Pehla Affair

पहला अफेयर- तुम मेरे हो… (Pahla Affair- Tum Mere Ho)

पहला अफेयर- तुम मेरे हो… (Pahla Affair- Tum Mere Ho)

बरखा की इन बूंदों में अपने महबूब को ढूंढ़ती मेरी नज़रें… उसकी प्यास, उसकी आस और उसकी बांहों में अपने वजूद का एहसास… इंद्रधनुष के रंग बिखर जाते हैं निगाहों में… बादल बन उड़ने लगता है दिल आसमान में… उस अधूरे प्यार को पूरा करने की ख़्वाहिश में, जिसके सपने हम दोनों ने मिलकर बुने थे… पर जब आंख खुली, तो कांच के खिलौनों की तरह सब टूट गए… आज फिर वही बरसात है… महबूब की याद है… वही अधूरी प्यास और वही अधूरी आस भी…

बीते दिन जब भी याद आते हैं, स़िर्फ आखों को ही नम नहीं करते, बल्कि हर एहसास को भिगो जाते हैं. तुम्हारी आंखों की वो शरारत, बातों का अंदाज़, वो बेपरवाह-सा जीने की अदा जब भी याद आती है, मेरे दिल की धड़कनों को आज भी तेज़ कर देती है. मुहब्बत का मीठा एहसास क्या होता है, तुमसे मिलने के बाद ही तो समझ पाई थी मैं, लेकिन मुहब्बत में इतना दर्द भी होता है यह भी तुमसे ही सीखूंगी सोचा न था. कहते हैं प्यार के रिश्ते में अपने साये तक एक हो जाते हैं, ऐसे में किसी ग़ैर के लिए जगह ही कहां बचती है. लेकिन हमारे बीच कब किसी और ने अपनी जगह बना ली पता ही नहीं चला.

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हम स़िर्फ प्रेमी ही नहीं, बल्कि बहुत अच्छे दोस्त भी थे. कहीं कोई पर्दा न था, कोई तकल्लुफ़ नहीं. दो नहीं, एक ही तो थे हम. ज़िंदगी बेहद हसीं लगती थी तब, हर लम्हा ख़ास था. आज़ाद पंछी की तरह खुला छोड़ दिया था मैंने तुम्हें, क्योंकि मेरा मानना था कि प्यार में बंधन नहीं होना चाहिए, प्यार तो आज़ाद होता है… लेकिन कब, क्यों और कैसे तुम्हारे दिल में किसी और के लिए भी जगह बनती चली गई इसका एहसास जब होने लगा, तब जैसे हर सपना धीरे-धीरे टूटता चला गया…

जहां तक मुझे पता था तुम्हें मेरी वो सहेली ज़्यादा पसंद नहीं थी, लेकिन न जाने कब वो तुम्हारे इतने क़रीब आ गई कि तुम छिप-छिपकर उससे बातें-मुलाक़ातें करने लगे. जब मुझे तुमसे दूरी का एहसास होने लगा, तुम में बदलाव नज़र आने लगा तो अपने प्यार का वास्ता देकर यक़ीन दिलाते रहे कि तुम स़िर्फ मुझसे प्यार करते हो. मैं भी बार-बार दिल को समझाकर तुम पर यक़ीन करती गई और हर बार मेरा यक़ीन टूटा…

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आख़िर इस कशमकश में कब तक ज़िंदा रह पाता हमारा मासूम प्यार और कोमल रिश्ता. सिसक-सिसककर दम तोड़ दिया आख़िर इस
रिश्ते ने… लेकिन कहते हैं कि प्यार कभी मरता नहीं… इतने सालों बाद तुमसे फिर एक मोड़ पर जब टकराई, तो एहसास हुआ कि तुम सही थे, सच्चे थे, तुम्हारा प्यार कोई फरेब नहीं था, वरना अब तक तुम उसके हो चुके होते, लेकिन तुम्हेें तो स़िर्फ मेरा इंतज़ार था… अगर कुछ ग़लत था तो स़िर्फ वो हालात और वो लोग, जिनसे हमारे बीच दूरी पैदा हुई.

लेकिन अब जब व़क़्त ने सारे घाव भर दिए हैं, तो इन फ़ासलों को भी हम हमेशा-हमेशा के लिए दूर कर दें, ताकि फिर कोई तीसरा हमारे बीच न आने पाए… अब किसी ग़लतफ़हमी की कोई गुंजाइश न बचे… मुझे भी शायद इसी मोड़ का इंतज़ार था, इसलिए तुम पर तमाम अविश्‍वासों के बावजूद मैं भी तो किसी और की न हो पाई.

तुम ही मेरी पहली मुहब्बत हो, तुम ही मेरा यक़ीन. तुम्हें ही तो तलाशती रहीं हर पल ये नज़रें, तुम नहीं तो मैं नहीं. तुम अक्सर कहा करते थे, प्यार विश्‍वास का ही दूसरा नाम है. तुमने मुझे सिखा ही दिया आख़िर इस विश्‍वास के साथ जीना… अब मुझे यक़ीन है कि तुम मेरे हो, स़िर्फ मेरे!

– योगिनी 

 

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