तुमसे ल़फ़्ज़ों का नहीं, रूह का रिश्ता है मेरा
मेरी सांसों में बसी रहती हो ख़ुशबू की तरह!
ये पंक्तियां शायर ने शायद मेरे ही लिए लिखी हैं. आज भी उसकी महक मेरी यादों में बसी है और उसका चेहरा आंखों में… वह मेरा पहला प्यार थी… एक ऐसा एहसास जो आज भी तन-मन में ताज़गी और उत्साह भर देता है… वसंत ऋतु में जिस तरह आमों की बौराई की गंध कोयल को कूकने के लिए मज़बूर कर देती है, उसी तरह प्यार का एहसास ज़िंदगी को ख़ुशनुमा बना देता है, दुनिया की हर शै अपनी-सी लगने लगती है और प्रेम की मदहोशी छा जाती है.
हम पड़ोसी थे और सहपाठी भी, इसलिए खुलकर हर विषय पर चर्चा करते. लड़ते भी तो दो दिन से अधिक नाराजग़ी को खींच नहीं पाते. अधिकतर पहल वही करती, शायद इसीलिए मेरा अहम कुछ बढ़ गया और यही उसे खोने का कारण बना.
स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद हम प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे. उसी बीच उसकी शादी के प्रस्ताव आने लगे थे. उसने इस संबंध में मुझे बताया भी, परंतु मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया. मैं कोचिंग करने दिल्ली गया तो मैंने न ही उसे कुछ कहा और न ही अपना साथ देने के लिए आश्वस्त किया.
मैं सोचता था कि वह मुझे चाहती है तो मेरा इंतज़ार करेगी ही, लेकिन मैं एक लड़की की स्थिति को समझ नहीं पाया. बिना किसी वादे या आश्वासन के वह कितने दिन मेरा इंतज़ार करती, अपने परिवार को कैसे समझाती, उसने उनके कहे अनुसार शादी कर ली.
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अपनी नादानी में मैंने उसे खो दिया. मैं तो पूरी तरह से आश्वस्त था कि जब वो मुझे चाहती है तो मेरे सिवा किसी और की हो ही नहीं सकती. पर शायद हमारी क़िस्मत में एक होना लिखा न था.
कभी-कभी दिल में बरबस यह ख़याल आने लगता है कि वह मेरी अच्छी जीवनसंगिनी बन सकती थी. मेरी हर पसंद का ख़याल रखने वाली, मेरी ग़लतियों को समझाने और जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देने वाली, ऐसी साथी मुझे कोई और नहीं मिल सकती थी.
वह अब भी मेरी सच्ची दोस्त है तथा मुझे सुखी देखना चाहती है. पर कहते हैं ना कभी किसी को मुक़म्मल जहां नहीं मिलता-कहीं जमीं, तो कहीं आसमां नहीं मिलता.
माना कि उसकी जुदाई से कुछ दिनों तक दीवानों-सी हालत रही. पर उसके समझाने पर घर-परिवार का ख़याल कर मैंने ख़ुद को बिखरने से बचा लिया. इसका श्रेय भी उसे ही जाता है.
कितनी कशिश रहती है उसकी आंखों में. दिल को इस बात का सुकूं है कि क्या हुआ वो मेरी न हो सकी, लेकिन उसके संग बिताए वे पल, वे प्यार भरे एहसास तो मेरे यादों के घरौंदे में महफूज़ हैं. आज भी निराशा, अकेलेपन में मेरे जीने का सबब बन जाती हैं, उसकी बातें, उसकी यादें. साथ ही ज़िंदगी-ज़िंदादिली से जीने की प्रेरणा देती है.
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– समीर चौबे
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