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लव स्टोरी: प्यार की परिभाषा (Love Story: Pyar Ki Paribhasha)

मेरे दिल के किसी कोने में आज भी उनकी छवि अंकित है. वो हमेशा मेरे दिल में रहेंगे. प्यार अगर स़िर्फ मिलन का ही नाम होता, तो आज भी मैं उनकी बीती यादों को संजोए नहीं रहती. किसी ने सच कहा है- कुछ खोकर ही तो कुछ पाया जा सकता है. अंधकार मिटाने के लिए दीपक को पल-पल जलना पड़ता है. धरती की प्यास बुझाने के लिए बादल अपना अस्तित्व मिटा देता है, उसी प्रकार किसी क़ीमती वस्तु को त्यागकर ही कुछ दुर्लभ मिलता है. अगर ऐसा न होता तो मुझे तुम न मिलती…

मां के कहे ये शब्द मैं कभी नहीं भूल सकती. बचपन से ही वे मेरी मां कम, सहेली ज़्यादा रही हैं. जीवन के हर एहसास, हर भावना की परिभाषा मुझे मां से ही मिली. मां अक्सर कहा करती हैं, “कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है.”

यह बात मेरी समझ में कम ही आती थी. बचपन से ही मैं बड़ी ज़िद्दी थी, जो चाहती उसे पाकर ही छोड़ती. बचपन की दहलीज़ लांघकर बड़ी हुई और अब जब पहले प्यार ने दिल पर दस्तक दी, तो यह एक नया एहसास था मेरे लिए. इसकी परिभाषा तो मैं जानती नहीं थी. सोचा मां से पूछूं, फिर सोचा मां तो शायद जानती ही नहीं होंगी, क्योंकि मां का प्रेम-विवाह नहीं था. उस ज़माने में प्रेम-विवाह कम ही होते थे.
फिर भी एक दिन मां से अचानक पूछ ही बैठी, “मां, क्या तुमने कभी किसी से प्यार किया था?”

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मां के मुंह से जब सुना, “हां.” तो मेरे आश्‍चर्य की सीमा ही नहीं रही. एक साथ ही कई सवाल पूछ डाले मां से कि कब? कैसे? तुमने उनसे शादी क्यों नहीं की? उनका नाम क्या था? अभी कहां हैं वो?

मां ने मेरे सभी प्रश्‍नों का उत्तर स़िर्फ इतना ही दिया, “उनका नाम सचिन था. उन्हें मैंने किसी रिश्तेदार के विवाह में देखा था. पहली नज़र में ही वे मुझे अच्छे लगे. सरल, सहज और निर्मल. इस दुनिया की भीड़ से अलग. हमारी बातें हुईं, मेरे मन में कई सपने पलने लगे, पर वे मेरे बारे में क्या सोचते थे, मुझे पता नहीं था. कुछ दिनों में ही पिताजी ने मेरा रिश्ता तुम्हारे पापा के साथ तय कर दिया. मेरी शादी हो गई और फिर तुम मेरे जीवन में आईं, मेरी नन्हीं-सी गुड़िया बनकर.”

“पर मां, तुमने नानाजी को अपने प्यार के बारे में क्यों नहीं बताया?”

“मैं जानती नहीं थी कि वे मेरे बारे में क्या सोचते हैं? और मेरे लिए मेरे परिवार की ख़ुशी मेरी अपनी ख़ुशी से बढ़कर थी.”

“मां, फिर आप कभी नहीं मिलीं उनसे?” मैंने मां से पूछा, तो उन्होंने बताया कि मेरे जन्म के बाद वो मिले थे. उन्होंने स़िर्फ इतना कहा,

“तुमने जो किया, ठीक किया. हमारी भावनाओं से बढ़कर हमारे माता-पिता की ख़ुशी है. तुम मेरी या मैं तुम्हारा न हुआ तो क्या? हमारी यादें तो हमारी हैं न. प्यार का अर्थ स़िर्फ मिलन नहीं. कोई क़ीमती चीज़ खोकर ही कोई दुर्लभ वस्तु पाई जा सकती है.”

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मैंने मां से पूछा, “तुमने अपना प्यार त्यागकर कौन-सी दुर्लभ वस्तु पाई?” मां ने कहा कि मैंने भी यही पूछा था सचिन से, तो उन्होंने मुझसे कहा, “इंसान कई बार अपने हाथों में आई दुर्लभ वस्तुओं को पहचान नहीं पाता और उन्हें गंवा देता है. जब उसे एहसास होता है, तब तक देर हो जाती है. तुम मुझसे पूछ रही हो उस दुर्लभ वस्तु के बारे में, जबकि ख़ुद उसे हाथों में संभाले बैठी हो. अगर तुम मुझे न

त्यागती, तो ये तुम्हें न मिलती.” और उन्होंने मुझे मां की गोद में प्यार से सहला दिया.
मां की बातें सुनकर मुझे सच आज प्यार की परिभाषा मिल गई. प्यार स़िर्फ पाने का नाम नहीं और अगर आप, मेरे पहले प्यार, मुझे सुन सकते हैं, तो प्लीज़ मुझसे मिलिए. शायद प्यार की एक और परिभाषा मुझे आप से ही मिल सकती है. स़िर्फ आप से…

– पूजा

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Meri Saheli Team

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