जैसे ही माधुरी के पति ने दरवाज़ा खोला- आदेश को सामने पाकर माधुरी के होश उड़ गए. वही लंबा-चौड़ा क़द, वही नैन-नक्श, हां उम्र ने उसके कनपटियों के पास के बालों को भूरा बना दिया था. उफ़! तो यह है निमेश का पिता, जिसे वह अपने समधी के रूप में देखना चाह रही थी. वह माज़ी के सागर में गोते खाने लगी. बीते कल की एक-एक घटना चलचित्र की तरह माधुरी के मानस पटल पर उतरने लगी. उसका अतीत अपनी परतें उधेड़ता चला गया… आक्रोश और पीड़ा की अजीब-सी कशमकश में उसका मन दर्द से कराह उठा…
न पूछो कैसे-कैसे निभाते रहे हम,
था आंखों में आब और हंसने का नाटक किए रहे!
यदि उसके पति दिनेश उसे सहारा देकर न थामते, तो वहीं गश खाकर शायद गिर जाती वो. काफ़ी समय बाद होश में आने पर अपने को कमरे में पलंग पर पाया. उसके सवालों की नाव फिर डगमगाने लगी.
उफ़! व़क्त ने यह कैसा बेहूदा मज़ाक किया है उसके साथ. माधुरी के पति उसे होश में आया देख बोले, “मधु, तुम आराम करो, मैं चाय लेकर अभी आया. हां, मैंने लड़केवालों को अभी एक हफ़्ते के लिए टाल दिया है.” ‘लड़केवाले…’ उफ़! ये अल्फ़ाज़ उसे हज़ारों बिच्छुओेंं-सा डंक मार गया था. क्या वह आदी को इतने सस्ते में माफ़ कर पाएगी? ऐसे कई सवाल नागफनी से उठ खड़े हुए. कैसा विधि का विधान है…!
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रात हो चली थी. सन्नाटा पसर चुका था. मधु ने अपने आप को 28 साल पीछे धकेला. ज़ेहन में फिर से यादों का सैलाब उमड़ चला, जहां बेइंतहा ख़्वाबों के झरोखे, झरोखों से झांकते हंसी-ठहाके, नई दुनिया के सपने, आसमान को छूनेवाली उड़ानें थीं… पर जीवन के इस पड़ाव पर, जब वह अपना अतीत पीछे छोड़ आई है, उसे व़क्त ने झंझोड़ा है.
क्या इस मोड़ पर आकर आदी से प्रतिशोध लेना वाजिब होगा? माधुरी जानती है, आदी से परिचय, दोनों का इंटरनेट पर विचारों का आदान-प्रदान और फिर एक संग जीवन जीने के न जाने कितने सपने बुन डालना… लेकिन आदी की शादी की ख़बर ने तमाम सपनों को एक ही झटके में उधेड़ दिया था. क्यों वह अपनी बेटी स्वाति को बदले के हवनकुंड में झोंक दे… उसका सिर फटने लगा था. नहीं-नहीं… वह ऐसा नहीं होने देगी. आदी दोषी है, तो वही भुगतेगा… और वह सिसकियों में डूब गई.
सिसकने की आवाज़ मैं साफ़ सुन रही,
लोग कहते हैं घर में दूसरा कोई नहीं…
अगली सुबह उसके अहम् ़फैसला सुनाने का व़क्त था. वह तैयार होकर आईने के सामने खड़ी हुई- ख़ुद को भरपूर निहारा… सोचने लगी कि ऐसी क्या कमी थी उसमें, जो आदी ने… छी:… उसे अब इस नाम से भी घृणा हो रही थी. अब उसे ही जलने दो अग्नि कुंड में. आदी के जीवन में भी तो एक भूकंप आया था, जिसने उसके घरौंदे को तहस-नहस कर दिया था. वो अपनी करनी का फल भुगत ही रहा था.
एक गहरी सांस लेकर उसने कहा, “यहीं रिश्ता तय कीजिए, मेरी तरफ़ से हां समझें.”
– मीरा हिंगोरानी
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