नज़्में- मेरे एहसास… (Nazame- Mere Ehsaas…)




उम्र मेरे पास थी ही नहीं

मैं ज़िंदगी के आसपास

ख़्वाब ढूंढ़ता रहा

सवाल तो सिर्फ़ इतना था

मेरे सीने में

धड़कन किसकी थी

जिसे मैंने

ज़िंदगी समझा





*

ज़ंजीर और क़ैद

एक नहीं होती

मैं

ख़्वाबों की क़ैद में था

ज़ंजीरें तो

तुम्हारे पैरों में थीं

जिन्हें तुमने

ज़ेवर समझा



*



तमन्ना तेरे दामन से

लिपट कर रोई

मेरे पहलू में उसे

तड़पने के सिवा

हासिल क्या था

तेरी निगाहों के साये में

इक उम्र गुज़र जानी थी

तेरी आंख के काजल ने

मुझे दर्दे दिल

बयां करने न दिया

वो तेरा काजल

हर बार

मेरी धड़कन और

तेरे आंसुओं के बीच

आ कर ठहरा



*



धीरे धीरे मैंने

तेरी सांसों को

तेरे सीने से

उतरते देखा

मुझे एहसास हुआ

उनका उठना गिरना

और फिर सांस का

और भी नीचे उतर जाना

कि जहां मेरी नज़र

सिर्फ़ उसे  महसूस कर सकती थी

देख नहीं

काश मैं

उन सांसों के साथ

एक पल ही सही

तुम्हारे भीतर

जीने की तमन्ना पूरी करता

शिखर प्रयाग



Photo Courtesy: freepik

Usha Gupta

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