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पहला अफेयर: पहली छुअन का एहसास (Pahla Affair: Pahli Chhuan Ka Ehsas)

पहला अफेयर: पहली छुअन का एहसास (Pahla Affair: Pahli Chhuan Ka Ehsas)

प्यार क्या होता है, इसका एहसास मुझे पहले हुआ ही नहीं. होता भी कैसे? जिस उम्र में उमंगें जवान होती हैं, मन किसी अजनबी को सपनों में संजोता है, उस समय तो मेरी शादी ही कर दी गई. वो भी उनसे, जिनका मैं सम्मान करती थी.

मैं घर में सबकी लाडली थी और सुंदर भी. सभी कहते थे कि हमारी राधा का रिश्ता तो किसी राजकुमार से होगा, पर शायद होनी को कुछ और ही मंज़ूर था. अचानक दीदी का एक कार एक्सीडेंट में देहांत हो गया. पूरा घर बिखर गया. राजन जीजाजी तो बुरी तरह से टूट गए. पापा चाहते थे कि मेरी शादी राजन से कर दी जाए, लेकिन मैं इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थी, पर बड़ों के सामने मेरी कहां चलनेवाली थी? और फिर मेरे संस्कारों ने मुझे इतनी हिम्मत भी नहीं दी कि कोई क़दम उठाती.

राजन से मेरी शादी कर दी गई, जो मुझसे उम्र में दस वर्ष बड़े थे. सब कुछ इतनी जल्दी हो गया कि कुछ सोचने-समझने का मौक़ा ही नहीं मिला. सारे सपने जो टूट गए थे. पहली रात को मैं बहुत डरी हुई थी, परंतु शायद राजन मेरी मनोदशा समझ गए थे. उन्होंने बड़े प्यार से मुझे समझाया कि तुम डरो मत, हम लोग इस दुनिया के लिए पति-पत्नी बनकर ही रहेंगे. तुम मुझे अपना दोस्त समझो. यह सुनकर मेरी ख़ुशी का तो ठिकाना ही न रहा.

समय बीतने लगा. राजन मेरी ज़रूरतों व ख़ुशी का बहुत ख़याल रखते. एक दिन बातों-बातों में राजन ने कहा कि तुम चाहो तो आगे पढ़ाई फिर से शुरू कर सकती हो. बात भी सही थी, मैंने तुरंत एमबीए करने का सोच लिया और कॉलेज में दाख़िला भी करवा लिया. अब मैं भी अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहती. शाम को रोज़ाना ऑफ़िस से छूटते ही ये मुझे कॉलेज में लेने आते. एक दिन जब ये मुझे लेने आए तो देखते ही रह गए. उस दिन मैंने ब्लैक कलर की साड़ी पहन रखी थी. इन्होंने धीरे से कहा कि आज तुम बहुत ख़ूबसूरत लग रही हो. सुनते ही मेरे दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं. न जाने क्यों मन उनकी ओर खिंचने लगा था.

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एमबीए पूरा हो गया. मैंने राजन के ऑफ़िस में ही नौकरी कर ली. अब तो हम रोज़ साथ में ही आते-जाते. हर पल राजन मेरे साथ ही रहते. न जाने क्यों अब उनकी नज़दीकियां अच्छी लगने लगीं. शाम को अक्सर हम कहीं घूमने निकल जाते और देर रात तक आते. अब मन में राजन के प्रति पहले प्यार का एहसास होने लगा था.

एक दिन आगरा से मां का फ़ोन आया कि छोटे भैया की शादी तय हो गयी है और मुझे एक महीने पहले ही आना होगा. मन में बहुत ख़ुशी थी पीहर जाने की. मैं चली तो गई, पर लगा कि मन तो दिल्ली में ही छोड़ आई हूं. हर पल राजन का ही ख़्याल रहता मन में. किसी काम में मन नहीं लगता. उधर राजन का भी यही हाल था. दिन में पचास बार फ़ोन कर लेते थे. अब तो दिन काटना मुश्किल लगने लगा.
शादी को दो दिन ही बचे थे. आज शाम राजन यहां पहुंचनेवाले थे. रातभर नींद नहीं आई. ये मेरे जीवन में पहली रात थी, जो मैंने उनकी याद में काटी थी. शाम को उनकी फ्लाइट थी. एयरपोर्ट पर मैं उन्हें लेने स्वयं चली गई. आज मैंने उनकी पसंद की ही साड़ी पहनी थी. फ्लाइट समय पर आ गई, पर वो कहीं नहीं दिखे. मन मायूस हो गया कि कहीं उनका आना कैंसल तो नहीं हो गया. मैंने तुरंत अपना मोबाइल निकाला और डायल करने लगी कि अचानक किसी ने मुझे बांहों में भर लिया. मैं डर गई. पलटकर देखा तो राजन ही थे. आज उनकी बांहों से छूटने की हिम्मत मुझमें नहीं थी और मन भी नहीं. इनकी छुअन में वही एहसास था, जो पहले प्यार में होता है. आज लोगों की परवाह भी नहीं थी मुझे.

आज मैं अपने सारे सपने साकार होते देख रही थी. सही मायने में हमारी शादी आज ही हुई थी.

– मनीषा शर्मा

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Geeta Sharma

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