चली हवा छाई घटा, चुनरी क्यों लहराई
बैठी-बैठी सोच रही मैं, बेबात क्यों हिचकी आई
उस रोज़ स्वेटर सीने बैठी उंगली में सुई ऐसी चुभी कि उस चुभन का एहसास आज भी ताज़ा है. ख़ून आज भी रिस रहा है. सूई की पीड़ा की अथाह परतें आज भी मन को मथने लगती हैं. मम्मी उठकर पास चली आईं. शायद उसने मेरा दर्द महसूस किया. मम्मी के बगल में बैठा मनुज ज़ोर-ज़ोर से ठहाका लगाकर हंस पड़ा. कभी-कभी बातों को हंसी में उड़ा देना और फिर एकदम गंभीर हो जाना, जैसे कोई रहस्यमयी क़िताब पढ़ रहा हो, ये सब उसकी आदतों में शामिल था. मैं खीझ उठती, “मनु, किसी नाटक कंपनी में भरती हो जाओ या मंच पर मिमिक्री का रोल…” मेरी बात को काटकर मम्मी से कहता, “भई स्वेटर के उल्टे फंदों में उलझेगी तो हादसा तो होगा ही.” मैं कटकर रह जाती. वह फिर ठहाका लगाता और… मैं उसकी हंसी की आवाज़ में खो जाती.
उसका छोटा-सा परिचय- वह हमारे गेस्ट हाउस में रहने आया. पापा के किसी ख़ास दोस्त का सिरफिरा साहबज़ादा. उसकी कही हुई एक-एक बात आज भी दुधारी तलवार-सी चीरती है मुझे. हर व़क़्त तोते-सी रटी-रटाई बात कहता, “शिल्पी, ज्यों ही मुझे वीज़ा मिल जाएगा, मैं हवा में फुर्र हो जाऊंगा.”
“उ़़फ्! लंदन जाकर पढ़ने का इतना ही शौक़ था तो फिर प्यार की पींगें बढ़ाने का यह जुनून क्यों पाला?” मैं चिढ़कर कहती.
बेशक कसकर बंद कर लूं आंखें. विचार चलचित्र की भांति चलते रहते हैं. चैन कहां लेने देते हैं? सुना था, चूक गए अवसर अपने पीछे पछतावे की लंबी कतारें छोड़ जाते हैं. कैसे यक़ीन की कश्ती पर मुझे बिठा चुपचाप समंदर पार कर गया… और छोड़ गया मेरे लिए यादों की लंबी कतारें. अब तो रूह से एक मायूस गज़ल फूटती है-
अब न लौट के आनेवाला
वो घर छोड़ के जानेवाला
हो गई उधर बात कुछ ऐसी
रुक गया रोज़ का आनेवाला
यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: तुम्हारा जाना…
यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: पहली छुअन का एहसास
जिस रोज़ उसे वीज़ा मिला, उस रोज़ वह बेहद ख़ुश आया. हवा के झोंके-सा आया था मेरे घर. छत पर हम कुछ पल बतियाए. रुख़सत होते व़क़्त मेरे दोनों हाथ पकड़कर वह बोला, “शिल्पी, उदासी उतार फेंको. मेडिकल की पढ़ाई ख़त्म होते ही लौटूंगा अपनी शिल्पी के पास, विवाह बंधन में बंधने.” मैं पगली गुलमोहर के फूलों में भी लाल जोड़े की कल्पना करने लगी.
उसका सच इतना झंझावाती था कि सपनों के तमाम घरौंदों को रौंदता आगे निकल गया. वह जा बसा सात समंदर पार…
मैं यहां बिलखती रही अकेली. कभी-कभी मेरी यादों के परिंदे जाकर मेरे पहले प्यार को छू आते हैं. उन हवाओं में आज भी रची-बसी हैं तुम्हारे यादों की ख़ुशबू… डरती हूं. इन यादों को कहां उखाड़ फेंकूं. ये तो कैक्टस की तरह फिर उग आएंगी.
रात आंखों में कटी, पलकों पे जुगनू आए
हम हवा की तरह जा के उसे छू आए.
– मीरा हिंगोरानी
कोवळ्या वयात असणाऱ्या मुलांच्या अंगी चांगल्या संस्कारांची जर पेरणी झाली, तर मुलं मोठी होऊन नक्कीच…
बॉलीवुड की सुपरस्टार जोड़ी रणवीर सिंह (Ranveer Singh) और दीपिका (Deepika Padukone) कुछ ही महीनों…
'कौन बनेगा करोडपती'च्या चाहत्यांसाठी एक आनंदाची बातमी आहे. अमिताभ बच्चन लवकरच त्यांच्या शोच्या 16व्या सीझनसह…
आज अष्टमी के मौक़े पर शिल्पा शेट्टी ने पूजा का एक वीडियो शेयर किया है…
14 एप्रिल रोजी रणबीर कपूर आणि आलिया भट्ट यांच्या लग्नाला दोन वर्षे पूर्ण झाली. दोघांनी…
सारे षडयंत्र से अनभिज्ञ सुनीता, जिन्हें हमदर्द समझ रही थी, वही आस्तीन के सांप निकले."सुनीता,…