साजिद कुरेशी और पीवीआर पिक्चर्स के बैनर तले बनी फ्राईडे फुल टाइमपास मूवी है. अभिषेक डोगरा का कमाल का निर्देशन है. गोविंदा की कमबैक के तौर पर ले सकते हैं. उनकी ग़ज़ब की कॉमेडी है और वरुण शर्मा ने भी उनका अच्छा साथ दिया है. अन्य कलाकारों में बृजेंद्र काला, दिगांगना सूर्यवंशी, प्रभलीन संधू, राजेश शर्मा, संजय मिश्रा ने भी अच्छा साथ दिया है. मनु ऋषि के संवाद बढ़िया है. मीका सिंह, अंकित तिवारी, प्रियंका गोयत, नवराज हंस के गाए गाने मज़ेदार हैं. गोविंदा के फैन के लिए यह फिल्म एक बेहतरीन तोहफ़ा है.
प्रदीप सरकार का बेहतरीन निर्देशन है. आनंद गांधी के गुजराती नाटक बेटा कागड़ो पर आधारित है. इसकी कहानी आनंद गांधी और मितेश शाह ने मिलकर लिखी है.
काजोल सिंगल मदर है औरवो अपने बेटे रिद्धि सेन की अच्छी परवरिश करती है और हरदम उसके ईदगिर्द प्रोटेक्शन के तौर पर रहती है. लेकिन अति तब हो जाती है, जब वो कॉलेज में हरदम उसकी निगरानी करती रहती है. दरअसल, अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए वो बेटे के कॉलेज में ही एडमिशन लेती है. फिल्म वर्किंग व सिंगल मदर के संघर्ष को बख़ूबी बयां करती है. मां-बेटे की बॉन्डिंग, मां का अति सुरक्षात्मक रवैया, इससे बेटे की परेशानी, स्पेस के लिए बेचैन होना… सब कुछ बढ़िया बन पड़ा है. इमोशंस के साथ एक मैसेज भी देती है कि रिश्तों में स्पेस देना भी ज़रूरी है.
बेटे के रूप में रिद्धि सेन ने अपनी पहली फिल्म में प्रभावशाली अभिनय किया है. काजोल तो हमेशा से ही बेजोड़ अदाकारा रही हैं. हर सीन में वे ख़ूबसूरत, आकर्षक व बेहतरीन लगी हैं.
इनके साथ नेहा धूपिया, जाकिर हुसैन, टोटा राय चौधरी ने भी लाजवाब अभिनय किया है. अमित त्रिवेदी व राघव सच्चर का संगीत मधुर है. मम्मा की परछाई, यादों की आलमारी गाना अच्छा बना है. फिल्म में अमिताभ बच्चन, शान, और महेश भट्ट का कैमियो भी है.
मुकेश भट्ट की जलेबी वाकई में एक अर्थपूर्ण फिल्म है. पुष्पदीप भारद्वाज का तारीफ़-ए-काबिल निर्देशन है.
एक प्रेमकहानी है. जहां दो प्यार करनेवाले अलग हो जाते हैं. फिर दोनों की ट्रेन में मुलाक़ात होती है, जहां प्रेमी अपनी दूसरी पत्नी व बच्चे के साथ है. यादों का सिलसिला, आपसी जुड़ाव, ग़लती कहां हुई… आदि का सोच का दौर चलता है.
अपनी पहली ही फिल्म में वरुण मित्रा ने शानदार परफॉर्मेंस दिया है. साथ ही रिया चक्रवर्ती, दिगांगना सूर्यवंशी का अभिनय भी बेजोड़ है. यह बंगाली फिल्म प्रकटन की रीमेक है. तनिष्क बागची व जीत गांगुली का संगीत कर्णप्रिय है. गाने ख़ूबसूरत है, विशेषकर पल, तेरे नाम से… अरिजित सिंह, श्रेया घोषाल, ज़ुबिन नौटियाल, जावेद मोहसिन के गाए हर गीत मधुर हैं. कौसर मुनीर की पटकथा सशक्त है.
निर्माता आनंद एल राय व सोहम शाह की तुंबाड फैंटेसी, हॉरर, पीरियड, हिस्टॉरिकल बेस फिल्म है. यह रहस्य, रोमांच व तिलिस्म से भरी सशक्त थ्रिल फिल्म है. सिनेमाटोग्राफी, कॉस्टयूम, आर्ट सब कुछ ख़ूबसूरत हैं.
साल 1920 के दौर की कहानी है, महाराष्ट्र के तुंबाड गांव में तीन पीढ़ियों से रह रहे ब्राह्मण परिवार की है. उनकी जमीदारी थी. वहीं पर वे बरसों से ख़ज़ाने की खोज करते हैं, पर सफल नहीं हो पाते.
अपनी पहली ही फिल्म में राही अनिल बर्वे ने प्रशंसनीय निर्देशन दिया है. साथ ही सभी कलाकारों- सोहम शाह, हरीश खन्ना, रोजिनी चक्रवर्ती, मोहम्मद समद, ज्योति मालशे, अनीता दाते ने प्रभावशाली अभिनय किया है. रहस्य व रोमांच से भरपूर यह फिल्म दर्शकों को बांधे रखती है. क्रिएटिव डायरेक्टर आनंद गांधी ने भी फिल्म को ख़ूबसूरत बनाने में पूरा योगदान दिया है. अजय-अतुल व जेस्पर कीड की म्यूज़िक लाजवाब है.
– ऊषा गुप्ता
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