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सुष्मिता सेन 46 की उम्र में भी क्यों हैं अब तक कुंवारी, क्या बच्चों की वजह से नहीं की शादी? एक्ट्रेस ने खुद किया खुलासा- 3 बार शादी होते-होते रह गई, भगवान ने बचा लिया! (‘Men In My Life Were A Letdown, My Kids Were Not A Problem…’ Sushmita Sen Reveals The Only Reason Why She Never Got Married)

खूबसूरत, बोल्ड, बिंदास और बेबाक़ सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) एक आत्मविश्वासी और खुलकर अपनी बात कहनेवाली एक्ट्रेस हैं. उन्होंने कभी भी अपने रिश्तों (relationships) को…

खूबसूरत, बोल्ड, बिंदास और बेबाक़ सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) एक आत्मविश्वासी और खुलकर अपनी बात कहनेवाली एक्ट्रेस हैं. उन्होंने कभी भी अपने रिश्तों (relationships) को न तो छुपाया और न ही उन रिश्तों से अलग होने पर किसी पर दोषारोपण किया. काफ़ी शालीनता से वो अपने रिलेशनशिप्स को निभाती हैं और उससे भी कहीं ज़्यादा वो सिंगल मदर (single mother) होने की भूमिका बेहद प्यार से बखूबी निभा रही हैं. दो बेटियों और एक बेटे को गोद (adopted) लेने के बाद वो उनकी परवरिश बहुत ही बेहतरीन ढंग से कर रही हैं.

फ़ैन्स ये जानना चाहते हैं कि इतनी सुलझी हुई होने के बाद भी सुष्मिता ने आख़िर अब तक शादी क्यों नहीं की? लोगों को ये भी लगता है कि शायद वो अपने बच्चों की वजह से शादी के बंधन में नहीं बंध पा रहीं. सुष्मिता ने इन तमाम बातों पर ट्विंकल खन्ना से ट्वीक इंडिया के इंटरव्यू में खुलकर अपनी बात रखी. सुष्मिता ने कहा कि उनकी शादी न करने की वजह उनके बच्चे नहीं हैं बल्कि ऐसे तीन मौक़े आए जब वो शादी करने जा रही थीं लेकिन भगवान ने उनको बचा किया. सुष्मिता का कहना है कि उन्होंने अपनी लाइफ़ में आए हर शख़्स का खुले दिल और पूरे सम्मान से स्वागत किया और उनके बच्चों ने भी, लेकिन जो भी मेरी ज़िंदगी में आए वो मेरी जिम्मेदारियां और प्राथमिकताएं नहीं जान पाए.

सुष्मिता ने कहा I जब मैंने मेरी पहली बेटी रेने को गोद लिया था तब मैं किसी के साथ रिलेशन में नहीं थी लेकिन उसके बाद जो भी आया वो मुझे समझ ही नहीं पाया. मैं नहीं चाहती और मैंने किसी से ये उम्मीद भी नहीं की कि कोई मेरी जिम्मेदारी को शेयर करे, लेकिन आप ये कोशिश न करें कि मुझे इससे दूर रहने को कहे, ऐसा वो नहीं कह सकते. एक उम्र तक मेरी बेटियों को मेरी जरूरत है. सौभाग्य से मैं अपनी जिंदगी में काफ़ी दिलचस्प और शानदार लोगों से मिली. मेरे कभी शादी नहीं करने की वजह बस ये रही कि वे लोग निराश थे. इसका मेरे बच्चों से कोई लेना-देना नहीं था.

तीन बार ऐसे मौक़े आए जब मैं शादी करते-करते रह है लेकिन उस वक्त भगवान की दया से मैं बच गई क्योंकि मैं बता नहीं सकती कि वो क्या था, एक तरह से डिज़ैस्टर था पर ऊपरवाले ने मेरी रक्षा की क्योंकि भगवान मेरे बच्चों की रक्षा कर रहे हैं और वो मुझे ग़लत रिश्ते में बंधने से रोक रहे हैं.

