना में अपना एक पैर गंवा बैठे थे. बात
1995 की है. मरियप्पन महज़ पांच साल के थे. तब उनके स्कूल के पास एक सरकारी बस से टक्कर होने के बाद वह अपना पैर खो बैठे. मरियप्पन की तरह और भी लोग हैं, जो इस तरह की दुर्घटना के बाद हारकर बैठ जाते हैं, लेकिन मरियप्पन की मां ने उन्हें कभी हारना सिखाया ही नहीं. ये उनकी मां का ही विश्वास और मनोबल था कि उन्होंने आज देश ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में अपनी मां के साथ मातृभूमि का नाम भी रोशन कर दिया.
सब्ज़ी बेचती हैं मरियप्पन की मां
शारीरिक रूप से कमज़ोर होने के साथ ही 22 साल के मरियप्पन की आर्थिक स्थिति भी कमज़ोर है. उनकी मां ने सब्ज़ी बेचकर बच्चों की परवरिश की है. मरियप्पन की ग़रीबी का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि पूरे दिन सब्ज़ी बेचने के बाद स़िर्फ 100 रुपए की आमदनी में पूरे घर का ख़र्च चलाना पड़ता था. फिर भी उनकी मां ने हार नहीं मानी और न ही अपने बच्चों को हारना सिखाया. शायद यही कारण है कि आज देश के लिए उनका बेटा स्वर्ण पदक जीत सका.
कौन हैं वरुण सिंह भाटी?
जमालपुर गांव के पैरा एथलीट वरुण सिंह भाटी का परिवार किसान है. बचपन में पोलियो ने वरुण के एक पैर को तो प्रभावित कर दिया, लेकिन उनके हौसले को नहीं. अपनी इस कमी को वरुण ने अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया और खेल की दुनिया में क़िस्मत आज़माने निकल पड़े. हम आपको बता दें कि वरुण देश के चुनिंदा पैरा
एथलीट में से एक हैं. वो कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं.
प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने दी बधाई
देश का नाम रोशन करनेवाले दोनों खिलाड़ियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने बधाई दी.
मेडल जीतकर सिखा गए की जीत क्या होती है!
मरियप्पन और वरुण सिंह शारीरिक रूप से दिव्यांग होते हुए भी देश के तमाम उन लोगों को एक सबक सिखा गए कि जीत कहते किसे हैं. हार तो आपके भीतर है. बस उस पर जिस दिन आप विजय पा लेंगे दुनिया आपके क़दमों में होगी.
– श्वेता सिंह
मुंबईतील बीकेसी येथे उभारण्यात आलेल्या नीता अंबानी कल्चरल सेंटरला नुकताच एक वर्ष पूर्ण झाले आहे.…
सोशल मीडियावर खूप सक्रिय असलेल्या जान्हवी कपूरने पुन्हा एकदा तिच्या चाहत्यांना सोमवारची सकाळची ट्रीट दिली…
The loneliness does not stop.It begins with the first splash of cold water on my…
सध्या सर्वत्र लगीनघाई सुरू असलेली पाहायला मिळत आहे. सर्वत्र लग्नाचे वारे वाहत असतानाच हळदी समारंभात…
“कोई अपना हाथ-पैर दान करता है भला, फिर अपना बच्चा अपने जिगर का टुकड़ा. नमिता…
न्यूली वेड पुलकित सम्राट और कृति खरबंदा की शादी को एक महीना हो चुका है.…