मुझे आज भी याद है, जब मेरे बेटे का पहला दांत निकला था, तो हम दोनों इतने ख़ुश हुए थे कि हमारा बस चलता, तो उसके मुंह में कैमरा डालकर उसके दांत की फोटो खींच लेते. उस समय मुझे यह ख़्याल आया कि यदि मैं शूटिंग कर रही होती, तो इतना ख़ास पल कैसे देख पाती? वर्किंग मदर्स के लिए यही वक़्त मुश्किल भरा होता है, इसलिए मेरा मानना है कि बहुत ज़्यादा मजबूरी न हो, तो घर पर रहकर बच्चे की सही परवरिश को ही महत्व देना चाहिए.
मैं अपने दोनों बच्चों को स्कूल छोड़ने जाती हूं, उन्हें साथ बिठाकर होमवर्क करवाती हूं, वो सारे काम करती हूं, जो एक आम मां अपने बच्चों के लिए करती है. मैंने अपने बच्चों को गायत्री मंत्र सिखाया है और घर में मैैं उनसे मराठी में ही बात करती हूं. आज जब मैं अभिनय की दुनिया में लड़कियों को आगे बढ़ते देखती हूं, तो मुझे बहुत ख़ुशी होती है. लड़कियों के मामले में अब लोगों की सोच बदल रही है. मुझे आज भी याद है, जब मैंने फ़िल्मों में काम करने का मन बनाया, तो उस व़क़्त मेरे परिवारवाले (ख़ासतौर पर मेरे ननिहालवाले) इस बात के लिए राज़ी नहीं थे.
मां बनने के बाद मेरी पूरी शख़्सियत ही बदल गई. पहले मुझे ग़ुस्सा बहुत आता था, पर अब मैंने अपने ग़ुस्से पर क़ाबू करना सीख लिया है. अब मैं वैसी नहीं रही, जैसी अपने करियर के शुरुआती दौर में थी. अब मैं चीज़ों को लाइटली लेने लगी हूं और कोई टेंशन हो भी, तो बच्चों के पास आकर सब छूमंतर हो जाता है. अब मेरे लिए तनाव दूर करने का सबसे अच्छा माध्यम है अपने बच्चों के साथ व़क़्त गुज़ारना. जब भी मैं उनके साथ होती हूं, तो वो मुझे पूरी तरह डीस्ट्रेस कर देते हैं.
वैसे तो मेरा फेवरेट हॉलीडे डेस्टिनेशन है लंदन, पर मां बनने के बाद ज़िंदगी में बहुत कुछ बदल गया है. अब मैं अपने बच्चों की पसंद के अनुसार ही हॉलीडे डेस्टिनेशन तय करती हूं. लंदन में बच्चों के साथ जाना थोड़ा मुश्किल है, इसलिए अब मैं डिज़नीलैंड व थीम पार्क में जाती हूं. वैसे भी अब मैं चाहे गोवा में रहूं, स्विट्ज़रलैंड में या फिर अपने बेडरूम में, यदि मेरे बच्चे मेरे साथ हैं, तो वही मेरी पसंदीदा जगह बन जाती है.
मां बनना मेरा बेस्ट एक्सपीरियंस है. मुझे लगता है कि हर औरत को मां बनना चाहिए. किसी भी इंसान को दुनिया में लाने का काम केवल मां ही कर सकती है और यह बहुत ही स्पेशल होता है. अपने बच्चे के साथ समय बिताने और उसके सारे काम करने से अच्छा अनुभव और कुछ नहीं है.
अक्सर लोग कहते हैं कि आजकल के बच्चों की परवरिश बहुत मुश्किल हो गई है, उन्हें बहुत ज़्यादा एक्सपोज़र मिल रहा है, लेकिन ऐसा हर जनरेशन के साथ होता है. हमारे दादा-दादी, नाना-नानी भी हमारे बारे में यही सोचते थे. ये बदलाव हमेशा से होता रहा है, इसलिए मैं इस बात से घबराती नहीं. हां, बच्चों को किस समय कितना एक्सपोज़र मिलना चाहिए, इस पर पैरेंट्स को ध्यान देना ज़रूरी है.
हम लोगों को चीज़ें मिलती ही नहीं थीं, लेकिन आज के बच्चों को मटीरियलिस्टिक चीज़ें ही नहीं, नॉलेज भी ज़्यादा मिल रहा है और ये इंफॉर्मेशन उन्हें जितनी आसानी से मिल रही है, उतनी ही तेज़ी से वे उसे पिकअप भी कर रहे हैं. ऐसे में पैरेंट्स को लगातार अपने बच्चे पर ध्यान देना चाहिए.