गौरतलब है कि हाल ही में सुष्मिता का रोहमन शॉल से ब्रेकअप हुआ था लेकिन दोनों अब भी कई मौक़ों पर साथ नज़र आते हैं. उनमें अब भी दोस्ती थी. सबको लग रहा था कि रोहमन के साथ सुष्मिता की शादी होगी लेकिन दिनों के रास्ते अलग हो गए. इससे पहले सुष्मिता का नाम रणदीप हुड्डा, विक्रम भट्ट से लेकर वसीम अकरम तक से जुड़ चुका है. सुष्मिता को लम्बे अरसे बाद आर्या वेब सीरीज़ में देखा गया था और उनके काम को खूब सराहा गया था और रियल लाइफ़ में भी सुष्मिता के अन्दाज़ को सभी खूब सराहते हैं.

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ये माना समय बदल रहा है और लोगों की सोच भी. समाज कहने को तो पहले से कहीं ज़्यादा मॉडर्न ही गया है. लाइफ़स्टाइल बदल गई, सुविधाएं बढ़ गईं, लग्ज़री चीजों की आदतें हो गई… कुल मिलाकर काफ़ी कुछ बदल गया है, लेकिन ये बदलाव महज़ बाहरी है, दिखावाहै, छलावा है… दिखाने के लिए तो हम ज़रूर बदले हैं लेकिन भीतर से हमारी जड़ों में क़ैद कुछ रूढ़ियां आज भी सीना ताने वहीं कि वहींऔर वैसी कि वैसी खड़ी हैं… थमी हैं… पसरी हुई हैं. जी हां, यहां हम बात वही बरसों पुरानी ही कर रहे हैं, बेटियों की कर रहे हैं, बहनों की कर रहे हैं और माओं की कर रहे हैं… नानी-दादी, पड़ोसन और भाभियों की कर रहे हैं, जो आज की नई लाइफ़स्टाइल में भी उसी पुरानी सोच के दायरों में क़ैद है और उन्हें बंदी बना रखा हैखुद हमने और कहीं न कहीं स्वयं उन्होंने भी.  भले ही जीने के तौर तरीक़ों में बदलाव आया है लेकिन रिश्तों में आज भी वही परंपरा चली आ रही है जिसमें लड़कियों को बराबरी कादर्जा और सम्मान नहीं दिया जाता. क्या हैं इसकी वजहें और कैसे आएगा ये बदलाव, आइए जानें.  सबसे बड़ी वजह है हमारी परवरिश जहां आज भी घरों में खुद लड़के व लड़कियों के मन में शुरू से ये बात डाली जाती है कि वोदोनों बराबर नहीं हैं. लड़कों का और पुरुषों का दर्जा महिलाओं से ऊंचा ही होता है. उनको घर का मुखिया माना जाता है. सारे महत्वपूर्ण निर्णय वो ही लेते हैं और यहां तक कि वो घर की महिलाओं से सलाह तक लेना ज़रूरी नहीं समझते. घरेलू कामों में लड़कियों को ही निपुण बनाने पर ज़ोर रहता है, क्योंकि उनको पराए घर जाना है और वहां भी रसोई में खाना हीपकाना है, बच्चे ही पालने है तो थोड़ी पढ़ाई कम करेगी तो चलेगा, लेकिन दाल-चावल व रोटियां कच्ची नहीं होनी चाहिए.ऐसा नहीं है कि लड़कियों की एजुकेशन पर अब परिवार ध्यान नहीं देता, लेकिन साइड बाय साइड उनको एक गृहिणी बनने कीट्रेनिंग भी दी जाती है. स्कूल के बाद भाई जहां गलियों में दोस्तों संग बैट से छक्के मारकर पड़ोसियों के कांच तोड़ रहा होता है तो वहीं उसकी बहन मां केसाथ रसोई में हाथ बंटा रही होती है.