नवरात्रि की शुभकामनाएं! जय माता दी!
नवरात्रि में नौ दिनों तक देवी मां दुर्गा की नौ शक्तियों की पूजा-अर्चना की जाती है.
मां के हर रूप का अपना विशेष महत्व है.
उनके नौ रूप इस प्रकार हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री.
आज पहले दिन शैलपुत्री की पूजा-अर्चना का विधान है.
यह नवदुर्गा में प्रथम दुर्गा हैं.
पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा.
देवी शैलपुत्री के चरणों में गाय का घी अर्पित करने से भक्तों को सुख-समृद्धि व आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है.
देवी की उपासना के मंत्र इस प्रकार हैं-
वन्दे वान्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्
मां शैलपुत्री का वर्ण चंद्र समान है.
यह शिव की अर्द्धांगिनी पार्वती का ही रूप हैं.
इनका वाहन बैल है.
इस दिन ॐ शं शैलपुत्री देव्यैः नमः मंत्र का जाप करना चाहिए.
इससे मन में शांति मिलने के साथ-साथ सभी दुख-कष्ट दूर होते हैं.
देवी के निम्न पाठ से भी आपका जीवन ख़ुशियों से भर जाएगा-
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागरः तारणीम्
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम् ll
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम् ll
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोहः विनाशनि
मुक्ति भुक्ति दायनी शैलपुत्री प्रमनाम्यहम् ll
नवरात्रि का वैज्ञानिक-आध्यात्मिक रहस्य
‘नवरात्रि’ शब्द से नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियों) का बोध होता है. इस समय शक्ति के नवरूपों की उपासना की जाती है. डॉ. मधुराज वास्तु गुरु ने इसके बारे में और भी विस्तार से बताया. ‘रात्रि’ शब्द सिद्धि का प्रतीक है. भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है, इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्रि आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है. यदि रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता, तो ऐसे उत्सवों को ‘रात्रि’ न कहकर ‘दिन’ ही कहा जाता, लेकिन नवरात्र के दिन, ‘नवदिन’ नहीं कहे जाते. ऋषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्र का विधान बनाया है. विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से 9 दिन अर्थात नवमी तक और इसी प्रकार ठीक 6 माह बाद आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी तक.
इन नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना आदि करते हैं. कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं.
नवरात्रि में शक्ति की 51 पीठों पर भक्तों का समुदाय बड़े उत्साह से शक्ति की उपासना के लिए एकत्रित होता है. जो उपासक इन शक्तिपीठों पर नहीं पहुंच पाते, वे अपने निवास स्थल पर ही शक्ति का आह्वान करते हैं.
नवरात्रि में पूरी रात जागना बहुत शुभ माना गया है. बहुत कम उपासक आलस्य को त्यागकर आत्मशक्ति, मानसिक शक्ति और यौगिक शक्ति की प्राप्ति के लिए रात्रि के समय का उपयोग करते देखे जाते हैं.
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