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आदिदेवी कूष्मांडा और वात्सल्य रूप स्कन्दमाता (Navratri- Devi Kushmanda/Devi Skandmata)

आज नवरात्रि के चौथे दिन अंबे मां के चौथे स्वरूप कूष्मांडा और पांचवें स्कन्दमाता दोनों की पूजा-आराधना की जाएगी.


देवी कूष्मांडा अष्टभुजा से युक्त है,
इसलिए इन्हें अष्टभुजा भी कहा जाता है.
जिस तरह से ब्रह्माचारिणी व चंद्रघंटा देवी
की पूजा-अर्चना की जाती है,
उसी तरह से कूष्मांडा देवी की पूजा का विधान है.
देवी को पंचामृत से स्नान कराकर फूल, अक्षत, रोली, चंदन, कुमकुम अर्पित करें.

Devi Kushmanda/Devi Skandmata


देवी मां को अरूहूल (लाल रंग का एक विशेष फूल) का फूल विशेष रूप से पसंद है, इसलिए हो सके, तो इसकी माला बनाकर पहनाएं.

इनकी पूजा करने से आयु, यश व आरोग्य की प्राप्ति होती है.

देवी कूष्मांडा की पूजा-अर्चना करने से हमारे जीवन में तप, संयम, त्याग व सदाचार की वृद्धि होती है.

ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्
सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्
कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलश चक्र गदा जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीया कृदुहगस्या नानालंकार भूषिताम्
मंजीर हार केयूर किंकिण रत्नकुण्डल मण्डिताम्
प्रफुल्ल वदनां नारू चिकुकां कांत कपोलां तुंग कूचाम्
कोलांगी स्मेरमुखीं क्षीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥

स्त्रोत मंत्र
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्
जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुंदरी त्वंहि दु:ख शोक निवारिणाम्
परमानंदमयी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

कवच मंत्र
हसरै मे शिर: पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्
हसलकरीं नेत्रथ, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे वाराही उत्तरे तथा
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम
दिग्दिध सर्वत्रैव कूं बीजं सर्वदावतु॥

या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।


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वात्सल्य रूप देवी स्कन्दमाता (Navratri- Devi Skandmata)

Devi Skandmata

सिंहासनगता नित्यं पद्याश्रितकरद्वया
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी

नवरात्रि के पांचवें दिन अंबे मां के पांचवें स्वरूप स्कन्दमाता की पूजा-आराधना की जाती है.
मां अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं.
मां को माहेश्‍वरी व गौरी के नाम से भी जाना जाता है.
महादेव शिव की वामिनी यानी पत्नी होने के कारण माहेश्‍वरी भी कहलाती हैं.
अपने गौर वर्ण के कारण गौरी के रूप में पूजी जाती है.
मां को अपने पुत्र स्कन्द (कार्तिकेय) से अत्यधिक प्रेम होने के कारण पुत्र के नाम से कहलाना पसंद करती हैं, इसलिए इन्हें स्कन्दमाता कहा जाता है.
अपने भक्तों के प्रति इनका वात्सल्य रूप प्रसिद्ध है.
कमल के आसन पर विराजमान होने के कारण इन्हें पद्यासना भी कहते हैं.
स्कन्दमाता अपने इस स्वरूप में स्कन्द के बालरूप को अपनी गोद में लेकर विराजमान रहती हैं.
इनकी चार भुजाएं हैं. दाईं ओर कमल का फूल व बाईं तरफ़ वरदमुद्रा है.

संतान की कामना करनेवाले भक्तगण इनकी विशेष रूप से पूजा करते हैं.
वे इस दिन लाल वस्त्र में लाल फूल, सुहाग की वस्तुएं- सिंदूर, लाल चूड़ी, महावर, लाल बिंदी, फल, चावल आदि बांधकर मां की गोद भरनी करते हैं.

ध्यान
वंदे वांछित कामार्थे चंद्रार्धकृतशेखराम्
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कंदमाता यशस्वनीम्
धवलवर्णा विशुद्ध चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्
प्रफु्रल्ल वंदना पल्लवांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्
कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्

कवच
ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा। हृदयं पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥
श्री हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा। सर्वांग में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥
वाणंवपणमृते हुं फ्ट बीज समन्विता। उत्तरस्या तथाग्नेव वारुणे नैॠतेअवतु॥
इन्द्राणां भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी। सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥

यदि आप कफ़, वात, पित्त जैसी बीमारियों से ग्रस्त हैं, तो आपको स्कंदमाता की विशेष रूप से पूजा करनी चाहिए.
मां को अलसी चढ़ाकर प्रसाद में रूप में ग्रहण करना चाहिए.
केले का भोग लगाना चाहिए, क्योंकि केला मां को प्रिय है.

ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

नवरात्रि पर विशेष

डॉ. मधुराज वास्तु गुरु के अनुसार…

दो तिथियां एक साथ पड़ने से इस साल आठ दिन के होंगे शारदीय नवरात्रि…
नवरात्रि यानी मां दुर्गा की उपासना का पावन पर्व. नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है.
इस साल शारदीय नवरात्रि सात अक्टूबर से शुरू हो रहे हैं और 15 अक्टूबर को विजयादशमी यानी दशहरा मनाया जाएगा.
इस साल शारदीय नवरात्रि की शुरुआत गुरुवार से हो रही है. ऐसे में मां दुर्गा डोली (पालकी) पर सवार पर होकर आएंगी.
इस साल शारदीय नवरात्रि आठ दिन तक चलेंगे. नवरात्रि में तृतीया और चतुर्थी तिथि एक साथ पड़ रही है.
हिंदू पंचांग के अनुसार, 09 अक्टूबर, दिन शनिवार को तृतीया सुबह 07 बजकर 48 मिनट तक रहेगी. इसके बाद चतुर्थी तिथि शुरू हो जाएगी. 10 अक्टूबर, दिन रविवार को सुबह 05 बजे तक रहेगी.
शारदीय नवरात्रि चित्रा नक्षत्र में प्रारंभ हो रहे है.

शारदीय नवरात्रि की तिथियां

पहला दिन 07 अक्टूबर- मां शैलपुत्री की पूजा
दूसरा दिन 08 अक्टूबर- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
तीसरा दिन 09 अक्टूबर- मां चंद्रघंटा व मां कुष्मांडा की पूजा
चौथा दिन 10 अक्टूबर- मां स्कंदमाता की पूजा
पांचवां दिन 11 अक्टूबर- मां कात्यायनी की पूजा
छठवां दिन 12 अक्टूबर- मां कालरात्रि की पूजा.
सातवां दिन 13 अक्टूबर- मां महागौरी की पूजा
आठवां दिन 14 अक्टूबर- मां सिद्धिदात्री की पूजा
15 अक्टूबर- दशहरा (विजयादशमी)

प्रथम तीन दिन दुर्गा (महाकाली) प्रधान पूजन!
द्वितीय तीन दिन महालक्ष्मी प्रधान पूजन!
अंतिम तीन दिन महासरस्वती की प्रधान पूजा होती है!

तिथि को ही देवी स्वरूपा माना है. अतः नवतिथि आधार पर ही नवरात्रि किए जाते हैं. प्रत्येक तिथि की पूजा उस अतिथि की महाशक्ति को अर्पण करें.

Navratri 2021

मां अम्बे की आरती

ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
तुम को निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी. ॐ जय अम्बे…

मांग सिंदूर विराजत टीको मृगमद को
उज्जवल से दो नैना चन्द्र बदन नीको. ॐ जय अम्बे…

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजे
रक्त पुष्प दल माला कंठन पर साजे. ॐ जय अम्बे…

केहरि वाहन राजत खड़्ग खप्पर धारी
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुखहारी. ॐ जय अम्बे…

कानन कुण्डल शोभित नासग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम ज्योति. ॐ जय अम्बे…

शुम्भ निशुम्भ विडारे महिषासुर धाती
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती. ॐ जय अम्बे…

चण्ड – मुंड संहारे सोणित बीज हरे
मधु कैटभ दोऊ मारे सुर भयहीन करे.ॐ जय अम्बे…

ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी. ॐ जय अम्बे…

चौसठ योगिनी मंगल गावत नृत्य करत भैरु
बाजत ताल मृदंगा और बाजत डमरु. ॐ जय अम्बे…

तुम ही जग की माता तुम ही हो भर्ता
भक्तन की दुःख हरता सुख सम्पत्ति कर्ताॐ जय अम्बे…

भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी
मन वांछित फ़ल पावत सेवत नर-नारी. ॐ जय अम्बे…

कंचन थार विराजत अगर कपूर बाती
श्रीमालकेतु में राजत कोटि रत्न ज्योति. ॐ जय अम्बे…

श्री अम्बे जी की आरती जो कोई नर गावे
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपत्ति पावे. ॐ जय अम्बे…

Devi Kushmanda

indu-traditions/
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