ऐसा नहीं है कि घर के कामों में हाथ बंटाना ग़लत है. ये तो अच्छी बात और आदत है लेकिन ये ज़िम्मेदारी दोनों में बराबर बांटीजाए तो क्या हर्ज है? घर पर मेहमान आ जाएं तो बेटियों को उन्हें वेल्कम करने को कहा जाता है. अगर लड़के घर के काम करते हैं तो आस-पड़ोस वाले व खुद उनके दोस्त तक ताने देते हैं कि ये तो लड़कियों वाले काम करता है.मुद्दा यहां काम का नहीं, सोच का है- ‘लड़कियोंवाले काम’ ये सोच ग़लत है. लड़कियों को शुरू से ही लाज-शर्म और घर की इज़्ज़त का वास्ता देकर बहुत कुछ सिखाया जाता है पर संस्कारी बनाने के इसक्रम में लड़के हमसे छूट जाते हैं.अपने घर से शुरू हुए इसी असमानता के बोझ को बेटियां ससुराल में भी ताउम्र ढोती हैं. अगर वर्किंग है तो भी घरेलू काम, बच्चों व सास-ससुर की सेवा का ज़िम्मा अकेले उसी पर होता है. ‘अरे अब तक तुम्हारा बुख़ार नहीं उतरा, आज भी राजा बिना टिफ़िन लिए ऑफ़िस चला गया होगा. जल्दी से ठीक हो जाओ बच्चेभी कब तक कैंटीन का खाना खाएंगे… अगर बहू बीमार पड़ जाए तो सास या खुद लड़की की मां भी ऐसी ही हिदायतें देती है औरइतना ही नहीं, उस लड़की को भी अपराधबोध महसूस होता है कि वो बिस्तर पर पड़ी है और बेचारे पति और बच्चे ठीक से खानानहीं खा पा रहे. ये चिंता जायज़ है और इसमें कोई हर्ज भी नहीं, लेकिन ठीक इतनी ही फ़िक्र खुद लड़की को और बाकी रिश्तेदारों को भी उसकीसेहत को लेकर भी होनी चाहिए. घर के काम रुक रहे हैं इसलिए उसका जल्दी ठीक होना ज़रूरी है या कि स्वयं उनकी हेल्थ केलिए उसका जल्दी स्वस्थ होना अनिवार्य है? पति अगर देर से घर आता है तो उसके इंतज़ार में खुद देर तक भूखा रहना सही नहीं, ये बात बताने की बजाय लड़कियों को उल्टेये सीख दी जाती है कि सबको खिलाने के बाद ही खुद खाना पत्नी व बहू का धर्म है. व्रत-उपवास रखने से किसी की आयु नहीं घटती और बढ़ती, व्रत का संबंध महज़ शारीरिक शुद्धि व स्वास्थ्य से होता है, लेकिनहमारे यहां तो टीवी शोज़ व फ़िल्मों में इन्हीं को इतना ग्लोरीफाई करके दिखाया जाता है कि प्रिया ने पति के लिए फ़ास्ट रखा तोवो प्लेन क्रैश में बच गया… और इसी बचकानी सोच को हम भी अपने जीवन का आधार बनाकर अपनी ज़िंदगी का अभिन्न हिस्साबना लेते हैं. बहू की तबीयत ठीक नहीं तो उसे उपवास करने से रोकने की बजाय उससे उम्मीद की जाती है और उसकी सराहना भी कि देखोइसने ऐसी हालत में भी अपने पति के लिए उपवास रखा. कितना प्यार करती है ये मेरे राजा से, कितनी गुणी व संस्कारी है. एक मल्टी नेशनल कंपनी में काम करने वाली सुप्रिया कई दिनों से लो बीपी व कमज़ोरी की समस्या झेल रही थी कि इसी बीचकरवा चौथ भी आ गया. उसने अपनी सास से कहा कि वो ख़राब तबीयत के चलते करवा चौथ नहीं कर पाएगी, तो उसे जवाब