फिल्मः हामिद
निर्देशकः एजाज़ ख़ान
कलाकारः रसिका दुग्गल, विकास कुमार
रेटिंगः 4 स्टार
हामिद कश्मीर के मुद्दों पर बनी संवेदनशील फिल्म है जो अलगाववाद, गायब हो जाते लोग, सेना के घाटी में दबाव, घाटी के रहनेवालों की स्थिति, पाकिस्तान और आतंकवादी संगठनो की घाटी में सक्रियता और पत्थरबाज़ी के विषयों को छूकर निकलती है.
कहानीः सात साल के बच्चे हामिद (ताल्हा अरशद रेहशी) के पिता रहमत (सुमित कौल) एक रात घर से निकलते हैं तो वो वापस घर नहीं लौटते. सालभर अपने पति को खोजती इशरत (रसिका दुग्गल) अपना सब कुछ भूल चुकी है. यहां तक की अपने बेटे हामिद की भी वो सुधबुध नहीं लेती. हामिद को पता चलता है कि उसके पिता अल्लाह के पास हैं और अब वह अल्लाह से अपने पिता को वापस लाने की जुगत लगाने लगता है. तभी उसे ये भी बताया जाता है कि 786 अल्लाह का नंबर है. हामिद जब अपनी बाल बुद्धि के बल पर किसी तरह उस नंबर को दस डिजिट में बदलकर अल्लाह को कॉन्टैक्ट करता है, तो वह नंबर सीआरपीएफ के जवान अभय (विकास कुमार) को लग जाता है. अपने परिवार से दूर कश्मीर में ड्यूटी पर तैनात अभय स्वयं अपने ऐसे कृत्य के अपराधबोध से दबा हुआ है, जहां अनजाने में उसके हाथों एक मासूम की जान जा चुकी है और वह उस बोझ को कम नहीं कर पा रहा है. इसके बाद की कहानी जानने के लिए आपको यह फिल्म देखनी होगी.
खूबियांः हामिद के कुछ दृश्य बेहद संवेदनशील हैं. सेना के जवानों का एक आम कश्मीरी को रोकना, एक पिता का मजबूरी में बाहर जाना, अलगाववादियों का बचपन से ही कश्मीरी बच्चों पर निगाह रखना, मां का अपने बेटे से पैसे मांगना इत्यादि. छोटे छोटे दृश्यों में ये फिल्म आपको छू लेती है लेकिन बार बार फिल्म की धीमी गति इसकी पकड़ बनने नहीं देती.
खामियांः फिल्म की एक सबसे बड़ी समस्या है इसकी लंबाई. फर्स्ट हाफ बहुत खिंचा हुआ लगता है, मगर जैसे ही हामिद की कॉल अल्लाह उर्फ अभय को लगती है, कहानी दौड़ने लगती है. फिल्म की एडिटिंग कसी हुई होती, तो फिल्म का फर्स्ट हाफ भी मजबूत बन सकता था. मसाला फिल्मों के शौक़ीनों को यह फिल्म थोड़ी स्लो लग सकती है.
फिल्मः फोटोग्राफ
निर्देशकः रितेश बन्ना
कलाकारः नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी, सान्या मल्होत्रा
रेटिंग- 2 स्टार
रितेश बत्रा की फ़िल्म फोटोग्राफ एक फोटोग्राफ़र रफ़ीक की कहानी है, जो मुंबई के गेटवे ऑफ़ इंडिया में लोगों की तस्वीर खींचकर पैसे कमाता है. एक दिन वो एक यंग लड़की मिलोनी (सान्या मल्होत्रा) को तस्वीर खिंचवाने के लिए राज़ी करता है. कुछ ऐसा होता है कि रफ़ीक मिलोनी को अपनी दादी से अपनी मंगेतर के तौर पर मिलवाता है. अलग धर्म, अलग रंग, रूप और अलग पढ़ाई होने के बाद दोनों को ये एहसास होने लगता है कि दोनों में बहुत कुछ एक जैसा है. दोनों का नेचर और इमोशन छिपाने का तरीक़ा भी एक जैसा है. इन दोनों की केमिस्ट्री और प्यार के ठंडे एहसास तले ये फ़िल्म चलती है.
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