आजकल के पैरेंट्स अपने बच्चों के साथ बहुत ज़्यादा इंवॉल्व रहते हैं. उनका बच्चा क्या पढ़ता है? कैसे पढ़ता है? इन सारी बातों की जानकारी उन्हें रहती है. यदि मैं अपने बचपन की बात करूं, तो मुझे नहीं लगता कि मेरी मां को इस बात से कोई मतलब था? लेकिन आज समय के साथ पैरेंटिंग स्टाइल में भी बदलाव आया है. आज के पैरेंट्स काफ़ी प्रोटेक्टिव हो गए हैं. अपने बच्चों को अच्छी आदतें सिखाने के लिए मैं भी बात-बात में उन्हें नसीहत देती हूं, मैं अपने बच्चों के साथ ज़्यादा से ज़्यादा समय रहती हूं, ताकि मेरे बच्चों का बचपन मुझसे छूट न जाए. मैं उनसे जुड़ा एक भी पल मिस नहीं करना चाहती.
अपने बच्चों को आगे बढ़ते देखने की ख़ुशी को शब्दों में बयां करना बहुत मुश्किल है. हर माता-पिता को इस दिन का इंतज़ार रहता है. ऋषि और मुझे भी बच्चों को सफल होते देखकर संतुष्टि मिलती है. सच बताऊं तो मेरे बच्चों ने मेरे सारे अरमान पूरे कर दिए. रिद्धिमा ने फैशन डिज़ाइनिंग को करियर के लिए चुना और जहां तक रणबीर का सवाल है, तो हमें बचपन से ही पता था कि वो स्टार बननेवाला है. उसे फिल्म और ऐक्टिंग का बचपन से ही शौक़ था. ऋषि ने रणबीर की पहली फिल्म ‘सांवरिया’ देखते समय एक सीन पर खड़े होकर ताली बजाते हुए कहा था कि मेरा बेटा अच्छा ऐक्टर है. वह मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा दिन था.
मैं नहीं समझ पाती कि लोगों को ऐसा क्यों लगता है कि ग्लैमर वर्ल्ड और परिवार में संतुलन नहीं बन सकता? काम, काम है, फिर चाहे वो किसी भी फील्ड से जुड़ा हो. मेरा मानना है कि ईश्वर ने औरत को मैनेजमेंट स्किल तोह़फे के रूप में दी है, इसलिए वो हर काम, हर रिश्ते को अच्छी तरह मैनेज कर लेती है, मदरहुड को भी.
मेरे बचपन की यादें बहुत सुखद नहीं हैं. मैं एक मिडल क्लास, बल्कि लोअर मिडल क्लास फैमिली में पली-बढ़ी हूं. मेरे माता-पिता दोनों काम करते थे. बहुत छोटी उम्र से ही मैं ये महसूस करने लगी थी कि मां को घर और हमारी पढ़ाई का ख़र्च उठाने में बहुत मुश्किल होती है, इसलिए सातवीं क्लास से मैंने भी काम करना शुरू कर दिया. मैंने टयूशन लेने से लेकर डोर टु डोर सेल्स गर्ल का काम भी किया है. मैं छुट्टियों में इतना काम कर लेती थी कि मेरी पढ़ाई का ख़र्च निकल जाए. मुझे अपने बचपन से कोई शिकायत नहीं, लेकिन मैंने हमेशा यही कोशिश की है कि मेरी तरह मेरे बच्चों का बचपन न बीते. मैं उनकी हर ज़रूरत का पूरा ख़्याल रखती हूं.
मैं भारत के टेलीविज़न इतिहास में पहली महिला हूं, जिसने नौ महीने की प्रेग्नेंसी में टीवी पर एक टॉक शो किया. ज़्यादातर टॉक शोज़ में एंकर को ग्लैमरस रूप में प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. मुझे ख़ुशी है कि उस वक़्त भी लोगों ने मुझे नहीं, बल्कि मेरे काम को देखा और उसकी तारीफ़ भी की. उस वक़्त ख़ुद पर ज़रूर फ़ख़्र हुआ कि मेरी प्रेग्नेंसी मेरे लिए किसी भी तरह से रुकावट नहीं बनी. ज़्यादातर वर्किंग वुमन से पूछा जाता है कि वो घर और करियर के बीच तालमेल कैसे बिठाती हैं? मुझे हैरानी होती है कि ये सवाल पुरुषों से क्यों नहीं पूछा जाता. इसका मतलब तो यही हुआ ना कि समाज मानता है कि पुरुष घर पर काम नहीं करता.
हमारे घर का माहौल बहुत ही कैजुअल है. हम अपने बच्चों की परवरिश वैसे ही कर रहे हैं जैसे आम घरों में होती है. जिस तरह सभी पैरेंट्स चाहते हैं कि उनके बच्चे अच्छे इंसान बनें, हम भी ऐसा ही चाहते हैं और इसके लिए कोशिश करते रहते हैं. शाहरुख़ जब भी काम से लौटते हैं, तो बच्चों के साथ ही अपना पूरा टाइम बिताते हैं. सच कहूं तो शाहरुख़ से अच्छा लाइफपार्टनर और फादर कोई हो ही नहीं सकता.
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