मेंये कहा गया कि अगर मेरे बेटे को कुछ हुआ तो देख लेना, सारी ज़िंदगी तुझे माफ़ नहीं करूंगी. यहां बहू की जान की परवाहकिसी को नहीं कि अगर भूखे-प्यासे रहने से उसकी सेहत ज़्यादा ख़राब हो गई तो? लेकिन एक बचकानी सोच इतनी महत्वपूर्णलगी कि उसे वॉर्निंग दे दी गई. आज भी हमारे समाज में पत्नियां पति के पैर छूती हैं और उनकी आरती भी उतारती दिखती हैं. सदा सुहागन का आशीर्वाद लेकरवो खुद को धन्य समझती हैं… पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद मिलने पर वो फूले नहीं समाती हैं… ऐसा नहीं है कि पैर छूकर आशीर्वाद लेना कोई ग़लत रीत या प्रथा है, बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद बेहद ज़रूरी है और ये हमारेसंस्कार भी हैं, लेकिन पति को परमेश्वर का दर्जा देना भी तो ग़लत है, क्योंकि वो आपका हमसफ़र, लाइफ़ पार्टनर और साथी है. ज़ाहिर है हर पत्नी चाहती है कि उसके पति की आयु लंबी हो और वो स्वस्थ रहे लेकिन यही चाहत पति व अन्य रिश्तेदारों कीलड़की के लिए भी हो तो क्या ग़लत है? और होती भी होगी… लेकिन इसके लिए पति या बच्चों से अपनी पत्नी या मां के लिए दिनभर भूखे-प्यासे रहकर उपवास करने कीभी रीत नहीं… तो फिर ये बोझ लड़कियों पर क्यों?अपना प्यार साबित करने का ये तो पैमाना नहीं ही होना चाहिए.बेटियों को सिखाया जाता है कि अगर पति दो बातें कह भी दे या कभी-कभार थप्पड़ भी मार दे तो क्या हुआ, तेरा पति ही तो है, इतनी सी बात पर घर नहीं छोड़ा जाता, रिश्ते नहीं तोड़े जाते… लेकिन कोई उस लड़के को ये नहीं कहता कि रिश्ते में हाथ उठानातुम्हारा हक़ नहीं और तुमको माफ़ी मांगनी चाहिए.और अगर पत्नी वर्किंग नहीं है तो उसकी अहमियत और भी कम हो जाती, क्योंकि उसके ज़हन में यही बात होती है कि जो कमाऊसदस्य होता है वो ही सबसे महत्वपूर्ण होता है. उसकी सेवा भी होनी चाहिए और उसे मनमानी और तुम्हारा निरादर करने का हक़भी होता है.मायके में भी उसे इसी तरह की सीख मिलती है और रिश्तेदारों से भी. यही कारण है कि दहेज व दहेज के नाम पर हत्या वआत्महत्या आज भी समाज से दूर नहीं हुईं.बदलाव आ रहा है लेकिन ये काफ़ी धीमा है. इस भेदभाव को दूर करने के लिए जो सोच व परवरिश का तरीक़ा हमें अपनाना हैउसे हर घर में लागू होने में भी अभी सदियों लगेंगी, क्योंकि ये अंतर सोच और नज़रिए से ही मिटेगा और हमारा समाज व समझअब भी इतनी परिपक्व नहीं हुईं कि ये नज़रिया बदलनेवाली नज़रें इतनी जल्दी पा सकें. पत्नी व महिलाओं को अक्सर लोग अपनी प्रॉपर्टी समझ लेते हैं, उसे बहू, बहन, बेटी या मां तो समझ लेते हैं, बस उसे इंसान नहींसमझते और उसके वजूद के सम्मान को भी नहीं समझते.गीता शर्मा 

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