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रिश्तों में बचें इन चीज़ों के ओवरडोज़ से (Overdose of love in relationships)

Overdose of love मनोचिकित्सक डॉ. चंद्रशेखर सुशील कहते हैं कि एक-दूसरे की परवाह, प्यार व अपनापन अच्छा है, पर जब कोई भी भावना अत्यधिक (Overdose of love) हो जाए, तो समझिए कुछ बुरा हो सकता है. इसी तरह से फैमिली काउंसलर श्रीमती सुमन भंडारी का मानना है कि हर शादी- चाहे लव मैरिज हो या अरेंज्ड, एक समझौता होती है. रिश्तों में ट्रांसपरेंसी होना बेहद ज़रूरी है, लेकिन ओवरडोज़ नहीं. आइए देखें कि किन भावनाओं के अतिरेक से हमें बचना चाहिए- पज़ेसिवनेस किसी भी क़रीबी रिश्ते में पज़ेसिव होना स्वाभाविक है, परंतु अत्यधिक पज़ेसिव होने से आप सामनेवाले को स्पेस नहीं दे पाते. आपको लगता है कि आप उससे बेइंतहा (Overdose of love) प्यार कर रहे हैं, उसकी केयर कर रहे हैं, लेकिन इसके चलते आप उसकी पर्सनल स्पेस को ख़त्म कर देते हैं, जिससे उसे घुटन होने लगती है. एडवोकेट कल्पना शर्मा बताती हैं कि तलाक़ के कई कारणों में ओवर पज़ेसिवनेस बड़ा फैक्टर है. पति-पत्नी में से कोई एक यदि इससे ग्रस्त है, तो ईर्ष्या, घुटन, कुढ़न आती ही है और ज़िंदगी नासूर बन जाती है. जिसे भी आप प्यार करते हैं, उसकी जगह ख़ुद को रखकर सोचें कि कहीं आप भी ओवर पज़ेसिव तो नहीं? यदि हां, तो स्वयं को तुरंत बदलने की कोशिश करें. स्पेस न देना पति-पत्नी या सहेलियों में नज़दीकी स्वाभाविक है. एक-दूसरे की अंतरंग बातें जानना भी सहज है, पर समस्या तब होती है, जब दोनों एक-दूसरे को अपने मन मुताबिक़ चलाना चाहते हैं और हर बात की रिपोर्ट मांगते हैं, फ्री टाइम बिल्कुल नहीं देते. ऐसे में हर बात की सफ़ाई देते-देते थकान व नीरसता आने लगती है. ‘सरप्राइज़’ रिश्तों में हमेशा नयापन लाता है, जिसके लिए थोड़ी दूरी और स्पेस ज़रूरी है. कुछ दूरी रिश्तों में मिठास भी भर देती है. बेहतर होगा कि जब भी संभव हो, कुछ समय दोस्त, जीवनसाथी, सहेली से अलग भी बिताने का प्रयत्न करें. आपके रिश्तों में नई उष्मा का संचार होगा. तारीफ़ करना तारीफ़ करना और सुनना हम सभी को बहुत अच्छा लगता है, पर बहुत अधिक तारीफ़ करने से सामनेवाला उसे सहज तौर पर लेने लगता है. संगी-साथियों में भी अधिक तारीफ़ से वे आपको लाइटली लेने लगते हैं या बात की वैल्यू नहीं समझ पाते. नतीजतन आपका मन बुझ जाता है. तारीफ़ कीजिए, पर सोच-समझकर और बार-बार मत दोहराइए. प्रोटेक्टिव होना रिलेशनशिप में हम अपनों के प्रति प्रोटेक्टिव हो जाते हैं. पैरेंट्स, पत्नी, बच्चे, बहन या प्रेमिका किसी की भी चिंता करना अच्छा है, पर इतनी चिंता करना कि वो असहज हो जाएं? आप पर पूर्णतया निर्भर हो जाएं, ठीक नहीं. बेटियों या अपनी पत्नी को सुरक्षा की दृष्टि से घर से बाहर न निकलने देना, मनचाहे कपड़े