हर फिल्ममेकर की अपेक्षा रहती है कि जो फिल्म वे बना रहे हैं, वो कामयाब हो, लोग उसे पसंद करें. यही कोशिश 'मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे' और 'ज्विगाटो' के निर्देशकों की भी थी. कमाल की बात यह भी है कि दोनों ही फिल्म के निर्देशक महिलाएं हैं, आशिमा छिब्बर और नंदिता दास.
रानी मुखर्जी ने मिसेज चटर्जी के रूप में अपने अभिनय से हर किसी को प्रभावित किया. एक मां के दर्द को बयां करते समय उनके इमोशंस और डायलॉग देखकर-सुनकर आंखें नम हो जाती हैं. फिल्म की कहानी एक सत्य घटना पर आधारित है. सॉफ्टवेयर इंजीनियर सागरिका भट्टाचार्य नार्वे सरकार के फोस्टर केयर में बंधक बनाए गए अपने दोनों बच्चों को पाने के लिए क़ानूनी लड़ाई लड़ती हैं. इस पर उन्होंने 'द जर्नी ऑफ ए मदर' अपनी आत्मकथा भी लिखी, जिस पर ही फिल्म की कहानी आधारित है.
अनिर्बान भट्टाचार्य, जिम सरभ और नीना गुप्ता ने भी बेहतरीन अभिनय किया है. दर्शकों को फिल्म की कहानी और सभी कलाकारों का सशक्त अभिनय ख़ूब पसंद आ रहा है. गीत संगीत, छायांकन ठीक-ठाक है. अमित त्रिवेदी का म्यूज़िक कहीं-कहीं मधुर है. समीर सतीजा, आशिमा छिब्बर और राहुल नंदा की कहानी सशक्त है.
रानी मुखर्जी के पति की नॉर्वे में नौकरी लग जाती है और वह उनके साथ ही यहां रहने लगती हैं. दोनों पहली बार विदेशी धरती पर आए थे और वहां के तौर-तरीक़ों व क़ानून से अनजान थे. उनके दो बच्चे होते हैं. नॉर्वे में चाइल्ड केयर को लेकर सख्त नियम है. उनकी निगरानी रहती है कि सब पैरेंट्स अपने बच्चों का ध्यान अच्छी तरह से रख रहे हैं कि नहीं. कहानी में ट्विस्ट तब आता है, जब उन्हें लगता है कि मिसेज चटर्जी अपने बच्चों के साथ ज़्यादती कर रही हैं और वे उनके बच्चों की कस्टडी अपने पास रख लेते हैं कि वे अब उनकी देखभाल करेंगे.
अपने बच्चों को हाथ से खाना खिलाना, उनके साथ सोना आदि नॉर्वे के नियम-क़ानून के विरुद्ध समझा गया. उनके अनुसार यह बच्चों के साथ अन्याय है, जबकि भारत में यह आम बात है. हर पैरेंट्स अपने बच्चों के साथ ऐसा करते हैं.
रानी की समझ में नहीं आता कि ये क्या हो रहा है और उनके साथ ही ऐसा क्यों हुआ? अपने बच्चों को पाने के लिए वे विदेश ही नहीं अपने देश में भी लंबी क़ानूनी लड़ाई लड़ती हैं. उनके दुख-दर्द को सरकार समझे ना समझे आम जनता की भावनाएं रानी के साथ ही होती हैं. फिल्म में कई ट्विस्ट हैं और यह दिखाने की पूरी कोशिश की गई है कि मां अपने बच्चों को पाने के लिए लोगों से ही नहीं देश-दुनिया से भी लड़ सकती है. इसमें कोई दो राय नहीं कि ज़ी स्टूडियो, मोनिशा आडवाणी, मधु भोजवानी और निखिल आडवाणी ने निर्माता के तौर पर एक अच्छी फिल्म बनाई है.
लंबे अरसे के बाद रानी मुखर्जी को बड़े पर्दे पर देखना सुकून देता है. उन्होंने इसके पहले मरदानी 2 में भी अपने अभिनय के दमखम को दिखाया था. इस फिल्म में तो वे उससे आगे बढ़ते हुए एक मां के संघर्ष को बख़ूबी जीते हुए दिखती हैं.
रेटिंग: 3 ***
अब बात करते हैं कपिल शर्मा की 'ज्विगाटो' की. यह फिल्म एक ऐसे फूड ऐप डिलीवरी बॉय की है, जो कोरोना काल में अपनी फैक्ट्री के मैनेजर की नौकरी खो देता है. फिर मजबूरी में उसे कोलकाता से भुवनेश्वर आना पड़ता है अपने परिवार के साथ. यहीं पर कहीं काम ना मिल पाने पर वह डिलीवरी बॉय की जॉब करने लगता है. जहां रेटिंग पाने को लेकर कितनी रस्साकशी है. वहीं इतने पैसे भी हाथ नहीं आ रहे, जिससे वह अपनी पत्नी, दोनों बच्चे और अपनी बूढ़ी मां की अच्छी तरह से देखभाल कर सके, घर चला सके. ऐसे में मजबूर होकर पत्नी शाहाना गोस्वामी को भी नौकरी करना पड़ता है. वो मॉल में सफ़ाई का काम करती है. कई ट्विस्ट कहानी में आते हैं.
कपिल शर्मा ने मानस महोतो के किरदार को बखूबी जीया है. डिलीवरी बॉय के रूप में उन्हें अपने रेटिंग के लिए तमाम पापड़ बेलने पड़ते हैं. पत्नी की अपने से बेहतर आमदनी भी मानस को हताश कर देती है. पुरुष की मानसिकता और निराशा को निर्देशक नंदिता ने बख़ूबी फिल्माया है. लेकिन फिल्म की रफ़्तार काफ़ी धीमी है. इससे पहले फिराक, मंटो जैसी बेहतरीन फिल्में नंदिता बना चुकी हैं, पर इस बार वे उम्मीदों पर खरी नहीं उतरीं. फिल्म के गाने और म्यूज़िक में भी कोई ख़ास आकर्षण नहीं है. अपलॉस एंटरटेनमेंट व नंदिता की यह फिल्म और भी बेहतर बन सकती थी अगर इसकी पटकथा मज़बूत होती. शहाना गोस्वामी, सयानी गुप्ता, गुल पनाग व समीर नायक सभी ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है.
कपिल शर्मा का अभिनय बांधे रखता है, लेकिन उनकी इमेज बढ़िया कॉमेडियन की ठीक है. इसमें एकदम अलग लगे और अपने गंभीर क़िरदार को उन्होंने पूरी गंभीरता से किया भी है, पर इन सब के बावजूद फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कमाल नहीं दिखा पा रही है. कपिल शर्मा इसके पहले 'किस किसको प्यार करूं' और 'फिरंगी' फिल्में कर चुके हैं. जहां यह उनकी तीसरी फिल्म है, वही डायरेक्टर नंदिता की भी तीसरी फिल्म है. पर दोनों ही अपने फिल्म की कामयाबी की हैट्रिक नहीं लगा सके.
रेटिंग: 2 **
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