पहला अफेयर: नादान दिल… (Pahla Affair: Nadan Dil)
फिर वही बरसात का मौसम आया है. आज फिर तुम्हारी याद आई है. सर्द हवाओं के झोंके अतीत के उन पन्नों को पलटने लगे हैं… जब छत्तीसगढ़ से 70 कि. मी. दूर… छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक कॉलेज में तुम एडमिशन लेने आई थी. पहली बार तुम्हें देखा था. तब क्या उम्र रही होगी? यही, कॉलेज में तुमने दाख़िला लिया ही था न!
मैं निर्निमेष एक अनोखी मासूमियत लिए तुम्हारे उस दुधिया मुखड़े को देख रहा था, जो स़फेद कुर्ते में और भी निखर आया था. रितिका- हां, यही नाम था तुम्हारा. अपना एडमिशन लेने के बाद अपने साथ आई कज़िन को लेकर वहां से चली गई, तो वहां का वातावरण अचानक बोझिल-सा हो उठा था.
इसी साल पास के एक शहर से आकर मैंने भी इसी कॉलेज में दाख़िला लिया था और यहीं के हॉस्टल में रहता था. तुम अपनी मौसी के पास रहने लगी थी. दूसरे दिन उन्हीं के यहां हमारी ये दूसरी मुलाक़ात थी. मौसी ने मेरा तुमसे परिचय कराते हुए कहा था… “ये योगेश है, बहुत अच्छा, होनहार और संस्कारी लड़का है. मेरे मायके के शहर से यहां पढ़ने आया है. हम लोग एक ही बिरादरी के हैं…” और तब अपनी नज़रें उठाकर तुमने मेरी ओर निहारा था, तुम्हारी आंखों में प्रशंसा के भाव थे.
फिर एक दिन शाम को अपनी कज़िन के साथ शॉपिंग करके तुम घर की ओर लौट रही थी, तुम्हारे ख़ूबसूरत सुनहरे बाल तुम्हारे दुधिया मुखड़े के चारों ओर बिखरे हुए थे. फिर मुझे देख पता नहीं क्या हुआ, तुम्हारे पांव थम गए… तुम अचरज से मुझे देखने लगी… उन निगाहों में ऐसा क्या था, आज तक समझ नहीं पाया.
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शारीरिक आकर्षण या वह प्रेम, जो इस उम्र में किसी न किसी के साथ हो जाता है? नहीं-नहीं! शायद इससे भी अलग कोई और पावन वस्तु, जिसे कोई नाम नहीं दिया जा सकता है! उस दिन पहली बार तुम्हारे प्रति एक गहरे लगाव का एहसास हुआ था. शायद ऐसी कोई अनुभूति उस समय तुम्हें भी हुई थी.
अगस्त माह का पहला रविवार था. इस साल कितनी बारिश हुई थी. सुबह से ही घटाएं घिर आई थीं. आज नोट्स लेने तुम्हें मेरे पास आना था. मैं खिड़की के पास जाकर आकाश को देखने लगा था. अचानक तेज़ बौछारें शुरू हो गईं… न जाने कब पीछे से आकर तुम मेरे पास खड़ी हो गई थी. मेरे इतने पास कि तुम्हारे शरीर से बड़ी मोहक ख़ुशबू आने लगी थी. नारी देह की ऐसी सुगंध का पहली बार एहसास हुआ था.
एक दिन किसी बात को लेकर अचानक मुझे लगा था कि तुम अन्य लड़कियों से अलग लगती हो… उनकी तरह मैंने तुम्हें कभी खुलकर हंसते नहीं देखा था और अनायास ही तुम मुझे बहुत रहस्यमयी लगने लगी थी. तुम्हें लेकर मेरा मन बेचैन होने लगा था. लेकिन अपने सिर को झटककर मैंने अपना सारा ध्यान अपनी पढ़ाई पर लगा दिया.
और फिर एक दिन अचानक यहां के कॉलेज की पढ़ाई अधूरी छोड़कर अपनी बहन के पास तुम अमेरिका चली गई और फिर मौसी ने बताया था, वहां तुम्हें एक प्रशासनिक विभाग में अच्छे पद पर जॉब मिल गया था. तुम्हारे परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं चल रही थी, इसलिए तुम्हें यह क़दम उठाने के लिए विवश होना पड़ा.
…लेकिन तुम्हारे इस तरह अचानक चले जाने से मैं बड़ा हैरान था. मेरे भीतर कुछ टूटा था… और अपने दिल के टूटने की उस आवाज़ को स़िर्फ मैंने सुना था. मेरा नादान दिल रो रहा था… रात काफ़ी गुज़र गई थी और तेज़ हवाओं के साथ बारिश जारी थी. अपने हॉस्टल जाने के लिए मौसी के घर से निकलकर जब मैं बाहर आया, तो तेज़ बौछारें मेरे रोम-रोम में तीर की तरह चुभने लगीं थीं, लेकिन इससे बेपरवाह होकर तुम्हारा ग़म अपने दिल में लिए… उस बारिश में भीगता हुआ शहर की वीरान सड़कों पर मैं अकेला पैदल चला जा रहा था… ऐसी बरसात इसके पहले कभी नहीं हुई थी.
– विजय दीप
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