न पहनने देना, मनचाही नौकरी न करने देना या दूसरे शहर न जाने देना उनके व्यक्तित्व को कमज़ोर बनाएगा और फ्रस्ट्रेशन डेवलप करेगा. बेहतर होगा कि आप उनके व्यक्तित्व को ग्रो करने दें. श्रीमती भंडारी बताती हैं कि आजकल शादियां देर से होती हैं. लड़का-लड़की दोनों इंडिपेंडेंट होते हैं, ऐसे में यदि वो एक-दूसरे के प्रति ओवरप्रोटेक्टिव होंगे, तो दोनों का ईगो टकराएगा. इसीलिए प्री मैरिटल काउंसलिंग बहुत ज़रूरी है. अक्सर छोटी-सी ग़लती विवाह विच्छेद का कारण बन जाती है. हर बात शेयर करना शेयरिंग किसी भी रिश्ते की मज़बूती का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, लेकिन हर ग़ैरज़रूरी बात व चीज़ भी शेयर करने लग जाएं, तो अक्सर ग़लतफ़हमियों की संभावना अधिक हो जाती है. ख़ासतौर से पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका को हर बात शेयर नहीं करनी चाहिए. उदाहरण के तौर पर, यदि आप अपने किसी कलीग के बारे में या किसी के स्वभाव के बारे में बात करते हैं या ऑफिस की, घर की हर बात शेयर करते हैं, तो आपका पार्टनर अपनी राय देगा या अपने तरी़के से चीज़ों को समझकर रिएक्ट करेगा, जिससे बात-बात में ही विवाद व झगड़े हो जाते हैं. इसलिए शेयरिंग एक सीमा तक ही ठीक है. अत्यधिक शेयरिंग कई बार रिश्तों में खटास ला देती है. अत्यधिक अपेक्षाएं सास को बहू से, पति को पत्नी से, बच्चों को पैरेंट्स से, दोस्तों को आपस में एक-दूसरे से उम्मीदें होती हैं. हर रिश्ता उम्मीदों पर टिका होता है. सायकोलॉजिस्ट रश्मि सक्सेना कहती हैं कि बहुत ज़्यादा एक्सपेक्टेशन से रिश्ते ख़त्म हो जाते हैं. हम दूसरे से ज़रूरत से ज़्यादा उम्मीद करते रहते हैं, बिना उसकी परिस्थितियों को समझे. साथ ही हम यह भूल जाते हैं कि हमने उनके लिए क्या किया? कई बार अव्यावहारिक उम्मीदें कर बैठते हैं, नतीजा मनमुटाव, द्वेष, अलगाव. इसीलिए दूसरों से बहुत अधिक अपेक्षाएं न रखें, आप सुखी रहेंगे और आपके रिश्ते क़ामयाब. वाचालता कुछ रिश्ते हमारे पारंपरिक समाज में बड़े ख़ुशमिज़ाज, चटपटे व रसीले माने जाते हैं- जीजा-साली, देवर-भाभी में चुहल आम बात है, पर इन नाज़ुक रिश्तों में अधिक वाचाल होना मुसीबत मोल लेना है. मर्यादा को समझकर, सीमा में रहना ही श्रेयस्कर है. मस्ती-मज़ाक में कब रिश्तों की मर्यादा व सीमा टूट जाती है और सामनेवाले को ठेस लग जाती है, हम समझ ही नहीं पाते. इसलिए सीमा में रहकर ही मज़ाक करें, तो बेहतर होगा. मस्ती-मज़ाक, रोमांस, चुहल, छेड़खानी, एक-दूसरे का ध्यान रखना- यह सभी विभिन्न रिश्तों की अलग पहचान है और जब तक ये अलग-अलग भाव रिश्तों में नहीं होंगे, जीवन का मज़ा भी नहीं आएगा. बस, बचना स़िर्फ अति से है, क्योंकि अधिक मिठास भी सेहत को नुक़सान पहुंचाती है.

- पूनम मेहता

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