जब भी तन्हाई में इस तन्हा चांद को देखती हूं तो तुम्हारे प्यार की महक से तन-मन महक जाता है… तुम्हें ये चांदनी रातें बहुत भाती थीं. घंटों तक इन तारों को तकते रहना, इनके भेद को जानने की चाह, इनकी रहस्यमयी दुनिया बहुत रोमांचित करती थी तुुम्हें. तुम हमेशा कहते थे कि देखना रिंकू एक दिन इन तारों के पार अपना जहां होगा… इस मतलबी दुनिया से दूर, जहां स़िर्फ प्यार ही प्यार होगा. कौन कह सकता था तुुम्हें देखकर कि फौज के इस पायलट के मन में इतनी कोमल भावनाएं पलती हैं.
मुझे याद है जब पहली बार तुम भइया के साथ हमारे घर आए थे और मैं तुुम्हारे आकर्षक व्यक्तित्व के मोहपाश में उसी वक़्त बंध गई थी. भइया भी एयरफोर्स में थे और तुम उनके बेस्ट फ्रेंड थे. घर पर तुुम्हारा आना-जाना होने लगा. तुुम मुझे भाने लगे और तुुम्हें भी मेरी नादानियां भली लगती थीं, कम से कम मैं तो यही समझती थी. अब बस मुझे इंतज़ार था तो उस पल का जब हमारे बीच
की औपचारिकताएं ख़त्म हों और तुम अपने प्यार का इज़हार करो.
उस रोज़ मैं घर पर अकेली थी और शाम को तुम अचानक आ गए. मैंने सोचा शायद आज प्यार के उस ख़ूबसूरत पल का एहसास मुझे हो, जब मेरी आंखों में आंखें डालकर तुम कहो, ङ्गङ्घमुझे तुमसे मुहब्बत है.फफ लेकिन जब तुुम्हें पता चला कि घर पर कोई नहीं है, तो तुम दरवाज़े से ही लौट गए. इतना रूखा व्यवहार? क्या मैं इस क़ाबिल भी नहीं थी कि दो पल बैठकर कुछ बातें कर लेते. मुझे लगा कि ये प्यार स़िर्फ एकतरफ़ा है, इसलिए मैंने तुमसे दूर रहना ही मुनासिब समझा. लेकिन मेरी ये बेरुखी शायद तुमसे बर्दाश्त नहीं हुई और तुमने मुझे फ़ोन करके शाम को पास के क्लब में मिलने के लिए बुलाया.
मैं धड़कते दिल से तुमसे मिलने आई और तुमने मुझे देखते हुए बस इतना कहा, ङ्गङ्घग़ुस्से में तुम और हसीं लगती हो!फफ तुुम्हारी मुहब्बत भरी वो नज़र सीधे मेरे दिल तक पहुंच गई. बस, फिर क्या था, शर्मोहया की लाली मेरे चेहरे पर उतर आई और मैं आंखें मूंदें प्यार के समंदर में डूबती चली गई. जब होश आया तो शाम ढल चुकी थी. घर पहुंचने के बाद भी तुम्हारी बातें ज़ेहन में थीं. अब तक तो मैं तुमसे प्यार ही करती थी, पर अब तुम्हारी इज़्ज़त भी करने लगी थी.
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तुमने मुझे प्यार से समझाया था, ङ्गङ्घरिंकू उस दिन तुम घर पर अकेली थी और अगर मैं वहां रुक जाता तो यह बात हमारा समाज और तुम्हारे घरवाले भी नहीं बर्दाश्त करते, फिर भले ही हमारा प्यार, हमारी भावनाएं कितनी भी पवित्र क्यों न हों? ऐसे में हम लोगों को बातें बनाने का मौक़ा ही क्यों दें. मैं चाहता हूं कि पूरे सम्मान के साथ तुम्हारा हाथ मांगूं और पूरी दुनिया के सामने इज़्ज़त के साथ तुम्हें अपनी दुल्हन बनाकर लाऊं. पर तुम ठहरी पगली, इतनी-सी बात भी न समझ सकी और रूठ बैठी.
सोच का ये सिलसिला तब टूटा जब भइया ने आवाज़ देकर ये ख़ुशख़बरी सुनाई कि मेरा सिलेक्शनएस्ट्रोनॉमी के रिसर्च प्रोग्राम के लिए हो गया है. मैं बेहद ख़ुश थी, पर ख़्याल आया कि तुमसे दूर कैसे जा पाऊंगी. तब तुमने ही मुझे समझाया था कि रिश्तों के साथ-साथ करियर को भी महत्व देना चाहिए, तारों की दुनिया को देखने का सपना तुम मेरी आंखों में भी पलता देखना चाहते थे और मैंने तुम्हारा ये ख़्वाब पूरी शिद्दत से पूरा किया.
आज तुम नहीं हो, पर तुम्हारी यादें ही इतनी हसीं हैं कि उनके सहारे मैं ताउम्र जी लूंगी. उस प्लेन क्रैश ने भले ही तुम्हें मुझसे छीन लिया, लेकिन तुम्हारा ये सपना तो है मेरे जीने का सहारा, जिसमें मैं तारों की दुनिया में जाकर तुमसे मिल आती हूं.
– रिंकी चौधरी
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